जीईपी लागू करने वाला पहला राज्य बना उत्तराखंड
जीईपी लागू करने वाला पहला राज्य बना उत्तराखंड

जीईपी लागू करने वाला पहला राज्य बना उत्तराखंड

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उत्तराखंड अपने चार  महत्वपूर्ण प्राकृतिक संसाधनों-वायु, जल, वन और मृदा को मौद्रिक मूल्य प्रदान करने वाला देश का पहला राज्य बनने जा रहा है । इन प्राकृतिक संसाधनों की गुणवत्ता और मात्रा  राज्य के सकल पर्यावरण उत्पाद (जीईपी) को तय करेगी। जिसका उपयोग  राज्य के सकल घरेलू उत्पाद के  मूल्यांकन में किया जा सकता है ।विश्व पर्यावरण दिवस  पर मुख्यमंत्री तीरथ सिंह रावत और प्रदेश के वन एवं पर्यावरण मंत्री हरक सिंह रावत ने इसकी घोषणा की।  वही इस घोषणा के बाद राष्ट्रीय पर्यावरण अभियांत्रिकी संस्थान (नीरी) नागपुर के निदेशक राकेश कुमार ने राज्य सरकार के इस फैसले की जम कर तारीफ की और इसे राज्य सरकार द्वारा उठाया गया निर्णायक कदम बताया है । इस दौरान उन्होंने कहा कि

"सकल घरेलू उत्पाद खपत के बारे में बात करता है, जबकि जीईपी प्राकृतिक रूप से बनाई गई चीजों के बारे में।  उत्तराखंड सरकार का यह कदम हमें एक  ऐसी तस्वीर देगा जहां हम अपने पारिस्थितिकी तंत्र के मामले में आगे बढ़  सकेंगे। क्योंकि सकल घरेलू उत्पाद का आधार जीईपी है । एक बार जब उत्तराखंड यह प्रक्रिया शुरू कर देगा तो अन्य राज्य भी इसका अनुसरण कर सकते हैं ।

 पिछले कुछ दशकों से राज्य के मूल्यांकन तंत्र में जीईपी को शामिल करने की मांग लंबित थी और इसके लिये कई शिक्षाविद और पर्यावरणविद सरकारों पर दबाव बना रहे थे। ग्रीन एक्टिविटस द्वारा की गई गणना के मुताबिक उत्तराखंड अपनी जैव विविधता के माध्यम से देश को हर साल 95112 करोड़ रुपये की सेवाएं देता है । राज्य का 71% भू भाग जंगलों से घिरा हुआ है यहाँ  हिमालय का घर के अलावा गंगा, यमुना और शारदा जैसी नदियों का उद्गम स्थल और कार्बेट और राजाजी टाइगर रिजर्व जैसे वन्य जीव अभ्यारण भी है 

दो दशक से अधिक समय से 'ग्रॉस इकोसिस्टम प्रोडक्ट' को महत्वपूर्ण बता रहे एचएनबी गढ़वाल विश्वविद्यालय के जाने माने  इकोलॉजिस्ट और पूर्व कुलपति एसपी सिंह ने उत्तराखंड सरकार द्वारा उठाए गए कदम पर खुशी जताई है ।

एसपी सिंह, जो इस समय भारतीय राष्ट्रीय विज्ञान अकादमी (इंसा), नई दिल्ली में वरिष्ठ वैज्ञानिक के रूप में कार्यरत हैं, उन्होंने एक अंग्रजी अखबार को दिए गए इंटरव्यू में बताया कि     

"वैश्विक स्तर पर रॉबर्ट कोस्टान्ज़ा जैसे पर्यावरणीय अर्थशास्त्रियों  ने 1997 में इसे वापस स्थापित किया था। वही बात करे पारिस्थितिकी तंत्र सेवाओं के बारे में तो उसका मूल्य वैश्विक सकल घरेलू उत्पाद के मुकाबले लगभग दोगुना है । इसलिए, उत्तराखंड सरकार द्वारा उठाया गया कदम अत्यंत महत्वपूर्ण है क्योंकि इससे पर्यावरण संरक्षण में मदद के साथ जलवायु परिवर्तन के प्रभावों से बचाने में भी मदद मिलेगी ।

देहरादून के पर्यावरणविद् अनिल जोशी भी 11 साल से  जीईपी के लिए जोर दे रहे थे, उन्होंने कहा,

"2009 में जीईपी  लाया गया था  तब सरकार ने जीईपी को शामिल करने के प्रस्ताव पर सहमति भी जताई थी । लेकिन इसे लागू करने के लिये एक दशक से अधिक का समय लग गया है । फिर भी, राज्य सरकार का यह कदम बाद के लिए टालने से  बेहतर है। इससे सभी को पर्यावरणीय उत्पादों के महत्व को पहचानने में मदद मिलेगी।"

इस बीच वानिकी विशेषज्ञों द्वारा इस कदम का स्वागत किया गया है । देहरादून के भारतीय वानिकी अनुसंधान एवं शिक्षा परिषद (आईसीएफआरई) के निदेशक एएस रावत ने  कहा

 "उत्तराखंड एक ऐसा राज्य है जो कई पर्यावरण सेवाएं प्रदान करता है और अगर उसमें  निरंतरता रहे तो   परिणामस्वरूप उन सेवाओं में एक प्राकृतिक गिरावट आ जाती है । इसलिए राज्य सरकार का यह कदम  स्वागत योग्य कदम है।"

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