गन्दला जल (ग्रे वाटर) उपयोग किए गए पानी का पुनः उपयोग 

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जल समस्या जल एक आम रासायनिक पदार्थ है, जो कि जीवन के सभी ज्ञात रूपों के अस्तित्व के लिए आवश्यक है। हम अपने चारों ओर नजर उठाकर देखें तो पाएंगे पोखरों, तालाबों, झीलों, नदियों और सागरों में पानी ही पानी है। हमें अपने चारों ओर अनन्त जलराशि दिखायी पड़ती है। फिर भी कितनी विचित्र बात है कि यह सारा पानी धरती के हरेक आदमी की जरूरत को पूरा करने के लिए नाकाफी है। बढ़ती आबादी और पानी की बढ़ती खपत के कारण जल संकट गहराता जा रहा है। पर्यावरण संबंधी तमाम अध्ययन देश में जल प्रदूषण के दिनोंदिन भयावह होते रूप के बारे में चेताते रहते हैं। शहरी इलाकों में रोजाना सप्लाई किए जाने वाले करोड़ों लीटर पानी का 80 फीसदी हिस्सा इस्तेमाल के बाद सीवरेज में बहा दिया जाता है। अगर इस 80 फीसदी हिस्से को रीसाइकिल / ट्रीट कर लिया जाए तो यह पानी की बहुत बड़ी बचत होगी। केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड (सीपीसीबी) की एक रिपोर्ट के अनुसार उद्योगों में इस्तेमाल होने वाले पानी का 35 फीसदी हिस्सा ही ट्रीट होता है। यदि शेष 65 फीसदी पानी को भी ट्रीट कर लिया जाए तो न केवल जल संकट पर काफी हद तक काबू पाया जा सकेगा बल्कि पानी की एक-एक बूंद का कई मर्तबा इस्तेमाल भी हो सकेगा। यही तो है रीसाइक्लिंग। वाटर रीसाइक्लिंग घर, दफ्तर अथवा इंडस्ट्री, कहीं भी की जा सकती है और कोई भी इसे अपने स्तर पर कर सकता है। रीसाइकिल पानी का इस्तेमाल मुख्यतः सिंचाई के लिए किया जाता है। कुछ वजह से इसे पीने लायक नहीं माना जाता। अंतर्राष्ट्रीय जल प्रबंधन संस्थान के एक अध्ययन ने भविष्यवाणी की है कि भारत में 2025 तक गंभीर जल संकट होगा। भारत में प्रति व्यक्ति सतही जल की उपलब्धता समय के साथ घटती जा रही हैं और वर्ष 2050 तक इसके काफी कम होने के अनुमान है।

गन्दला जल क्या है? 

मनुष्यों द्वारा घरेलू व्यावसायिक एवं औद्योगिक उपयोग के लिए स्वच्छ जल को इस्तेमाल करने के बाद जो जल उत्पन्न होता है वह अपशिष्ट जल होता है। कुल मिलाकर देखा जाय तो. स्वच्छ पानी धुलाई, नहाने एवं टॉयलेट में फ्लश आदि के लिए इस्तेमाल होता है। धुलाई के अंतर्गत खाना पकाने के लिए बर्तनों की धुलाई, सब्जियों एवं खाने की चीजों को धोने, नहाने, हाथों की धुलाई, कपड़ों की धुलाई आदि शामिल होते हैं।

