भूफियाओं के आगे नतमस्तक प्रशासन, सूचना आयोग के आदेश के बावजूद ज़मीन की सीमांकन नहीं होने का मामला

भूफियाओं के आगे नतमस्तक प्रशासन, सूचना आयोग के आदेश के बावजूद ज़मीन की सीमांकन नहीं होने का मामला

Published on
3 min read

एडीएम (प्रशासन) ने एक अगस्त को जारी सूचना आयोग के आदेश के बाद भी नहीं कराई भूमि मामले की संयुक्त जांच

सुमन सेमवाल, देहरादून, दैनिक जागरण, 30 दिसंबर 2019

सूचना आयोग के आदेश की नाफरमानी करना देहरादून के अपर जिलाधिकारी (एडीएम) प्रशासन रामजीशरण शर्मा को भारी पड़ सकता है। राज्य सूचना आयुक्त ने एडीएम को न सिर्फ यह नसीहत दी है कि वह सूचना का अधिकार अधिनियम का भली-भांति अवलोकन कर लें, बल्कि आयोग की शक्तियां भी गिना डालीं। इसके साथ ही उनसे दो माह के भीतर संयुक्त जांच कराकर रिपोर्ट भी मांगी है। ऐसा न करने पर कठोर कार्रवाई की चेतावनी भी दी है। यह आदेश उन अधिकारियों को आईना दिखाने वाला है, जो बात-बात पर यह कहते रहते हैं कि सूचना आयोग को जांच कराने का अधिकार नहीं है।

सरस्वती विहार निवासी अरुण कुमार गुप्ता ने भूमि विवाद को लेकर 13 मई 2016 को एसआइटी में शिकायत की थी। एसआइटी ने 27 जुलाई 2016 को जिलाधिकारी को पत्र भेजकर भूमि का सीमांकन कराने का आग्रह किया था। इस पत्र पर प्रशासन ने क्या जांच की। इसकी जानकारी अरुण कुमार गुप्ता ने आरटीआइ में मांगी थी। तय समय के भीतर सूचना न मिलने पर अरुण ने विभागीय अपीलीय अधिकारी जिलाधिकारी के पास अपील की। उन्होंने बताया कि आरटीआइ आवेदन के जवाब में सर्वे कानूनगो की जांच दी गई है। जबकि अरुण ने सीमांकन/जांच रिपोर्ट मांगी थी। इसके बाद उन्हें दोबारा यही आख्या दी गई। साथ में बताया गया कि सीमांकन के लिए तत्कालीन अपर जिलाधिकारी (प्रशासन) अरविंद कुमार पांडे ने उपजिलाधिकारी सदर, सहायक अभिलेख अधिकारी, तहसीलदार सदर व सर्वे नायब तहसीलदार की कमेटी बनाई है।इसे अधूरी जानकारी बताते हुए अरुण ने सूचना आयोग में अपील की। प्रकरण की सुनवाई करते हुए राज्य सूचना आयुक्त चंद्र सिंह नपलच्याल ने कहा कि एक तरफ पैमाइश के लिए संयुक्त कमेटी बनाई गई है और जांच के नाम पर महज एक सर्वे कानूनगो की आख्या दी जा रही है।आयोग ने एक अगस्त 2019 को आदेश दिया कि जांच कमेटी एक माह के भीतर रिपोर्ट प्रस्तुत करे। कलक्ट्रेट के लोक सूचना अधिकारी देवी प्रसाद नैनवाल ने वर्तमान एडीएम रामजी शरण शर्मा को इस बाबत याद भी दिलाया, मगर उन्होंने जांच नहीं कराई।

अपेक्षित सूचनाएं न मिलने पर अपीलार्थी ने आयोग में शिकायत दर्ज कराई। जिस पर राज्य सूचना आयुक्त चंद्र सिंह नपलच्याल ने तल्ख टिप्पणी करते हुए सूचना आयोग की शक्तियां व कृत्य गिनाए। उन्होंने कहा कि आयोग को न सिर्फ जांच कराने का अधिकार है, बल्कि जांच के दौरान वहीं शक्तियां प्राप्त हैं, जो सिविल न्यायालय में निहित होती हैं।

आयोग ने बताया, इन प्रकरणों में जांच का अधिकार

  1. ’ आरटीआइ एक्ट के अंतर्गत मांगी गई जानकारी देने में बाधा पहुंचाना।
  2. ’ समय-सीमा के भीतर जानकारी देने से इन्कार करना।
  3. ’ केंद्रीय या राज्य सूचना आयोग से संबंधित आवेदनों को स्वीकार करने से इन्कार करना।
  4. ’ आरटीआइ एक्ट के तहत भ्रमित करने वाली सूचना देना या गलत जानकारी देना। ’
  5.  इस अधिनियम के तहत मांगे गए अभिलेखों की पहुंच में बाधा आदि पहुंचाना।

नाफरमानी पर इस तरह की कार्रवाई का अधिकार

  1. ’ किन्हीं व्यक्तियों को समन करना और उन्हें उपस्थित कराना। साथ ही शपथ पर मौखिक या लिखित साक्ष्य   देने और दस्तावेज आदि पेश कराने की बाध्यता।
  2. ’ दस्तावेजों के प्रकटीकरण और निरीक्षण करवाना।
  3. ’ किसी न्यायालय का कार्यालय से किसी लोक अभिलेख या उसकी प्रति मंगवाना।
  4. ’ साक्षियों या दस्तावेजों की परीक्षा के लिए समन जारी करना।

कठोर कार्रवाई की भी दी चेतावनी

राज्य सूचना आयुक्त नपलच्याल ने कहा है कि संयुक्त जांच समिति में एसआईटी के प्रतिनिधि को भी शामिल किया जाए। यदि दो माह के अंदर रिपोर्ट नहीं मिलती है तो अपर जिलाधिकारी (प्रशासन) के खिलाफ कठोर कार्रवाई करने पर विचार किया जाएगा।

संबंधित कहानियां

No stories found.
India Water Portal - Hindi
hindi.indiawaterportal.org