भूजल गुणवत्ता क्या है, भूजल प्रदूषण के कारण और निगरानी (Meaning of groundwater quality, causes and monitoring of Groundwater pollution in Hindi)
जनसंख्या वृद्धि, शहरीकरण. औद्योगीकरण एवं कृषि संबंधी गतिविधियों के कारण भूजल संसाधनों पर अत्यधिक दबाव है। प्राकृतिक (Geogenic) एवं मानव जनित (Anthropogenic) गतिविधियों के कारण भूजल गुणवत्ता में ह्रास बढ़ती चिंता का विषय है। अंतर्राष्ट्रीय मानक संगठन द्वारा निगरानी की निम्न परिभाषा दी गई है। ‘योजनाबद्ध तरीके से नमूनों का एकत्रीकरण जल मापन की प्रक्रिया एवं उनका संकेत कोड, अभिलेखन, विशेष उद्देश्यों की पूर्ति हेतु करना” ।
भूमि जल के रासायनिक घटक
सोडियम (Na):- मृदा , पौधों पानी और खाद्य पदार्थों में सोडियम व्यापक रूप से पाया जाता है। अधिकांश सोडियम युक्त खनिजों में सोडियम क्लोराइड पाया जाता है। भूजल में सोडियम प्रायः प्राकृतिक रूप में पाया जाता है। भूजल में निहित सोडियम से गंध नहीं आती पर यदि इसकी सांद्रता 200 Mg/लीटर या उससे अधिक है तो इसका स्वाद पता चलता है। सभी प्रकार के भूजल में सोडियम रहता है क्योंकि इसके यौगिक प्रायः अधिकांश शैल एवं मृदाओँ में पाये जाते हैं जिनमें सोडियम आसानी से घुल जाता है। भूजल में सोडियम के अधिकता के कुछ आम स्रोत निम्न हैं -
- सोडियम धारित शैल एवं खनिजों के अपरदन से*
- कुछ जलभृतों में प्राकृतिक रूप में पाया जाने वाला खारा पानी
- नमक से दूषित सतही जल का रिसाव*
- मल जल प्रवाह द्वार भूजल प्रदूषण
- लैंडफिल या औद्योगिक स्थानों से लीचट का रिसाव
पोटेशियम (K)-- यह आमतौर पर मिट्टी एवं चट्टानों में पाया जाता है। जल में पोटेशियम का न कोई गंध होता है न कोई रंग। लेकिन इसके कारण पानी का स्वाद नमकीन हो सकता है। पोटेशियम के कुछ मुख्य स्रोत निम्न हैं -
- पोटेशियम आधारित खनिजों ( जैसे फेल्सपार आदि) के अपक्षय एवं अपरदन से
- उर्वरकों के रिसाव से
- नमक पानी अतिक्रमण के संवेदनशील क्षेत्रों में समुद्री पानी से
कैल्शियम (Ca):- यह चट्टानों विशेषतः चूना पत्थर (संगमरमर कैल्साइट, डोलोमाइट,जिप्सम, फ्लोराइड, एवं अपाटाइट आदि ) के अपक्षय, मृदा के रिसाव एवं लिचिंग से ताजे जल में प्रवेश करता है। धरातलीय जल में कैल्शियम की मात्रा भूमि जल की अपेक्षा कम होती है। कैल्शियम पानी की कठोरता का एक कारक है क्योंकि यह (Ca++,आयन के रूप में पानी में पाया जाता है।
मैग्नीशियम (Mg);- इसके कारण पेयजल का स्वाद अवांछनीय हो सकता है। यदि इसकी सांद्रता 100 मिग्रा प्रति लीटर (Mg/लीटर) या उससे से अधिक है तो संवेदनशील लोगों के लिए पेयजल का स्वाद अप्रिय हो सकता है। औसत व्यक्ति के लिए इसके 500 मिग्रा प्रतिलीटर (Mg/लीटर) के सांद्रता पर स्वाद अप्रिय होता है। पेयजल में मैग्नीशियम की अधिकता के कारण रेचक प्रभाव (Laxative Effect) पड़ सकता है, विशेषतः तब जबकि मैग्नीशियम सल्फेट की सांद्रता 700 Mg/लीटर से अधिक होती है।
