polluted ganga
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भारतीय दृष्टिकोण से गंगा को निर्मल बनाएँ

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नदियों को संरचना के आधार पर कई वर्गों में बाँटा गया है। गंगा, यमुना जैसी नदियाँ पाँचवें-छठे क्रम की नदियाँ हैं और इनकी निर्मलता एवं अविरलता के बारे में बात करने से पहले, दूसरे, तीसरे क्रम की नदियों की बात की जानी चाहिए जिनकी लम्बाई 5 किलोमीटर, 10 किलोमीटर, 20 किलोमीटर या 30 किलोमीटर है और जिनकी जलधाराओं से बड़ी नदियाँ बनी हैं। ऐसी छोटी नदियाँ सूख रही हैं जिससे बड़ी नदियों के समक्ष खतरा उत्पन्न हो रहा है। गंगा को अविरल और निर्मल बनाने के लिये जर्मनी की राइन और ब्रिटेन की टेम्स नदी के मॉडल पर जोर दिए जाने की रिपोर्टों के बीच विशेषज्ञों का कहना है कि गंगा और यूरोपीय नदियों के भौगोलिक, सामाजिक एवं आर्थिक पहलुओं में भारी अन्तर है, यूरोपीय नदियों के समक्ष सिर्फ गुणवत्ता का प्रश्न था, जबकि गंगा एवं भारतीय नदियों के समक्ष जल की मात्रा और गुणवत्ता दोनों की समस्या है।

गंगा नदी बेसिन के प्रबन्धन विषय पर सात आईआईटी कंसर्टियम के संयोजक प्रो. विनोद तारे ने कहा, ‘आजकल जर्मनी से गुजरने वाली राइन नदी की काफी बात हो रही है। गंगा नदी की तुलना में राइन छोटी नदी है और कई देशों से गुजरती है लेकिन इसकी साफ-सफाई में भी 25 से 30 साल लग गए थे जबकि कई देशों ने इसकी सफाई में योगदान दिया था।’

उन्होंने कहा कि भारत के सन्दर्भ में देखें तो गंगा नदी इस मायने में अलग है। गंगा नदी के बेसिन वाले क्षेत्रों में देश की 40 करोड़ से अधिक आबादी बसती है। इस नदी पर 764 औद्योगिक इकाइयाँ हैं जिनसे भारी मात्रा में ठोस एवं तरल कचरा एवं गन्दगी नदी में प्रवाहित होती है। इस नदी का धार्मिक महत्त्व है और भारी संख्या में लोग इसमें विभिन्न मौकों पर डुबकी लगाते हैं। काफी मात्रा में घरेलू कचरा भी इसमें प्रवाहित होता है।

इण्डिया वाटर पोर्टल के विशेषज्ञ केसर ने कहा कि यूरोपीय देशों में 12 महीने बारिश होती है, जबकि भारत में चार महीने मानसूनी बारिश होती है और नदियों को चार महीने के वर्षाजल पर आश्रित रहना पड़ता है। यूरोप और भारत में वर्षा के तरीके में काफी अन्तर है।

उन्होंने कहा कि यूरोपीय नदियों के समक्ष जल की गुणवत्ता की समस्या है जबकि गंगा समेत भारतीय नदियों के सामने जल की मात्रा और गुणवत्ता दोनों की समस्या है। भारतीय नदियों को पानी की कमी की समस्याओं का सामना करना पड़ता है। जब नदी में जल नहीं होगा, तब नदी ही नहीं बचेगी, ऐसे में नदियों के अस्तित्त्व को बचाना बड़ी चुनौती है।

साउथ एशियन नेटवर्क ऑन डैम, रिवर एंड पीपुल्स के संयोजक हिमांशु ठक्कर ने कहा कि उत्तराखण्ड में बड़े पैमाने पर बनने वाली जलविद्युत परियोजनाएँ गंगा की अविरल धारा के मार्ग में बड़ी बाधा है। इसके कारण गंगा नदी समाप्त हो जाएगी, क्योंकि नदी पर बाँध बनाने की परियोजनाएँ इसके उद्गम पर ही अवस्थित हैं।

