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द बेस्ट प्रैक्टिस: हुबली-धारवाड़

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वर्ष 2008 से 2011 के दौरान धारवाड़ जिला प्रशासन ने हुबली-धारवाड़ में खुली भूमि, झीलों-तालाबों, पहाड़ियों और सांस्कृतिक विरासत को सुरक्षित व संरक्षित करने का काम कुछ इस तरह से अंजाम दिया गया कि इसके प्रभाव अद्भुत हैं। इस कार्य को वर्ष 2011-12 में व्यक्तिगत श्रेणी के प्रधानमंत्री पुरस्कार से नवाजा गया। इस कार्य में प्रशासन द्वारा सभी सूचनाओं को साझा करने की पहल निर्णायक भूमिका रही। प्रस्तुत है इस कार्य, पीछे की शख्सियत, विचार, रणनीति व प्रभाव का संक्षेप:

विकसित की गई 600 एकड़ खुली भूमि का काफी हिस्से पर अवैध कब्जा था। प्रशासन ने अपने रिकार्ड में दर्ज रकबे के अनुसार सारी भूमि को कब्जा मुक्त कराया। जिला प्रशासक के तौर पर अपने रोजमर्रा के काम करते हुए मात्र तीन वर्ष की अवधि में इतने बड़े रकबे वाली भूमि की पहचान करना, कब्जा मुक्ति, सीवेज मुक्ति और सौंदर्यीकरण हेतु तमाम निर्माण सुनिश्चित करना आसान नहीं होता।

स्थान

हुबली-धारवाड़ कभी क्रमशः 15 अगस्त, 1855 और एक जनवरी, 1856 को अस्तित्व में आईं दो नगरपालिकाएं थीं। 1962 में हुबली-धारवाड़ नगर निगम बनने से एक जुड़वा शहर के रूप में तब्दील हो गईं। 15 लाख की बड़ी आबादी के साथ हुबली-धारवाड़ आज कर्नाटक का दूसरा सबसे बड़ा शहर है। हुबली एक प्रमुख व्यावसायिक केन्द्र है, तो धारवाड़ उत्तरी कर्नाटक का सांस्कृतिक मुख्यालय! उत्तरी कर्नाटक का प्रवेश द्वार!

कार्य

साधन केरे, तोला केरे, जयनगर केरे, नुग्गी केरे, रायपुर केरे, नवलूर केरे, केलेगेरी और उनकल समेत आठ विशाल झीलों तथा गोकुल ताल व सोमेश्वर ताल की भूमि का चिन्हीकरण, कब्जा मुक्ति, सीवेज मुक्ति व संरक्षण। कित्तूर चेन्नमा पार्क व महात्मा गांधी पार्क समेत लगभग 100 वर्ग एकड़ क्षेत्रफल भूमि का सौंदर्यीकरण। सांस्कृतिक परिसरों का निर्माण व रखरखाव। प्रत्येक ताल्लुके में एक ऑडिटोरियम। प्रति वर्ष 11 स्थानों पर एक समय-एक साथ धारवाड़ उत्सव का आयोजन।

शख्सियत

श्री दर्पण जैन, भारतीय प्रशासनिक अधिकारी- तत्कालीन उपायुक्त व जिलाधीश, धारवाड़। वर्तमान में कर्नाटक अरबन इन्फ्रास्ट्रक्चर डेव्लपमेंट एंड फाइनेंस लिमिटेड, बंगलुरु के प्रबंधक निदेशक के रूप में कार्यरत। श्री जैन ने मेकेनिकल इंजीनियरिंग की शिक्षा पाई। इनका मूल निवास स्थान हरियाणा के फ़रीदाबाद जिला है।

विचार

1.आज सभी शहर एक ही पैटर्न पर विकसित किए जा रहे हैं। दो शहरों के बीच में फर्क करना मुश्किल होता जा रहा है। सारा जोर ठोस ढांचों के निर्माण पर है। जबकि सच यह है कि प्रत्येक शहर का एक डी एन ए होता है; एक संचेतना होती है; उसे उभार दो। विकसित कर दो; उसे शक्ति दे दो, उसका अनोखापन खुद-ब-खुद विकसित हो जाएगी। यदि टिकाऊ चाहिए तो, स्थानीय विशेषता, स्थानीय शक्ति को विकसित करने से अच्छा तरीका कोई और नहीं हो सकता।

2. जितना दूसरों को सुनेंगे, उतनी अधिक जानकारी मिलेगी। लोग उस काम को सरकारी की बजाए अपना निजी काम मानने लगेंगे। काम का निर्धारण, क्रियान्वयन और रखरखाव उतना अधिक आसान हो जाएगा।

3. जानकारियों/सूचनाओं को विभागों व संबंधित नागरिकों के लिए जितना खुला व सहज सुलभ रखेंगे, पारदर्शिता व भरोसा उतना ज्यादा व जल्दी सुनिश्चित कर सकेंगे। अतः सूचनाओं के आदान-प्रदान की पहल खुद करें।