इन इस्तेमालों से जो पानी निकलता है उनमें वनस्पति पदार्थ, खाने में इस्तेमाल हुआ तेल, बालों का तेल, डिटर्जेंट, फर्श की धूल, मानव शरीर की धुलाई के बाद चिकनाई युक्त साबुन शामिल होते हैं। इस पानी को "ग्रे वाटर", "मैला पानी" या "गन्दला जल" कहा जाता है। मानव मलमूत्र को फ्लश करने और धुलाई से निकलने वाले पानी को "ब्लैक वाटर" या सीवेज कहा जाता है। ब्लैक वाटर अर्थात सीवेज के मुकाबले ग्रे वाटर को शुद्ध करना आसान है। हालांकि, भारत में पहले से जारी व्यवस्था के अनुसार इन्हें सार्वजनिक सीवरों में मिला दिया जाता है या जिन भवनों / समुदायों की पहुंच सार्वजनिक सीवरों तक नहीं होती है वे अपने यहां निर्मित सीवेज उपचार संयंत्र में बहा देते हैं। अपशिष्ट जल को पुनःप्रयुक्त करने का इतिहास अपशिष्ट जल से सिंचाई करने की प्रक्रिया को तो 2000 वर्ष पहले भी प्रयोग में होते देखा जा सकता है जब ग्रीस में फसलों की सिंचाई ऐसे वाहित मल बहिः स्त्राव से की जाती थी। चीन में यह प्रक्रिया शताब्दियों तक प्रबल थी जबकि यूरोप में जर्मनी में 16वीं शताब्दी तक वाहित मल से खेती एक आम बात थी तथा इंग्लैंड में इसे 19वीं शताब्दी तक प्रयोग में लाया जाता रहा है। अमेरिका में कृषि में वाहित मल का प्रयोग सूचनाओं के आधार पर प्रथम रूप से सन 1870 के अंत में किया गया था। विभिन्न कारणों से विकासशील देशों में अपशिष्ट जल का उपचार कर प्रयोग में लाने की शुरुआत सन 1970 के करीब से हुई जिसमें कुछ प्रमुख कारण निम्नलिखित हैं। 

(i) हाल के वर्ष में जनसंख्या में तीव्र गति से वृद्धि हुई है। बढ़ती हुई जनसंख्या तथा प्रतिव्यक्ति बढ़ते जल के उपयोग से शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्रों में अपशिष्ट जल का उत्पादन अधिक हुआ है। 

(ii) संयुक्त राष्ट्र द्वारा 1980 के दशक को अंतर्राष्ट्रीय जल वितरण एवं स्वच्छता दशक के रूप में घोषित करने के फलस्वरूप अधिक से अधिक वाहित मल उपचार कार्यस्थान (एसटीपी) बनाये गये, क्योंकि ऐसे केंद्रीय उपचार कार्यस्थान बहुत मात्रा में उपचारित अपशिष्ट जल का उत्पादन करते हैं, जिनका कृषि एवं अन्य उपयोगों में सीधा प्रयोग एक जल का आकर्षक वैकल्पिक स्त्रोत बन गया है। 

(iii) कई देशों के शुष्क एवं अर्धशुष्क क्षेत्रों में योजना बनाने वाले लोग लगातार जल के नए अतिरिक्त स्त्रोतों की खोज कर रहे हैं जिनका प्रयोग आर्थिक रूप से तथा कार्यसाधक रीति से विकास में वृद्धि लाने में किया जा सके।

एक आवासीय परिसर में कितना गन्दला जल उत्पन्न होता है? केन्द्रीय सार्वजनिक पर्यावरणीय एवं अभियांत्रिकी संगठन (सेंट्रल पब्लिक हेल्थ इनवायर्मेंटल एंड इंजिनियरिंग ऑर्गनाइजेशन सीपीएचईईओ) द्वारा निर्धारित मापदंड के अनुसार, स्वच्छ पानी की खपत प्रति व्यक्ति 135 से 150 लीटर प्रतिदिन होनी चाहिए। इसे अधिकारिक तौर पर "लीटर प्रति व्यक्ति दैनिक" (एलपीसीडी) के तौर पर व्यक्त किया जाता है। कुल मिलाकर सार्वजनिक जल आपूर्ति एवं सीवेज संस्थाएं/ प्राधिकरण पूरे देश में संभावित पानी खपत के लिए पहले वाले आंकड़े का इस्तेमाल करती हैं। जहां पर सीवर कनेक्शन नहीं होता है वहां सीवेज उपचार संयंत्र (एसटीपी) द्वारा शोधित किए जाने वाले अपशिष्ट पानी की मात्रा इसी आंकड़े के आधार पर (अर्थात कुल निवासी गुणा 135 लीटर) जानी जाती है। कुल पानी की खपत के आधार पर गंदले जल की कुल खपत का 55-75% शामिल होता है। गन्दला जल अत्यधिक परिवर्तनशील होता हैं और पानी की उपलब्धता और खपत, भोजन की आदतों, जीवन शैली आदि पर निर्भर करता है।

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