धान के खेत में अजोला डालो, यूरिया भूल जाओगे। फोटो साभार - कृषक जगत
धान के खेत में अजोला डालो, यूरिया भूल जाओगे। फोटो साभार - कृषक जगत

जहरमुक्त खेती : अजोला, फसल के लिए एक जैविक वरदान

अजोला एक जलीय पौधा है जो जहरमुक्त खेती के लिए एक जैविक वरदान साबित हो सकता है। यह पौधा न केवल पशुओं के लिए एक उत्कृष्ट चारा है, बल्कि फसलों के लिए भी उर्वरक के रूप में काम करता है। पढ़िए अजोला के बारे में विस्तार से
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परिचयः

अजोला को वैज्ञानिक भाषा में फर्न कहते है, जो पानी में तैरते रहते हैं। अजोला की जाति सूक्ष्मजीव होती है, इसकी पंखुडियो में एनाबिना (Anabaena) नामक नील हरित काई होती है। अजोला को जैविक उर्वरक के रूप मे प्रयोग करते है, जो धान के उत्पादन को बढ़ाता है। इसे मछली तथा पशुओं के चारे में तथा कई लोग ड्राइंग रूम को सजाने में तथा विभिन्न देशों मे पकौड़ा व चटनी भी बनाते हैं। सूर्य के प्रकाश में वायुमण्डलीय नत्रजन का अजोला यौगिकीकरण करता है, इसमें विशेष गुण यह है कि यह अनुकूल वातावरण में 5 दिनों में ही दोगुना हो जाता है। ये 300 टन जो भी अधिक सक्रिय पदार्थ प्रति हे. पूरे साल में पैदा हो सकता है। धान के खेतो में इसे प्रयोग करके उत्पादन की वृद्धि 5 से 15% सम्भावित् हो सकता है। अजोला को रोपाई से पहले 2 से 4 इंच पानी से भरे खेत में डाल दिया जाता है, साथ ही 30 से 40 किलोग्राम सुपर फास्फेट भी डाल दिया जाता है। भारत में 7-8 किस्मे अजोला की पाई जाती है जिनमें पिन्नाटा, कैरोलिना, निलोटिका, जूनवेर 21, जूनवेर 29 एवं मेक्सिकाना सर्वोत्तम किस्म है। जिसमे जूनवेर 29 तेजी वृद्धि तथा उच्च पोषक मूल्य के कारण सोने की खान कहा जाता है। इसमे प्रोटीन अमीनो एसिड, विटामिन, खनिज लवण कैल्शियम, फास्फोरस, आयरन, कापर, मैगनेशियम प्रचुर मात्रा में होते है। 

वाक्यांश-जैविक खाद, प्रोटीन, एंटीबायोटिक (प्रतिजैविक), अजोला, कैल्शियम, फास्फोरस

अजोला का उपयोग

जैविक खाद के रूप में-अजोला का उपयोग मुख्यतः धान की फसल में किया जाता है, छोटे छोटे पोखर या तालाब में जहाँ पानी इक्ट्ठा होता वहाँ पानी की सतह में दिखाई देते हैं। सभी किस्मों में अजोला का प्रयोग कर सकते हैं, लेकिन आधकांश लाभ जूनवेर 21 का प्रयोग करके मिलता है 20 से 25 दिन में धान का रोपाई के बाद इसे खेतो में डाल सकते हैं। पानी की उपलब्धता मे यह पूरे खेत में आसानी से फैल जाता है। अजोला का उपयोग पशुआहार के रूप में-दुग्ध की बढ़ती हुई मांग और पशुपालन व्यवसाय मे तथा फसल उत्पादन में निरंतर कमी परिलक्षित हो रही है। ऐसे में अजोला को वरदान के रूप प्रयोग कर सकते हैं। अजोला में भरपूर पौष्टिक आहार व सुपाच्य और सस्ता भी है। शुष्क मात्रा के आधार पर 40-60% प्रोटीन, 10-15% खनिज, 7-10% एमीनो अम्ल जैव सक्रिय पदार्थ और पोलिमर्स होते हैं। पशुओं को खिलाने से उनमें सामान्य पशुओ की तुलना मे अधिक वसा पाई जाती है, तथा फास्फोरस की कमी से पशुओं के पेशाब में खून आने जैसे समस्याओं से निवारण मिलता है। इसको खिलाने से पशुओं मे बांझपन की समस्या को ठीक किया जा सकता है। अजोला खिलाने से पशुओं में भरपूर मात्रा में फास्फोस तथा लोहे की आपूर्ति होती है। इसकी संरचना इसे अधिक पौष्टिक यह असरकारक आदर्श पशुआहार बनाती है। सामान्य पशुओ की तुलना में दुधारू पशुओं पर किए गए प्रयोगो में जब अजोला की 1.5 से 2 kg मात्रा दैनिक आहार के साथ प्रतिदिन दिया जाता है।