4.. कह देने से कोई कर लेगा, इस निर्भरता से काम नहीं चलेगा। जिम्मेदारी खुद लेनी हेागी।

5. बिना किसी पूर्वाग्रह व अतिरिक्त विकल्प रखते हुए काम करेंगे, तो काम में मुश्किलात कम होंगी।

6. जमीन ट्रांसफर करिए अथवा अलग स्कीम या प्रोजेक्ट दीजिए; ऐसी मांग करने की बजाए मौजूदा ढांचे में ही काम करने की कोशिश करेंगे, तो बहुत सारा समय बर्बाद होने से बच जाएगा और कुछ रचनात्मक काम कर सकेंगे।

हुबली-धारवाड़ का डी एन ए

हुबली-धारवाड़ की सांस्कृतिक विरासत 990 साल पुरानी है। सर्वश्री उस्ताद अब्दुल करीम खान, सवाई गांधर्व, कुमार गांधर्व, भीमसेन जोशी, गंगुबाई हंगल, सुधा मूर्ति, मल्ल्किार्जुन मंसूर और बसवराज राजगुरू जैसी शास्त्रीय संगीत की बड़ी हस्तियों की भूमि होने के नाते हुबली-धारवाड़ की सांस्कृतिक हैसियत तथा अहमियत और अधिक बढ़ जाती है। संगीत, साहित्य, अध्यात्म, शिक्षा से लेकर क्रिकेट तक इंदिरा गांधी मंत्रिमंडल में मंत्री रही सरोजिनी महिषी जैसी राजनैतिक हस्तियां इस छोटे से शहर ने दी हैं। नंदिनी नीलकर्णी जैसी बड़ी शख्यिसत तथा ज्ञानपीठ सम्मानित डी आर बेन्द्रे, वी के गोकक, गिरीश कर्नाड जैसे रचनाकार इसी जुड़वा शहर की उपज हैं। भौगोलिक दृष्टि से देखें तो, यहीं पश्चिमी घाट की पर्वतमाला विराम लेती है और घनी श्यामा उपजाऊ माटी अपना सफर शुरू करती है। धारवाड़ का मतलब ही है लंबे सफर के बाद विश्राम लेने का स्थान, संस्कृत भाषानुसार ’द्वार शहर’ यानी डोर टाउन। कुदरत ने झील, तालाब के अलावा शानदार आबोहवा जैसे उपहार देने में भी यहां कोई कमी नहीं छोड़ी। 220 वर्ग किलोमीटर वाले इस शहर में 20 छोटे-बड़े तालाब व झीलें हैं। कई छोटी पहाड़ियां हैं..टीले हैं। उनकल केरे नामक झील कभी हुबली शहर को पानी पिलाती थी और 190 एकड़ रकबे वाली केलेगेरी झील धारवाड़ को। धारवाड़ के पेड़े की मिठास कौन नहीं जानता! हुबली के कपास-मटर बाजार की ख्याति दूर-दूर तक है।

खुले संवाद ने सुनिश्चित की जनसहभागिता

जून, 2008 में जब श्री जैन हुबली-धारवाड़ के उपायुक्त नियुक्त हुए, उस वक्त अपनी तमाम महत्ताओं के बावजूद हुबली-धारवाड़ अतिक्रमण और शहरीकरण के दबाव में था। झीलें मर रही थीं। पार्क.. कचरे और असामाजिक तत्वों के अड्डे बन चुके थे। सीवेज का गंदा-बदबूदार पानी जगह-जगह फैलकर नागरिकों की सेहत के समक्ष चुनौती पेश कर रहा था। सांस्कृतिक विरासत को संजोकर रखने के न प्रयास थे और कोई ढांचागत व्यवस्था।

उन्होंने तीनों स्तर पर जनसहभागिता सुनिश्चित करना महत्वपूर्ण माना

कार्य का निर्धारण, क्रियान्वयन व रखरखाव। विभागों के बीच जानकारियों के आदान-प्रदान का अधिकारिक तंत्र तो था ही, प्रत्येक स्थल से जुड़े नागरिकों को अभिभावकों के तौर पर जोड़ा गया। उदाहरण के लिए नृपतुंग नामक पहाड़ी के नागरिकों को ‘नृपतुंग बिट्टा मित्रा’ के रूप में जुड़े। नागरिक बताते हैं कि कहां.. कौन सा काम हो रहा है ? किसके द्वारा, कितने धन और तरीके से किया जा रहा है? यह सभी जानकारियाँ उन्हे मालूम रहती थी।