विशेषज्ञों का कहना है कि नदियों को संरचना के आधार पर कई वर्गों में बाँटा गया है। गंगा, यमुना जैसी नदियाँ पाँचवें-छठे क्रम की नदियाँ हैं और इनकी निर्मलता एवं अविरलता के बारे में बात करने से पहले, दूसरे, तीसरे क्रम की नदियों की बात की जानी चाहिए जिनकी लम्बाई 5 किलोमीटर, 10 किलोमीटर, 20 किलोमीटर या 30 किलोमीटर है और जिनकी जलधाराओं से बड़ी नदियाँ बनी हैं। ऐसी छोटी नदियाँ सूख रही हैं जिससे बड़ी नदियों के समक्ष खतरा उत्पन्न हो रहा है।

एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि पिछले कुछ समय में उत्तराखण्ड में 107 जलधाराएँ सूख गई हैं जो गंगा में मिलती हैं। गंगा नदी के समक्ष इसकी धारा पर मौजूद उद्योगों की गन्दगी और कचरा बड़ी समस्या है। जल संसाधन एवं नदी विकास मंत्रालय के राष्ट्रीय जल विकास अभिकरण से प्राप्त जानकारी के अनुसार, गंगा नदी पर कुल 764 उद्योग अवस्थित हैं जिनमें 444 चमड़ा उद्योग, 27 रासायनिक उद्योग, 67 चीनी मिले, 33 शराब उद्योग, 22 खाद्य एवं डेयरी, 63 कपड़ा एवं रंग उद्योग, 67 कागज एवं पल्प उद्योग एवं 41 अन्य उद्योग शामिल हैं। उत्तर प्रदेश, उत्तराखण्ड, बिहार और पश्चिम बंगाल में गंगा तट पर स्थित इन उद्योगों द्वारा प्रतिदिन 112.3 करोड़ लीटर जल का उपयोग किया जाता है। इनमें रसायन उद्योग 21 करोड़ लीटर, शराब उद्योग 7.8 करोड़ लीटर, कागज एवं पल्प उद्योग 30.6 करोड़ लीटर, चीनी उद्योग 30.4 करोड़ लीटर, चमड़ा उद्योग 2.87 करोड़ लीटर, कपड़ा एवं रंग उद्योग 1.4 करोड़ लीटर एवं अन्य उद्योग 16.8 करोड़ लीटर गंगा जल का उपयोग प्रतिदिन कर रहे हैं।

प्रो. विनोद तारे कहा, राइन और टेम्स नदी के सफाई मॉडल से काम नहीं चलेगा। गंगा और यूरोपीय नदियों के भौगोलिक, सामाजिक एवं आर्थिक पहलुओं में भारी अन्तर है।

इंडियन इंस्टीट्यूट ऑफ टेक्नोलॉजी कंसोर्टियम (आईआईटीसी) द्वारा तैयार गंगा रिवर बेसिन मैनेजमेंट प्लान 2015 (जीआरबीएमपी) में सुझाया गया है कि नदी में छोड़ी गई सामग्री से होने वाली दिक्कत से निपटने के लिये लगभग 6 से 7 लाख करोड़ रुपए की जरूरत है।

नदी में जान बची रहे और वो ज़िन्दगी का पैगाम देती रहे इसके लिये ज़रूरी है कि पर्यावरण के लिहाज़ से उसके बहाव का लगातार आकलन हो और उसके बाद ही उसमें बाँध जैसी बेड़ियाँ डालने से जुड़े बड़े फ़ैसले लिये जाएँ। एक ऐसे दौर में जब बड़े बाँधों की भूमिका सवालों के घेरे में है, सुप्रीम कोर्ट में कई बाँधों को मंज़ूरी देने की माँग पर सुनवाई जारी है और सरकार के रवैये को शक़ से देखा जा रहा है।

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