शिवनाथ बावड़ी, सगड़ा, जबलपुर
शिवनाथ बावड़ी, सगड़ा, जबलपुर

जबलपुर की गोंडकालीन जल विरासतें

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इतिहासकारों के अनुसार जबलपुर के आसपास का इलाक़ा पाषाणकालीन मानव के समय से ही मनुष्यों के बसने और उनके फलने-फूलने के लिए अनुकूल रहा है। अनुमान है कि ताम्रयुग के बाद अलग-अलग कालखंड़ों में इस क्षेत्र पर अलग-अलग राजवंषों की सत्ता रही है। मौर्य (324 ईस्वी पूर्व से 187 ईस्वी पूर्व), गुप्त (319 से 569) तथा सातवाहन राजाओं के बाद जबलपुर के आसपास का इलाक़ा कलचुरियों (आठवीं सदी के मध्य से चैदहवी सदी के मध्य तक) के अधीन था। उनकी राजधानी मौजूदा मध्यप्रदेश के जबलपुर के पास स्थित त्रिपुरी (वर्तमान तेवर ग्राम) में थी। उन्होंने भेडाघाट के निकट चौंसठ योगिनी का मन्दिर भी बनवाया था। कलचुरिवंश का अन्तिम शासक त्रैलोक्यमल्ल था। 

नवीं शताब्दी में भारत के मध्यक्षेत्र में गोंडों का आगमन हुआ। कालान्तर में जब कलचुरि शासक कमजोर हुए तो गोंडों ने, उन्हें हटाकर, चौदहवीं सदी के मध्य में अपनी सत्ता कायम की। उन्होंने भारत के मध्यभाग पर लगभग 350 साल तक राज्य किया। उल्लेखनीय है कि भारत के मध्य-क्षेत्र पर राज्य करने वाले गोंड राजाओं की शासन व्यवस्था, राजपूत राजाओं की शासन व्यवस्था की तर्ज पर थी। 

गोंडों के प्रमुख राज्य थे गढ़ा-मंडला (साल 1300 से 1789), देवगढ़ (साल 1500 से 1796), खेरला (साल 1500 से लगभग एक सदी तक) तथा चन्द्रपुर (साल 1200 से 1751)। इसके अलावा भारत के मध्यक्षेत्र में कुछ छोटी रियासतें भी थीं। उन छोटी रियासतों का 1947 तक अस्तित्व रहा। इन सभी राज्यों में सबसे अधिक उल्लेखनीय गढ़ा-मंडला का गोंड राज्य था। इसका अस्तित्व लगभग तीन सौ साल तक रहा। 

गढ़ा-मंडला का पहला राजा यदुराय और सबसे अधिक यशस्वी तथा प्रतापी राजा संग्रामशाह था। उसने साल 1480 से लेकर 1543 तक राज्य किया था। उसने 52 किलों और बाजनामठ का निर्माण कराया। दलपतशाह उसके उत्तराधिकारी थे। दलपतशाह की असमय मृत्यु के कारण साल 1549 में उसका अल्पायु पुत्र वीरनारायण सिंहासन पर बैठा। दलपतशाह की विधवा महारानी दुर्गावती ने संरक्षक के तौर पर शासन की बागडोर संभाली। साल 1564 में गढ़ा राज्य पर मुगल बादशाह अकबर ने आक्रमण किया। युद्ध में गोंड रानी दुर्गावतीकी हार हुई। वे शहीद हुईं। अकबर ने गढ़ा राज्य को मालवा सूबे से संलग्न किया। दुर्गावती के शहीद होने के बाद भी गढ़ा-मंडला का गोंड राजवंश अठारहवीं सदी तक अस्तित्व में रहा। 

जबलपुर क्षेत्र की गोंडकालीन जल विरासतें

जबलपुर क्षेत्र में अनेक गोंडकालीन जल विरासतें यथा तालाब और बावड़ी पाई जाती हैं। इस आलेख में जबलपुर की प्रमुख गोंडकालीन प्राचीन बावड़ियों को नीचे दी तालिका में दर्शाया गया है। 

