ग्लोबल वॉर्मिंग से विश्व ‘पर्यावरण आपातकाल' के मुहाने पर
हिन्दुस्तान समाचार। ग्लोबल वॉर्मिंग का प्रकोप इस कदर बढ़ गया है कि उसे शब्दों में बयां नहीं किया जा सकता। दुनिया आज ‘पर्यावरण आपातकाल' के मुहाने पर आ खड़ी हुई है। ‘बायो साइंस' जर्नल में मंगलवार को छपे विश्लेषण में 11 हजार से अधिक शीर्ष वैज्ञानिकों के एक ने यह चेतावनी दी है। उनकी यह चेतावनी अमेरिकी राष्ट्रपति डोनाल्ड ट्रंप के पेरिस जलवायु समझौते से अलग होने के आधिकारिक ऐलान के एक दिन बाद आई है।
माना जा रहा है कि कुछ अन्य देश अमेरिका के नक्शेकदम पर चलते हुए कार्बन उत्सर्जन में कटौती की अपनी प्रतिबद्धता से मुकर सकते हैं। वहीं, वैज्ञानिकों के एक अन्य दल ने पेरिस समझौते को जलवायु परिवर्तन पर काबू पाने की दिशा में बहुत देरी से उठाया गया कदम करार दिया है। उन्होंने समझौते के तहत कार्बन उत्सर्जन में कटौती के लक्ष्य को भी बेहद कम बताया है। यूरोपीय संघ (ईयू) ने अक्तूबर 2019 के ज्ञात मौसम इतिहास का सबसे गर्म अक्तूबर माह होने की आधिकारिक घोषणा की है। इससे पहले जुलाई 2019 पृथ्वी का अब तक का सबसे गर्म महीना बनकर उभरा था।
(आईपीसीसी) के अध्यक्ष रॉबर्ट वॉटसन का कहना है कि पेरिस समझौते के तहत तीन-चौथाई देशों की ओर से कार्बन उत्सर्जन में कमी के लिए जताई गई प्रतिबद्धता ग्लोबल वॉर्मिंग की दर घटाने में कुछ खास कारगर नहीं साबित होगी। एक्का-दुक्का देशों को छोड़ दें तो ज्यादातर अमीर, गरीब और उभरते मुल्क इस दिशा में बेहद मामूली पहल कर रहे हैं। हार्वर्ड यूनिवर्सिटी में समुद्र विज्ञान के प्रोफेसर जेम मैककार्टी ने कहा, गरीब देशों से कार्बन उत्सर्जन न के बराबर है लेकिन उनकी ऊर्जा जरूरतें पूरी करने के लिए अक्षय ऊर्जा स्रोतों के इस्तेमाल की विधि ईजाद करने में तकनीकी व वित्तीय सहयोग देना बेहद जरूरी है। ऐसा न होने पर ग्लोबल वॉर्मिंग का संकट और गहराएगा।
' वैज्ञानिकों की मानें तो साल 2018 में वैश्विक स्तर पर कार्बन प्रदूषण में अप्रत्याशित बढ़ोतरी दर्ज की गई और यह 41 अरब टन पर पहुंच गया, जो 2017 के मुकाबले दो फीसदी ज्यादा है। कार्बन उत्सर्जन में कटौती में नाकाम रहने पर न सिर्फ पर्यावरण के स्तर पर, बल्कि आर्थिक पैमाने पर भी बड़ी तबाही झेलने को तैयार रहना पड़ेगा।
लक्ष्य प्राप्ति आसान नहीं ’ आईपीसीसी ने स्पष्ट किया है कि पेरिस समझौते के तहत यदि ग्लोबल वॉर्मिंग 1.5 से 2.0 डिग्री सेल्सियस पर लाने के लक्ष्य को हासिल करना है तो 2050 तक पृथ्वी की सतह को गर्म करने वाली गैसों के उत्सर्जन में 50% की कटौती करने के साथ ही यह सुनिश्चित करना होगा कि वायु मंडल में अतिरिक्त कार्बन न प्रवेश करे।