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एक मेला परिंदों के नाम

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तारीख - 09 जनवरी 2018,
स्थान - शेखा झील, अलीगढ़, उत्तर प्रदेश
आयोजक - हरीतिमा पर्यावरण सुरक्षा समिति, अलीगढ़


सालिम अली की संगत के एक मौके ने अलीगढ़ के रहने वाले सुबोधनंदन शर्मा की जिन्दगी का रास्ता बदल दिया। श्री सुबोधनंदन शर्मा, आज आजाद परिंदों को देख खुश होते हैं; कैद परिंदों को देख उन्हें आजाद कराने की जुगत में लग जाते हैं। बीमार परिंदा, जब तक अच्छा न हो जाये; सुबोध जी को चैन नहीं आता। परिंदों को पीने के लिये साफ पानी मिले। परिदों को खाने के लिये बिना उर्वरक और कीटनाशक वाले अनाज मिले। परिंदों को रहने के लिये सुरक्षित दरख्त... सुरक्षित घोसला मिले। पक्षी बन उड़ती फिरूँ मैं मस्त गगन में,
आज मैं आजाद हूँ दुनिया के चमन में...

आसमान में उड़ते परिंदों को देखकर हसरत जयपुरी ने फिल्म चोरी-चोरी के लिये यह गीत लिखा। लता मंगेशकर की आवाज, शंकर जयकिशन के संगीत तथा अनंत ठाकुर के निर्देशन ने इस गीत को लोगों के दिल में बैठा दिया। परिंदों को देखकर ऐसी अनेक कवि कल्पनाएँ हैं; ''पिय सों कह्ये संदेसड़ा, हे भौंरा, हे काग्..'' - मलिक मोहम्मद जायसी द्वारा पद्मावत की नायिका नागमती से कहे इन शब्दों से लेकर हसरत जयपुरी के एक और गीत ''पंख होते तो उड़ आती रे, रसिया ओ जालिमा..'' (फिल्म सेहरा) तक। परिंदों को देखकर आसमान में उड़ने के ख्याल ने ही कभी अमेरिका के राइट बन्धुओं से पहले हवाई जहाज का निर्माण कराया।

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श्री सुबोधनंदन शर्मा
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