कार्बोनेट और बाई-कार्बोनेट (Co3 & HCo3) :- वर्षा जल एवं बर्फ में घुलित कार्बन डाइऑक्साइड भूजल में पाए जाने वाले कार्बोनेट एवं बाइकार्बोनेट आयनों का प्रमुख स्रोत है। कार्बनिक तत्वों के क्षय विघटन द्वारा कार्बन डाइऑक्साइड (Co2) निकलती है। जल के पीएच (Ph) से ही इसमें उपस्थित कार्बन डाइऑक्साइड के रूप का संकेत मिलता है। साधारणत: भूजल में बाईकार्बोनेट की सांद्रता 700 से 800 पीपीएम तक होती है।
सल्फेट (So4):-.. वायुमंडलीय वर्षा में सल्फर की मात्रा केवल 2 भाग प्रति मिलियन तक होती है परन्तु चट्टानों में गतिशील होने के कारण विभिन्न रासायनिक क्रियाओं के फलस्वरूप इसकी सांद्रता में व्यापक बदलाव हो जाता है। आग्नोय एवं कायान्तरित शैल में उपस्थित सल्फाइड खनिज एवं अवसादी शैल में उपस्थित जिप्सम एवं एनहाइड्राइड सल्फर के प्रमुख स्रोत हैं। उर्वरकों के प्रयोग एवं मृदा सुधार से भी भूमिजल में सल्फर की सान्द्रता ज्यादा हो सकती है।
क्लोराइड (Ci):-.. हालांकि सतही चट्टानों में इसकी उपस्थिति का कोई महत्व नहीं होता परन्तु भूजल में इसकी उपस्थिति एक महत्वपूर्ण पहचान के रूप में देखी जाती है। कुछ प्रक्रियाओं जैसे वाष्पीकरण; नमक का विघटन, अवसादीकरण के दौऱन परतों के बीच में जमाजल एवं समुद्री जल आतिकमण आदि कारणों से भूमिजल में क्लोराइड की सान्द्रता बढ़ जाती है। क्लोराइड लवण अत्यधिक घुलनशील होते हैं और जलाशय शैल के खनिजों के साथ रासायनिक क्रिया से मुक्त होकर भूमिजल में सोडियम क्लोराइड के रूप में रहते हैं । भूमिजल में कैल्शियम एवं मैग्नीशियम के रूप में क्लोराइड बहुत कम पाया जाता है। असामान्य सान्द्रता खनिज एवं औद्योगिक कचरे के कारण हो सकती है।
नाइट्रेट (No3):-. नाइट्रेट चट्टानों में एक मामूली घटक है, परन्तु वातावरण में एक प्रमुख घटक है। वर्षा जल में नाइट्रेट की औसत सांद्रता केवल 0 से 2 पीपीएम है। अतएव इसी कारण पेयजल में इसकी सांद्रता 5 पीपीएम के नीचे ही रहती है। अतः कार्बनिक पदार्थों केअपक्षय, सीवेज अपशिष्ट एवं उर्वरकों के प्रयोग से ही नाइट्रेट की अधिकता होती है। कुछ छिटपुट क्षेत्रों में नाइट्रेट की सांद्रता अधिक हो सकती है।
पेयजल मानक
जल गुणवत्ता मानक स्वास्थ्य अधिकारियों एवं सेनेटरी इंजीनियरों द्वारा उस समय विकसित किया गया जब जल जनित रोग एवं पेयजल के परस्पर संबंध स्थापित हो चुके थे। विश्व स्वास्थ्य संगठन ने पेयजल गुणवत्ता हेतु दिशा निर्देश क्रमशः 1983-84 एवं 1993-97 में प्रथम एवं द्वितीय संस्करण प्रकाशित किया। हाल ही में विश्व स्वास्थ्य संगठन द्वारा प्रकाशित पेयजल गुणवत्ता-2004 के दिशा निर्देश सबसे आधुनिक हैं।
सन 1983 में सर्वप्रथम भारतीय मानक संगठन ने भारतीय मानक पेयजल मानक Specification इस उद्देश्य के साथ बनाये गये कि इससे पेयजल गुणवत्ता का आकलन; इसका उपचार एवं आपूर्ति की प्रभावशीलता की जांच हो सके। समय-समय पर इन मानकों की समीक्षा की गई तथा आवश्यकतानुसार इसमें सुधार भी किये गये। सन 2009 में भारतीय मानक संस्थान (Bureau of Indian Standard) ने पेयजल मानकों (IS 10500) के दूसरे संशोधन का प्रस्ताव किया है। मानक में स्वीकार सीमा का उल्लेख है और इसकी पृष्ठभूमि को इंगित करता है। इसमें स्वीकार्य सीमा को लागू करने की सिफारिश की गई है। पेयजल का भारतीय मानक (IS 10500-2009 ) नीचे की तालिका में उद्धृत है।
