ग्रामीणों! गाँव खाली करो कि जानवर आते हैं

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वन नीतियों का अनुसरण कर हमारी सरकारों द्वारा भी उत्तराखण्ड में जनता को वनों से बेदखल कर राष्ट्रीय पार्कों, वन्य जीव विहारों की स्थापना कर वनाधारित ग्राम्य जीवन छिन्न-भिन्न किया जा रहा है। रोजगार व विकास के नाम पर पलायन को बढ़ावा दिया जा रहा है और धन का लालच दिखाकर बेरोजगार शिक्षित युवाओं को विश्व बैंक द्वारा पोषित ऐसी योजनाओं से जोड़ने की कोशिश हो रही है।

“... संरक्षित क्षेत्र के भीतर बसे गाँवों को भी चयन प्रक्रिया में सम्मिलित किया जाएगा। परन्तु ऐसे ग्रामों में स्थायी निर्माण कार्यों पर प्रतिबन्ध होगा। ऐसे गाँवों में माइक्रोप्लानिंग द्वारा केवल उन्हीं कार्यों को चुना जाएगा जिनसे ग्रामवासियों में रोजगार के लिये योग्यताएँ बढ़ें व वे विस्थापन के लिये प्रोत्साहित हों।”
“... माइक्रोप्लान वन विभाग व पारिस्थितिकी विकास समिति के बीच समझौते का आधार है और इस समझौते की सभी शर्तों का इसी भाग में उल्लेख किया जाता है। अतः इस कार्य पर भी पर्याप्त ध्यान दिये जाने की आवश्यकता है। विशेषकर यह सुनिश्चित करने को कि समझौते की शर्तें समिति के सभी सदस्यों को स्वीकार हों।”
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