जबलपुर क्षेत्र के महत्वपूर्ण सीढ़ीदार कुओं / बावड़ियों (stepwells) की सूची -

क्रम 

बावड़ी का नाम 

कहां स्थित है

01

महाराजपुर बावड़ी

नेशनल हाईवे क्रमांक 7 पर। महाराजशाह द्वारा निर्माण।

02

घोडा नक्कास बावड़ी

हनुमान ताल, हाजी हबीबुल्ला के अखाड़े में। 

03

गोपाल बाग बावड़ी

तमरहाई, उपरेनगंज, नाले के किनारे। मृतप्राय।

04

क्षेत्रीय बसस्टैंड बावड़ी

क्षेत्रीय बस स्टैंड।

05

उजार-पुरवा बावड़ी  

रानीताल। गोंडकालीन। वीरनारायण के नाम पर निर्मित।

06

स्नेह नगर बावड़ी

अनुपलब्ध।

07

चोर बावड़ी

अनुपलब्ध। माडल रोड में दबी। 

08 

बसोर मुहल्ला बावड़ी

महर्षि विद्या मन्दिर (मुख्य) के सामने। विलुप्त। निर्माण काल 18वीं-19वी शताब्दी।

09

बावड़ी

बन्दरिया तिराहा। उपयोग जारी।

10

शाहनाला बावड़ी

शाहनाला मोड़। नर्मदा रोड (कमली वाले बाबा)।

11 

बादशाह मन्दिर बावड़ी

नगर निगम द्वारा संरक्षित।

12

शिव मन्दिर बावड़ी

गोंडकालीन। असुरक्षित।

13

लाल कुआंं

बजरिया क्षेत्र। 

14

पुरानी बस्ती बावड़ी/कुआंं

पुरानी बस्ती , ग्वारीघाट। समाप्त। अवशेष बाकी।

15

शारदा मन्दिर बावड़ी

मदनमहल। गोंडकालीन। सुरक्षित किन्तु सूखी।

16

मदन महल बावड़ी

गोंडकालीन। नष्ट होने की कगार पर। 

17

गढ़ा-बजरिया बावड़ी

गोंडकालीन। कुछ समय पूर्व जीर्णेद्धार हुआ। सुरक्षित। 

18

बाजना मठ बावड़ी

गोंडकालीन। भूमिगत कर दी गई।

19

बदनपुर बावड़ी

गोंडकालीन। साधारण  क्षतिग्रस्त। 

20

सगरा ग्राम की बावड़ी

धरोहर। तिलवारा रोड पर स्थित। 17-18 वीं सदी में निर्मित। असुरक्षित।

सगडा बावड़ी, सगड़ा, जबलपुर

सगड़ा बावड़ी, सगड़ा, जबलपुर

यह बावड़ी जबलपुर से तिलवारा घाट को जाने वाली मुख्य सड़क पर सगड़ा ग्राम में स्थित है। यह इसकी जबलपुर से दूरी लगभग 12 किलोमीटर है। इसकी मौजूदा स्थिति काफी अच्छी है। इसके बगल में काल भैरव मन्दिर है। कहते हैं मन्दिर और इसका निर्माण सन 1811 में दलपतशाह ने कराया था इसका आकार चौकोर है। सीढ़ियों की मदद से नीचे उतर कर पानी तक जाना संभव है।

सगडा बावड़ी की गहराई लगभग 52 फुट है। इसकी सीढ़ियों में लगे पत्थरों को चूने से जोडा गया है। जुड़ाई का काम बावड़ी की चौकोर तली तक किया गया है। प्राप्त जानकारी के अनुसार बावड़ी की तली में कुआं बनाया गया है। कुआं वाला हिस्सा अपक्षीण ग्रेनाइट का है। अपक्षीण ग्रेनाइट की परत ही स्थानीय एक्वीफर है। उसी से बावड़ी को पानी मिलता है। वही पानी का स्रोत है। पानी के स्रोत वाली यह परत लगभग आठ फुट मौटी है। बावड़ी में साल भर पानी रहता है। इसके पास सगड़ा ग्राम में एक और बावड़ी है। उस बावड़ी का नाम शिवनाथ की बावड़ी है। 

शिवनाथ बावड़ी

शिवनाथ बावड़ी, सगड़ा, जबलपुर

यह बावड़ी भी जबलपुर से तिलवारा घाट को जाने वाली मुख्य सड़क पर सगड़ा ग्राम में स्थित है। इसकी जबलपुर से दूरी लगभग 13 किलोमीटर है। इसकी स्थिति काफी खराब है। देखरेख के अभाव में वह खण्डहर जैसी हो रही है। इसका आकार चौकोर है और कुल गहराई 50 फुट है। नीचे जाने के लिए एक तरफ से सीढ़ियों का निर्माण किया गया है। सीढ़ियों में प्रयुक्त पत्थरों की जुडाई चूने से की गई है। इसमें मौजूद पानी, हर नज़रिए से अनुपयुक्त है। प्राप्त जानकारी के अनुसार इसकी तली में भी छोटी साइज का चौकोर कुआं है। वह कुआं अपक्षीण ग्रेनाइट में सगड़ा की बावड़ी केे कुएं की तर्ज पर बना है। पानी की गहराई लगभग 30 फुट है। अपक्षीण ग्रेनाइट की परत ही एक्वीफर है। वही, बावड़ी में मिलने वाले पानी का स्रोत है। प्राप्त जानकारी के अनुसार अपक्षीण ग्रेनाइट की परत लगभग दस फुट मोटी है। इस बावड़ी में साल भर पानी रहता है। शिवनाथ की बावड़ी का चित्र नीचे दिया गया है।

शाह नाला बावड़ी

यह बावड़ी नर्मदा रोड पर स्थित है। इसे कमली वाले बाबा या खूनी जलाल शाह की बावड़ी भी कहते हैं। इसकी गहराई लगभग 100 फुट है। इसकी देखभाल मुस्लिम समाज के पीरों द्वारा किया जा रहा है। बावड़ी का चित्र नीचे दिया गया है। 

शाह नाला बावड़ी, जबलपुर

इसका आकार चौकोर है। नीचे जाने के लिए सीढियाँ है। सीढ़ियों में प्रयुक्त पत्थरों की जुडाई चूने से की गई है। इसका पानी स्वच्छ है। यह सदानीरा है। इसकी तली में भी छोटा चौकोर कुआंं है। वह कुआं भी सगड़ा की बावड़ी केे कुए की तर्ज पर अपक्षीण ग्रेनाइट में बना है। अपक्षीण ग्रेनाइट की परत ही एक्वीफर है। बरसात के दिनों में वह पूरी तरह भर जाती है।

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