भारतीय पेयजल मानक (IS 10500)-2009
क्रम सं. | अवयव | आवश्यकता एवं स्वीकार्य सीमा | स्वीकार्य सीमा के बाहर विपरीत प्रभाव | विकल्प के अभाव में अनुमति स्तर |
1 | रंग. Hazen Unit Max | 5 | ग्राहक की स्वीकार्यता घटती है | 15 |
2 | गंध | सहमति अनुसार | - | सहमति अनुसार |
3 | स्वाद Taste | सहमति अनुसार | - | सहमति अनुसार |
4 | मलिनता - Turbidity) NTU max | 1 | 5 के ऊपर होने से ग्राहक की स्वीकार्यता घटती है | 5 |
5 | घुलित ठोस Dissolved Solids, Mg/लीटर | 500 | इसके ऊपर स्वाद घटता है, एवं आंतों में जलन होती है। | 2000 |
6 | पीएच वैल्यू | 6.5-8.5 | इसके ऊपर श्लेषम झिल्ली एवं जल आपूर्ति रचना प्रभावित होती है। | कोई छूट नहीं |
7 | सम्पूर्ण कठोरता Total Hardness As- Caco3, Mg/L max | 200 | जलापूर्ति रचनाओं में जंग, अधिक साबुन की खपत एवं धमनियों में पथरीकरण, कैल्सीफिकेशन | 600 |
8 | कैल्शियम Ca Mg/L | 75 | जलापूर्ति रचनाओं में जंग एवं घरेलु प्रयोग के लिए विपरीत प्रभाव | 200 |
9 | मैग्नीशियम Magnesium Mg/L Max | 30 | जलापूर्ति रचनाओं में जंग एवं घरेलु प्रयोग के लिए विपरीत प्रभाव | कोई छूट नहीं |
10 | सोडियम Na Sodium Mg/L Max | कोई दिशा निर्देश नहीं | हृदय-गुदा एवं रक्तवाहिका रोगियों के लिए हानिकारक | - |
11 | पोटैशियम Potassium K Mg/L Max | कोई दिशा निर्देश नहीं | एक आवश्यक पोषक तत्व पर अधिकता से रेचक होता है। | - |
12 | क्लोराइड Chloride Ci Mg/L Max | 250 | स्वाद एवं पाचन तंत्र पर दुष्प्रभाव, हृदय एव गुर्दा रोगियों के लिए घातक तथा जलापूर्ति में पाइप क्षरण | 1000 |
13 | सल्फेट - Sulphate So4 Mg/L Max | 200 | इन सीमा के ऊपर आंतों में जलन होती है, जब मैग्नीशियम एवं सोडियम उपस्थित रहता है। | 400 |
14 | नाइट्रेट Nitrate No3 Mg/L Max | 45 | बच्चों में Methaemoglo & vinamia रोग और प्रदूषण का संकेतक | कोई छूट नहीं |
15 | फ्लोराइड Fluoride F mg/L | 1.0 | दंत क्षरण, हड्डियों में विकार | Fluorosis 1.5 |
16 | लोहा Iron Fe Mg/L max | 0.3 | स्वाद प्रभावित होता है, कपड़ों पर दाग-धब्बे एवं लौह जनित जीवाणुओं का बढ़ना | कोई छूट नहीं |
17 | एल्युमिनियम Aluminum Al Mg/L Max | 0.03 | मस्तिष्क रोगकारक | 0.2 |
18 | कॉपर Copper Cu Mg/L Max | 0.05 | कसैला स्वाद फीका रंग पड़ना, जलापूर्ति पाइप एवं बर्तनों में जमना | 1.5 |
19 | मैंगनीज Manganese Mn Mg/L Max | 0.1 | घरेलू उपयोग एवं जल आपूर्ति प्रणाली पर विपरित प्रभाव, स्वाद एवं रंग पर भी विपरित प्रभाव | 0.03 |
20 | जिंक Zinc Zn mg/L max | 5 | कसैला स्वाद एवं जल का रंग बदल जाता है | 15 |
21 | बेरियम Barium Ba mg/L Max | 0.7 | हृदय संबंधी समस्याएं बढ़ जाती हैं। | कोई छूट नहीं |
22 | सिल्वर Silver Ag mg/L Max | 0.1 | - | कोई छूट नहीं |