अन्य महत्वपूर्ण कदम

कार्य को सफलतापूर्वक संपन्न करने के लिए प्रशासन ने सभी का साथ सुनिश्चित किया। वास्तुकारों को जोड़ा। अल्प महत्व के मद का बजट जोड़कर निधि बनाई। नवाचारों के लिए खिड़की खुली रखी। सपने को सच में उतारने का ब्लू प्रिंट तैयार किया। क्रियान्वयन हेतु कार्यबल बनाया। निष्क्रिय पड़ी जिला निर्माण एजेंसी-धारवाड़ क्रियान्वयन एजेंसी को सक्रिय किया। अतिक्रमण व आसामाजिक तत्वों के प्रति सख्ती दिखाई। मजबूत जननिगरानी तंत्र खड़ा किया। सांस्कृतिक प्रयासों को गति देने के लिए न्यास सर्जित किए।

परिणाम अद्भुत

कीचड़, कचरे और सीवर के रूप में फैले बदनुमा दाग से शहर को मुक्ति मिली। 40 करोड़ रुपये की छोटी सी लागत से एक हजार करोड़ मूल्य की परिसम्पति 600 एकड़ का संरक्षण व सुरक्षा सुनिश्चित हुई। गंगुबाई हंगल गुरुकल जैसे देश में अपने तरह के अकेले संगीत संस्थान की स्थापना संभव हुआ। पार्किंग-जलपान गृह-मनोरंजन गृह- प्रवेश शुल्क के जरिए राजस्व में प्रतिमाह दस लाख रुपए की बढ़ोतरी हुई। एक लाख क्युबिक मीटर अतिरिक्त पानी का भंडारण क्षमता का विकास हुआ। भूजल स्तर में काफी बढ़ोतरी। करीब तीन लाख दर्शकों को मिला 300 सांस्कृतिक क्रार्यक्रमों का रसास्वादन...सुखद परिणाम कई रूप में आए। इस प्रयास को वर्ष 2011-12 के प्रधानमंत्री पुरस्कार (व्यक्तिगत श्रेणी) से नवाजा गया। व्यक्तिगत श्रेणी में दिए गए कुल तीन पुरस्कारों में से एक प्रमुख।

खुली सूचनाओं ने निभाई भूमिका

पदभार संभालते ही श्री दर्पण जैन ने खुद पहल कर सबसे पहले लोगों को बुलाकर....उनके पास जाकर उनसे बात की। मिली जानकारी के अनुसार काम तय किया। इस शहर का डी एन ए क्या है? यह सब श्री जैन को स्थानीय नागरिकों ने ही बताया। “इतने महत्वपूर्ण शहर को कर्नाटक के दूसरे अन्य शहरों की तुलना में निश्चित ही अधिक सुंदर, सांस्कृतिक और सुरुचिपूर्ण होना चाहिए।’’ यह सपना भी हुबली धारवाड़ के नागरिकों का ही था। प्रशासन ने इसे सिर्फ जाना और पूरा करने का प्रयास किया।

इस प्रयास के दौरान प्रशासन ने बगैर मांगे समस्त सूचनाएं लाभार्थियों को दी भीं और उनसे ली भी। इस मंशा के कारण जहां पूरे कार्य में लगातार पारदर्शिता बनी रही, वहीं लोगों का प्रशासन पर भरोसा कायम हुआ। परिणामस्वरूप जनसहभागिता भी सुनिश्चित हो सकी और कार्य की निगरानी व बेहतरी को नागरिकों ने अपनी ज़िम्मेदारी समझ निर्वाह किया। लागत के न्यूनतम होने का एक कारण यह भी रहा।

इसका एक बड़ा लाभ यह हुआ कि कार्य शुरू होने के समय प्रशासन को स्थानीय विरोध का सामना नहीं करना पड़ा। विकसित की गई 600 एकड़ खुली भूमि का काफी हिस्से पर अवैध कब्जा था। प्रशासन ने अपने रिकार्ड में दर्ज रकबे के अनुसार सारी भूमि को कब्जा मुक्त कराया। जिला प्रशासक के तौर पर अपने रोजमर्रा के काम करते हुए मात्र तीन वर्ष की अवधि में इतने बड़े रकबे वाली भूमि की पहचान करना, कब्जा मुक्ति, सीवेज मुक्ति और सौंदर्यीकरण हेतु तमाम निर्माण सुनिश्चित करना आसान नहीं होता। बावजूद इसके यह हुआ।

कार्य संपन्न हो जाने के बाद इसके रखरखाव के लिए प्रवेश शुल्क के जरिए जो आर्थिक व्यवस्था सोची गई थी, नागरिकों ने उसे सहर्ष स्वीकार किया। परिणामस्वरूप आज हुबली-धारवाड़ नगर निगम को शहर की 8 बड़ी झीलों, दो तालाबों, दो पार्कों, दो पहाड़ियों व सांस्कृतिक केन्द्रों के रखरखाव पर एक भी पैसा अपनी ओर से खर्च नहीं करना पड़ता। श्री जैन के तबादले के बाद ये ‘बिट्टा मित्रा’ खुद जाकर नए उपायुक्त को बताते हैं कि क्या होना चाहिए।

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