धरती गरम हो रही है
धरती गरम हो रही है

धरती धधक रही है

चर्चा है कि मानवीय गतिविधियों द्वारा फिलहाल तो पर्यावरण के लिए भयानक संकट पैदा हो गया है। प्रकृति बार-बार विभिन्न तरीके से चेतावनी दे रही है, फिर भी लोग अनसुना कर रहे हैं। करीब करीब दो दशक पहले तक देश के ज्यादातर राज्यों में अप्रैल माह में अधिकतम तापमान औसतन 32-33 डिग्री रहता था अब वह 40 के पार प्राय: रहता है। 
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हमारी प्राकृतिक संसाधनों की दुर्लभता और मानवता के पर्यावरणीय अपव्यय के कारण, हमारे प्राकृतिक संतुलन में असंतुलन का सामना करना अब एक बहुत बड़ी चुनौती बन गया है। धरती की धधकना एक चिंताजनक विषय है जो हमें सावधान करने के लिए आहत करता है। न केवल भारत में बल्कि वैश्विक स्तर पर तापमान में लगातार हो रही बढ़ोतरी तथा मौसम का निरंतर बिगड़ता मिजाज अब डराता है। संयुक्त राष्ट्र जलवायु परिर्वतन से निपटने के लिए अंतराष्ट्रीय स्तर पर सम्मेलन तो कराता रहा है किंतु इसके बावजूद इस दिशा में अभी तक ठोस कदम उठाते नही देखे गए हैं। वैश्विक तापमान के कारण मौसम का मिजाज किस कदर बदल रहा है इसका अनुमान इसी से लगाया जा सकता है कि उत्तरी ध्रुव के तापमान में एक दो नहीं बल्कि बड़ी बढ़ी बढ़ोतरी देखी गईं। पहाड़ों का सीना चीरकर हरे भरे जंगलों को तबाह कर हम जो कंक्रीट के जंगल विकसित कर रहे हैं वह विकास नही बल्कि विनाश के तरफ बढ रहे हैं। पहाड़ों में बढ़ती गर्माहट के चलते हमें अक्सर घने वनों में भयानक आग लगने की खबरें सुनने को मिलती है। पहाड़ों की इसी गर्माहट का असर मैदानी इलाकों का सीधा असर निचले मैदानी इलाकों पर पड़ता है जहां का तापमान बढ़ता ही जा रहा है। बढ़ते तापमान के परिणाम को भुगतने के लिए तैयार रहना होगा। करीब दो दशक पहले देश के कई राज्यों में अप्रैल के महीने में अधिकतम तापमान 32 से 35 डिग्री रहता था अब वह 40 पार कर जाता है। संयुक्त राष्ट्र संस्था आई पी सी सी ने कुछ वर्ष पहले रिर्पोट मे चेतावनी दिया था कि ग्रीन हाउस के मौजूदा उत्सर्जन स्तर को देखते हुए 2030 तक दुनिया का तापमान 1.5 डिग्री तक बढ़ जायेगा। रिर्पोट में कहा गया है कि भारतीय उपमहाद्वीप में भी इसके भयानक परिणाम होंगे। 

धरती की धधकने के पीछे कई कारण हैं, परंतु सबसे प्रमुख कारण वैश्विक तापमान जो तमाम तरह की सुख सुविधाएं व संसाधनों को जुटाने के लिए किए जाने वाले मानवीय क्रिया कलापों की ही देन है। पेट्रोल, डीजल से उत्पन्न होने वाले धुएं ने वातावरण में पहले के अपेक्षा 30 फीसदी ज्यादा कार्बन डाइऑक्साइड मौजूद है जिसकी मौसम का मिज़ाज बदलने में अहम भूमिका है। पेड़ पौधे कार्बन डाइऑक्साइड को अवशोषित कर पर्यावरण संतुलन बनाने में अहम भूमिका निभाते रहे हैं लेकिन कुछ दशकों से वन क्षेत्रों को बड़े पैमाने पर कंक्रीट के जंगल में तब्दील किया जाता रहा है। अत्यधिक उपभोग, असंतुलित जीवनशैली, और प्राकृतिक संसाधनों के अत्यधिक उपयोग के परिणामस्वरूप हमारी प्राकृतिक संतुलन को हानि पहुंचाते हैं। इससे जलवायु परिवर्तन, वन्य जीवन की हत्या, और अनियमित आबादी वृद्धि जैसी समस्याएं बढ़ रही हैं। हमें इस चुनौती का सामना करने के लिए सक्रिय रूप से काम करना होगा। पर्यावरण की संरक्षण में हमारी अभिभावकता और सक्रिय भागीदारी होना अत्यंत आवश्यक है। उत्पादन प्रक्रिया में ऊर्जा की बचत, वन्य जीवन की संरक्षण, और सामुदायिक जल संसाधन के प्रबंधन को बढ़ावा देना आवश्यक है। इसके अलावा, हमें जनसंख्या नियंत्रण, शिक्षा, और सामाजिक जागरूकता को बढ़ाने के लिए कड़ी मेहनत करनी चाहिए। लोगों को पर्यावरण की रक्षा के महत्व को समझाने के लिए जागरूकता अभियानों का समर्थन करना होगा।

याद रखना होगा कि मौसम विभाग का तो अनुमान है कि अगले तीन दशकों में इन राज्यों में तापमान में वृद्धि 5 डिग्री तक दर्ज की जा सकती है और इसी प्रकार तापमान बढ़ता रहा तो एक ओर जहां जंगलों में आग लगने की घटनाओं में बढ़ोतरी होगी, वहीं धरती का करीब 20-30 प्रतिशत हिस्सा सूखे की चपेट में आ जाएगा तथा एक चौथाई हिस्सा रेगिस्तान बन जाएगा, जिसके दायरे में भारत सहित दक्षिण पूर्व एशिया, मध्य अमेरिका, दक्षिण आस्ट्रेलिया, दक्षिण यूरोप इत्यादि आएंगे।

अंत में, हमें यह याद रखना चाहिए कि हम सभी इस धरती के अभियान का हिस्सा हैं। हमें आज ही से काम करना चाहिए, ताकि हम और हमारे आने वाले पीढ़ियाँ इस अनमोल धरा को साझा कर सकें। धरती को संभालने का समय अब है, और हमें इसे संरक्षित और सुरक्षित बनाने के लिए साथ मिलकर काम करना होगा।

लेखक प्रशांत सिन्हा पेशे से उद्योगपति हैं और बैंकों के लिए सॉफ्टवेयर डिजाइन करने का काम करते हैं। लेकिन पानी-पर्यावरण के मुद्दे ऊपर वह लगातार सोचते और लिखते रहते हैं।

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