23 | सेलेनियम Selenium Se mg/l Max | 0.01 | इस सीमा के ऊपर विषाक्त हो जाता है। | कोई छूट नहीं |
24 | मॉलिब्डेनम Molybdenum Mo mg/L max | 0.07 | हड्डियों में विकार होता है। | कोई छूट नहीं |
25 | बोरॉन Boron B mg/L Max | 0.5 | - | 1.0 |
26 | अवशोषित स्वतंत्र क्लोरीन Residual Free Chlorine Mg/L Max | 0.2 | इस सीमा से अधिक स्वतंत्र क्लोरीन होने पर अस्थमा, कोलाइटिस एवं एक्जीमा होता है। | कोई छूट नहीं |
27 | क्रोमियम Chromium Cr+6 mg/L Max | 0.05 | इस सीमा से ऊपर कर्क - कैंसर रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। | कोई छूट नहीं |
28 | आर्सेनिक Arsenic As mg/L Max | 0.001 | इस सीमा के ऊपर जल विषैला हो जाता है। | 0.05 |
29 | पारा Mercury Hg mg/L Max | 0.001 | इस सीमा के ऊपर जल विषैला हो जाता है। | कोई छूट नहीं |
30 | कैडमियम Cadmium Cd mg/L Max | 0.003 | इस सीमा के ऊपर जल विषैला हो जाता है। | कोई छूट नहीं |
31 | सीसा Lead Pb mg/L Max | 0.01 | इस सीमा के ऊपर जल विषैला हो जाता है। | कोई छूट नहीं |
32 | निकिल Nickel Ni mg/L Max | 0.02 | इस सीमा के ऊपर जल विषैला हो जाता है। | कोई छूट नहीं |
33 | साइनाइड Cyanide Cn Mg/l Max | 0.05 | इस सीमा के ऊपर जल विषैला हो जाता है। | कोई छूट नहीं |
34 | ब्रोमोफॉर्म Bromoform Mg/L Max | 0.1 | इस सीमा के ऊपर कर्क-कैंसर रोग होने की संभावना बढ़ जाती है। | कोई छूट नहीं |
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वर्तमान प्रणाली में अपरिरुद्ध जलभृतों में बनाये गये खुले कूपों या नलकूपों से संग्रहित जल के नमूनों की रासायनिक परीक्षण द्वारा भूजल गुणवत्ता की निगरानी की जा रही है। परन्तु जल गुणवत्ता में ह्रास के अध्ययन हेतु यह सलाह दी जाती है कि जल के नमूने जलभृत के विभिन्न समूहों उथले; मध्यम गहराई वाले एवं अधिक गहरे आदि से लिये जाये। नमूने जल निकास वाले कूपों से संग्रहित करना अपेक्षित है।
जल गुणवत्ता की लगातार निगरानी से भूजल में उपस्थित विभिन्न रासायनिक घटकों का एक ऐसा पृष्ठभूमि आंकड़ा बैंक तैयार होगा जिससे न सिर्फ पुराने आंकड़ों के साथ तुलनात्मक अध्ययन में मदद होगी वरन नमूनों की आवृत्ति एवं उनके स्थान भी तय होंगे। इन निगरानी कूपों का स्थान, इनकी संख्या एवं नमूना संग्रहण की आवृत्ति निगरानी व्यवस्था का बहुत ही महत्वपूर्ण पहलू हैं। भूजल की धीमी गतिशीलता के कारण जल गुणवत्ता में बहुत तेजी से कोई परिवर्तन नहीं होता हालांकि अपरिरुद्ध जलभृत के जल गुणवत्ता में परिवर्तन परिरुद्ध की तुलना में तीव्र होता है। इसके अतिरिक्त मानवकृत कारणों से भूजल गुणवत्ता में अल्पकाल में ही गिरावट आ सकती है जो कि उचित निगरानी प्रणाली में परिलक्षित की जा सकती है।
नलकूप एवं पीजोमीटर से जल नमूनों का संग्रहण -
उथले पीजोमीटर से जल गुणवत्ता की निगरानी मृदा से भूजल में नाइट्रोजन पोषक तत्वों के रिसाव के प्रभाव ( भारी धातुओं की उच्च सांद्रता; कृषि फसलों पर कीटनाशक एवं खनन गतिविधियों के प्रभाव) के अध्ययन में सहायक होती है। दूसरे या तीसरे या गहरे जलभृतों की निगरानी से प्राकृतिक (Geogenic) स्रोत या भूजल को प्रदूषण मुक्त करने के अध्ययन में सहायता मिलती है।
