चांद पर पानी

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सितंबर की शुरूआत भारत के अंतरिक्ष कार्यक्रम के लिए बहुत दुखद थी. समय से पहले ही चंद्रयान-1 बेकार हो गया और उसने काम करना बंद कर दिया. २९ अगस्त को जब चंद्रयान-१ परियोजना को समाप्त होने की घोषणा की गयी तब तक चंद्रयान द्वारा भेजी गयी तस्वीरों और आंकड़ों का विस्तृत अध्ययन नहीं किया जा सका था.

अध्ययन और विश्लेषण की शुरूआत ८ सितंबर से शुरू हुई. इससे पहले ७ सितंबर को बंगलौर के इसरो मुख्यालय में दस वैज्ञानिकों के दल ने एक बैठक की और तय किया कि चंद्रयान द्वारा भेजे गये आंकड़ों का विश्लेषण जितनी जल्दी शुरू किया जा सके उतना अच्छा रहेगा. पूरा विश्लेषण किया जा रहा है लेकिन 23 सितंबर को श्रीहरिकोटा में जी माधवन नायर ने कहा कि चांद पर पानी मिलने के पक्के सबूत हमें मिले हैं.

इसके पहले भारत और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने संयुक्त रूप से साइंस पत्रिका में इस बात का खुलासा किया था कि चांद पर पानी की पतली सतह का पता चला है जो ठोस अवस्था में है. यह खुलासा केवल भारत ही नहीं बल्कि दुनिया के लिए बहुत बड़ी उपलब्धि है. पिछले चालीस साल में अमेरिका के अलावा चीन, जापान और भारत ऐसे देश हैं जो जिन्होंने चांद का रहस्य जानने के लिए अभियान की शुरूआत की है. चीन और जापान ने भी अपने जो उपग्रह चांद की कक्षा में भेजे थे उनसे इस बात का अंदाज नहीं लग पाया था कि चांद पर पानी है तो किस अवस्था में है. 40 साल पहले अमेरिका के अपोलो अभियान द्वारा चट्टानों के अध्ययन से यह संकेत तो मिलता था कि चांद पर पानी होने की संभावना हो सकती है लेकिन इस बात को पक्के तौर पर नहीं कहा जा सकता था. लेकिन अब पूरी दुनिया के वैज्ञानिक इस खोज से उत्साहित हैं.

हालांकि अटल बिहारी वाजपेयी की सरकार ने जब चंद्रयान परियोजना को हरी झंडी दिखाते हुए इसके लिए बजट को संस्तुति दी थी तो देश में एक बड़े वर्ग ने इस बात की आलोचना की थी. उस वक्त कहा गया था कि सरकार पैसा बर्बाद कर रही है. विरोध और आलोचना करनेवालों का कहना था कि चंद्रमा की कक्षा में पहुंचकर कुछ डाटा इकट्ठा करने के लिए 386 करोड़ रूपये फूंकने की जरूरत नहीं है. यह आलोचना कितनी तीव्र थी इसे आप इस बात से समझ सकते हैं कि 22 अक्टूबर 2008 को जब जब चंद्रयान ने आंध्र प्रदेश के श्रीहरिकोटा से उड़ान भरी तो उसके बाद जी माधवन नायर ने और बातों के अलावा यह भी कहा कि ऐसे अभियानों का कोई सांकेतिक मतलब भर नहीं होता. हम चांद के भविष्य पर अपना दावा ठोंक रहे हैं. निश्चित रूप से नायर आलोचनाओं के दबाव में थे और उन्हें खुद इस बात का डर था कि असफलता मिली तो इसरो और उनकी टीम की बदनामी होगी.ऐसे वक्त में जब भारत के परमाणु परीक्षणों पर सवाल उठ रहे हैं चांद पर पानी का पता लगाकर भारत ने एक महत्वपूर्ण वैज्ञानिक छलांग लगाई है. जो लोग ऐसी परियोजनाओं की आलोचना करते हैं वे बंद दिमाग के लोग हैं जो यह मानते हैं कि विज्ञान के क्षेत्र में लकीर का फकीर बनने से कोई फायदा नहीं होगा. चंद्रयान परियोजना के साथ भी ऐसा ही हुआ था लेकिन दुनिया के सबसे सस्ते चांद परियोजना को सफलता पूर्वक पूरा करके साबित कर दिया है कि वैज्ञानिक जगत में उसने एक बार फिर बड़ी छलांग लगा दी है.

अभियान खत्म होने की समयसीमा के पहले ही 29 अगस्त को चंद्रयान ने रेडियो सिग्नल देने बंद कर दिये. हालांकि तब तक अभियान के लिए निर्धारित लक्ष्य को 95 प्रतिशत पूरा किया जा चुका था इसलिए इसरो ने तत्काल चंद्रयान मिशन को पूरा होने की घोषणा कर दी. अब आलोचकों ने कहना शुरू कर दिया कि उनकी आशंकाएं सच साबित हुईं और चंद्रयान अपने मिशन में असफल हो गया. लेकिन ऐसा नहीं हुआ था. भारत और अमेरिका के वैज्ञानिकों ने जब संयुक्त रूप से डाटा का अध्ययन किया तो पाया कि एक बड़े रहस्य से पर्दा उठ चुका है और चांद की सतह पर पानी मौजूद है. पानी का यह स्वरूप वैसा नहीं है जैसा धरती पर है लेकिन पानी का सबूत मिलने से चांद पर इंसान के भविष्य का दरवाजा जरूर खुल गया है.

यह कहना तो जल्दबाजी होगी कि चांद पर बस्तियों की तैयारी शुरू हो जानी चाहिए लेकिन अगले पचास सौ सालों में चांद अंतरिक्ष विज्ञान में एक महत्वपूर्ण अध्याय साबित होनेवाला है. आज दुिनयाभर के वैज्ञानिक भारतीय अभियान की इस महत्वपूर्ण खोज से रोमांचित हैं. यूरोप के वैज्ञानिकों ने तो भारत में आलोचना करनेवालों को डांट पिलाते हुए 11 सितंबर को बयान जारी किया था कि चंद्रयान अभियान की आलोचना करनेवालों को चुप हो जाना चाहिए क्योंकि इस अभियान के तहत जो लक्ष्य निर्धारित किये गये थे उसने उसे पूरा कर लिया है.
 

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