जीवनदायिनी नर्मदा के ‘दिल’ के साथ खिलवाड़

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नदियों तक पानी पहुंचाने वाले 50 फीसदी तटीय क्षेत्र खत्म, एक अध्यन में खुलासा

भोपाल प्रदेश

की जीवनदायिनी नर्मदा नदी खतरे में है। इसकी वजह है नर्मदा के तटीय क्षेत्रों का तेजी से खत्म होना। इन तटीय क्षेत्रों से ही पानी नर्मदा नदी में पहुंचता है, लेकिन एक ताजा अध्ययन के अनुसार प्रदेश में नर्मदा के 50 फीसदी तटीय क्षेत्र नष्ट हो चुके हैं। ऐसा इन तटीय क्षेत्रों पर अतिक्रमण की वजह से हुआ है।

तटीय क्षेत्र नदियों के लिए ‘दिल’ का काम करते हैं। जिस तरह दिल पूरे शरीर में ऑक्सीजन की पंपिंग करते हैं, उसी तरह ये तटीय क्षेत्र बारिश के पानी को नदियों तक पहुंचाते हैं। इनके नष्ट होने पर किसी भी नदी या तालाब की भराव क्षमता सीधे तौर पर प्रभावित होती है।

हाल ही में बरकतउल्ला विवि के सरोवर विज्ञान विभाग द्वारा नर्मदा नदी के तटीय क्षेत्रों पर हुए एक अध्ययन में यह बात सामने आई है कि इसके आधे से ज्यादा तटीय क्षेत्र अतिक्रमण की भेंट चढ़ चुके हैं। कमोबेश ऐसी ही स्थिति प्रदेश की बाकी नदियों और तालाबों की भी है।

क्या है वजह?

नदी के तटीय क्षेत्रों में झाड़ियां और छोटे पेड़ होते हैं जो बहकर आने वाले बरसात के जल को अपने में समेट लेते हैं। ये क्षेत्र नदियों और तालाबों के आकार के हिसाब से तट से लगे 15 से 100 मीटर तक के क्षेत्रफल में फैले हो सकते हैं। यहां से पानी रिसकर नदियों और जलाशयों में पहुंचता है। अध्ययनकर्ताओं ने पाया कि ग्रामीण क्षेत्रों में झाड़ियां और छोटे पेड़ों को साफ करके वहां खेती की जा रही है। इस वजह से तटीय क्षेत्र खत्म हो गए। शहरी क्षेत्रों में निर्माण कार्यों की वजह से तटीय क्षेत्र बड़ी तेजी से समाप्त होते जा रहे हैं। नर्मदा नदी किस तरह से सिकुड़ती जा रही है, इसकी पुष्टी प्रदेश के जल संसाधन विभाग के डाटा सेंटर के आंकड़ों से भी होती है।

बरगी से होशंगाबाद का क्षेत्र सबसे अधिक प्रभावित

ऐसे सिकुड़ रही नर्मदा

नर्मदा नदी किस तरह से सिकुड़ती जा रही है, इसकी पुष्टि प्रदेश के जल संसाधन विभाग के डाटा सेंटर के आंकड़ों से भी होती है। इसके अनुसार वर्ष २क्क्६ में नर्मदा नदी में पानी का अधिकतम औसत जल स्तर समुद्र तल से 323 मीटर था, जो 2009 में घटकर 308 मीटर रह गया। नदी के उद्गम स्थलों पर स्वस्थ तटीय क्षेत्रों की सबसे अधिक जरूरत होती है। अगर अब भी हम स्थिति को संभालना चाहें तो तटीय क्षेत्रों को बचाकर नई शुरुआत कर सकते हैं।

डॉ.विपिन व्यास, अध्ययनकर्ता, बरकतउल्ला विवि, भोपाल

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