निगरानी कूपों से नमूना लेने के लिए एक नमूना संग्रहण यंत्र जिसे बेलर या ग्रेव भी कहते हैं; पीजोमीटर में नीचे डाला जाता है जिससे इसमें जल भर जाए। इस नमूने को ऊपर लाकर नमूने के लिए उपयुक्त प्लास्टिक बोतल में स्थानांतरित कर प्रयोगशाला में रासायनिक परीक्षण के लिए भेज दिया जाता है। इसके अतिरिक्त शक्ति चालित कूपों से पानी के नमूने पंप द्वाया एकत्रित किये जाने चाहिए।
केन्द्रीय भूमि जल बोर्ड में उपलब्ध डाटाबेस एवं पायलट प्रोजेक्ट क्षेत्रों में किये गये पारंपरिक अध्ययन के आधार पर नमूना स्थानों की संख्या एवं नमूना संग्रह की आवृत्ति उन क्षेत्रों में बढ़ाई जा सकती है जहाँ विस्तृत रूप से औद्योगिक एवं शहरीकरण में वृद्धि हुई हो और संवेदनशील हो। इससे भूजल के मानव कृत (Anthropogenic) एवं जीवाणु वीय संदूषण के अध्ययन में सहायता मिलेगी।
उपचार विधि
जल में उपस्थित अवांछनीय अवयवों की उपचार विधि निम्न है -
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मापदण्ड Parameter | उपचार विधि Treatment Methods |
गंदलापन Turbidity | छनन - Cloth Filtration |
बालू द्वार छनन (Slow Sand Filtration ) | |
जमाव प्रक्रिया (Coagulation) | |
घरेलू फिल्टर यंत्र द्वारा (Candle Filtration) | |
गंध Odour | वायु प्रवाह शुद्धिकरण द्वारा (Aeration) |
कोयला द्वारा छनन प्रक्रिया (Carbon Filtering using Charcoal) | |
उबालना (Boiling) | |
फ्लोराइड Fluoride | सक्रिय एल्यूमिनियम तकनीक (Activated Alumina Technology) |
नालगौड़ा तकनीक (Nalgonada Technique) | |
अमोनिया Ammonia | क्लोरिकरण (Chlorination) |
उबालना (Boiling) | |
लोहा (Iron) | ऑक्सीकरण व जमाव (Oxidation and Setting) |
कठोरता Hardness | उबालना, जमाव व क्षरण (Boiling and Setting / Filtration |
क्लोराइड Chloride | रिवर्स ऑस्मोसिस (Reverse Osmosis) |
आर्सेनिक Arsenic | आयन विनिमय एवं फिटकरी द्वारा (Ion Exchange. Alum iron coagulation) |
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निगरानी के लिए ग्राम मित्र -
जल गुणवत्ता निगरानी का एक उदाहरण ग्राम स्तर पर जल गुणवत्ता की निगरानी को मजबूत बनाने के लिए संपूर्ण गुजरात राज्य के गांवों में ग्राम मित्र नाम की टीम का गठन किया गया है। गैर सरकारी संगठनों के सहयोग से प्रखंड स्तरीय कार्यकर्ताओं के साथ गुजरात सरकार के समन्वय से प्रखण्ड स्तर पर प्रशिक्षण का आयोजन होता है। इन ग्राम मित्रों को गांव में पेयजल स्रोत से नमूना संग्रह करने की विधि के साथ उस स्रोत की सेनेटरी सर्वेक्षण करने का प्रयोग थी कराया जाता है। प्रशिक्षण के दौरान इन नमूनों का परीक्षण तथा स्रोत के आसपास की सफाई एवं जल गुणवत्ता के संबंधों के बारे में बताया जाता है। ये ग्राम मित्र राज्य के सभी गांव से जल स्रोत से नमूना इकट्ठा करने के साथ स्रोत के आसपास की सफाई के प्रति प्रभावशाली जागरूकता फैलाते हैं।