गौरैया चिड़िया पर अब लुप्त होने का संकट मंडरा रहा है
गौरैया चिड़िया पर अब लुप्त होने का संकट मंडरा रहा है

गौरैया इटावा में सैकड़ों की तादाद में नजर आईं

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कभी आम घरों में हमेशा रहने वाली गौरैया नामक चिड़िया करीब-करीब विलुप्त होने के कगार पर आ खड़ी हुई थी इसको लेकर वन अफसरों और तमाम पर्यावरणीय संस्थाओं की ओर से चिंता जताई जाने लगी थी आम लोग गौरैया को देखने के लिये तरस गये थे पूरी तरह से गायब हो चुकी गौरैया चिड़िया की खासी तादाद उत्तर प्रदेश के इटावा में देखे जाने से एक उम्मीद बंधी है कि अब गौरैया लुप्त नहीं होगी।इटावा में एक हजार से अधिक की तादाद में गौरैया चिड़िया के देखे जाने से वन अफसरों के साथ आदमी बेहद खुश नजर आ रहे हैं। लुप्त हो रही गौरैया चिड़ियों की फौज को खासी तादाद में खोज निकालने में कामयाबी पाई है। गौरैया एक ऐसी चिड़िया है, जो इंसान के घर आँगन में घोसला बनाकर उसके सबसे करीब रहती है लेकिन शहरों के विस्तार और हमारी बदलती जीवन शैली से अब गौरैया के रहन-सहन और भोजन में कई दिक्कतें आ रही हैं। यही वजह है कि शहरों में अब गौरैया की आबादी कम होती जा रही है।

पुराने गाँवों के खेत खलिहान, तालाब और बाग बगीचे कंक्रीट के जंगल बन गए। बची-खुची हरियाली पिछले कुछ सालों में जमीन और सड़कों के चौड़ीकरण, पक्की टाइल्स और पत्थर के पार्कों में चली गयी। छिन गया दाना-पानी हमारे घर में आँगन था और आँगन से सटा बरामदा हम जब सुबह उठते थे, आँख खुलती थी तो बहुत सी चिड़ियां, खासतौर से गौरैया हमारे आँगन और बरामदे में भरी रहती थीं। पेड़ों की जगह बिजली, टेलीफोन के खम्भों, मोबाइल टावर्स, बहुमंजिली इमारतों ने ले ली। इंसान ने बढ़ती आबादी के लिए तो जगह बनायी लेकिन जाने कितने पशु-पक्षी इसके चलते बेघर हो गए और उनका दाना-पानी छिन गया। ऐसा माना जाता है कि शहरीकरण के इस दौर में गौरैया भी प्रभावित हुईं। गौरैया आबादी के अंदर रहने वाली चिड़िया है, जो अक्सर पुराने घरों के अंदर, छप्पर या खपरैल अथवा झाड़ियों में घोंसला बनाकर रहती हैं। घास के बीज, दाना और कीड़े-मकोड़े गौरैया का मुख्य भोजन है, जो पहले उसे घरों में ही मिल जाता था, लेकिन अब ऐसा नहीं है। गौरैया के झुण्ड दिन भर उनके आँगन में मंडराते रहते थे आप कह सकते हैं कि पहले हमारे घर में अगर 40-50 चिड़ियां आती थीं तो अब एक भी नहीं दिखती है।

गौरैया मनुष्य के लिए एक उपयोगी चिड़िया है

गौरैया अब संकट में

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