पशुओं में दूध उत्पादन की दर में 15-20% की बढ़ोतरी होती है। इस तरह अद्वितीय पास्परिक सहजैविक संबन्ध अजोला को अद्भुत पौधे के रूप में विकसित करता है। अजोला के गुण-अजोला हरित गुच्छ छोटे-छोटे समूह में पानी में तैरता रहता है "अजोला पिन्नाटा" नामक प्रजाति भारत में अधिकांश पाई जाती है जो अत्यधिक गर्मी सहन करने वाली प्रजाति है। जल में तीव्र गति से अजोला की वृद्धि होती है। • अजोला में विटामिन प्रोटीन, अमीनो अम्ल, कैल्शियम, फास्फोरस, लोहा पोटैशियम, कैल्शियम, कॉपर, भरपूर मात्रा मे होते है। इनमें बायोएक्टिव पदार्थ और बायो पालीमर भी पाए जाते हैं। पशु इसे आसानी से पचा लेते हैं क्योंकि इसमे उचत्तम मात्रा मे प्रोटीन एवं तत्व पाए जाते हैं। उत्पादन लागत अजोला की कम होती है। प्रति सप्ताह की दर से औसतन 15 किग्रा. प्रति वर्ग मीटर उपज देती है। अजोला (फर्न) तीन दिन में दोगुनी सामान्य अवस्था में हो जाती है। अजोला पशुओ के लिए एंटीबायोटिक (प्रतिजैविक) है। भूमि उर्वरा शकित बढ़ाने हेतु हरी खाद के रूप मे उपयुक्त है एवं पशुओं हेतु आदर्श आहार है।

अजोला उत्पादन की विधि- 

• 2 मीटर लम्बा, 2 मीटर चौड़ा, एक मीटर गहरा गड्डा छायादार जगह में खोदना है। सीमेंट की टंकी में इसे उगाया जा सकता है प्लास्टिक की शीट बिछाना जरूरी नही है पराबैगनी किरणे रोधी प्लास्टिक शीट का उपयोग करें। गड्ढे में लगभग 10-15 kg मिट्टी फौलाना है। गड्ढे मे पानी के साथ 2kg गोबर और 30 ग्राम सुपर फास्फेट डालना है। पानी का स्तर 10 सेमी तक होना चाहिए। गड्ढे में 500 ग्राम से किलोग्राम अजोला कल्चर डालना है। 10-15 दिन में अजोला तेजी से विकसित होने के कारण पूरे गड्ढे में फैल जाता है इसीलिए प्रतिठिन 800-1200 ग्राम अजोला निकाला जा सकता है। अजोला तेजी से बढ़ता रहे इसके लिए प्रत्येक पाँच दिन के अंतराल पर 20 ग्राम सुपर फॉस्फेट और लगभग 1 किलोग्राम गोबर गड्ढे में डालना है।

प्रतिदिन पशु को 1.5-2.0 किलोग्राम अजोला दैनिक आहार के साथ खिलाया जा सकता है। अजोला उत्पादन में ध्यान देने योग्य बातें • तेज बढ़त और दोगुना होने का न्यूनत्? म् समय बनाये रखने हेतु अजोला को प्रतिदिन उपयोग के लिए (200 ग्राम प्रति वर्गमीटर के मान से) निकाला जाए। फर्न की तीव्र गति विकसित होती रहे इसके लिए गाय का गोबर और सुफर फास्फेट समय समय पर डालना चाहिए। समय समय पर अजोला की टंकी का पी. एच. परीक्षण करना चाहिए तथा उचित पी. एच. 5.5-7.0 के बीच होना चाहिए। नाइट्रोजन और खनिजों की कमी से बचाने के लिए 30 दिन के भीतर टंकी से 5 किलो मिट्टटी बदल देना चाहिए तथा 10 दिनों के भीतर 25-30 प्रतिशत ताजे पानी से पानी बदलना चाहिए। अजोला तैयार करने की टंकी को 6 महीने के भीतर पूरी तरीके से साफ करके ताजा पानी और गोबर डालना चाहिए। अजोला का उपयोग करने से पहले ताजे पानी से धोना चाहिए ताकि दुर्गन्ध खत्म हो जाए।

निष्कर्षः

अजोला के निरंतर कटाई से, नाइट्रोजन निषेचन की आवश्यकता के बिना, अजोला संस्कृतियो से उच्च प्रोटीन पैदावार प्राप्त की जा सकती है। फिनोल्स के उच्च स्तर से संभवतः पशु आहार मे अजोला के समावेश दर मे पाली सीमाओ मे योगदान करते है और आगे की जांच की आवश्यकता होती है। 

संदर्भ: 1.Liu J, Xu H, Jiang Y, Zhang K, Hu Y and Zeng Z, (2017). Methane emissions and microbial communities as influenced by dual cropping of Azolla along with early rice. Sci Rep 7:40635. 2.Nicoletto C, Tosini F and Sambo P. (2013). Effect of grafting and ripening conditions on some qualitative traits of 'Cuore di bue' tomato fruits. J Sci Food Agric 93:1397-1403.

लेखकगण - 

शची तिवारी, स्वर्णिमा तिवारी (शोध छात्रा) वनस्पति विज्ञान विभाग, स्वामी विवेकानन्द सुभारती विश्वविद्यालय मेरठ (उ.प्र.) चंद्र कान्त एवं प्रदीप कुमार वर्मा सहायक प्राध्यापक कृषि विज्ञान विभाग, स्वामी विवेकानन्द सुभारती विश्वविद्यालय मेरठ (उ. प्र.) 

स्रोत - स्रोत - मध्य भारत कृषक भारती, सितम्बर 2024
 

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