ज्वालामुखी
“प्रतिवर्ष भूमि पर लगभग 60 ज्वालामुखी उद्गारित होते हैं और किसी भी समय उद्गारित ज्वालामुखियों की संख्या 20 के आसपास हो सकती है। कुछ ज्वालामुखियों से लगातार अल्पमात्रा में गैसें और चट्टानें मुक्त होती रहती है लेकिन किसी समय ये ज्वालामुखी प्रचंड और विस्फोटक भी हो सकते हैं। कभी-कभी ज्वालामुखी घटनाएँ विस्फोटक होती हैं, किंतु अधिकतर घटनाओं में ज्वालामुखी पर्वत उनमें उत्पन्न दाब अथवा मैग्मा मंडार के उद्गारित होने पर पर्वत के ढहने से किनारों से फुट जाते हैं।”
डिस्कवर साइंस अलमांसः दि डेफिनिटिव साइंस रिसॉस, न्यूयार्क, 2003
ज्वालामुखी, पृथ्वी के भूपटल में स्थित वह स्थान है, जहां से गर्म गैसें पिघली चट्टाने भूपटल से ऊपर उठती हैं। ज्वालामुखी को इस प्रकार से भी परिभाषित किया जा सकता है कि पृथ्वी की भूपटल में स्थित वह स्थान ज्वालामुखी कहलाता है, जहां से पृथ्वी के आंतरिक भाग से गर्म पिघली चट्टानें (लावा), राख, गैसें और चट्टानों के टुकड़े आदि एक या एक से अधिक छेदों या सूराखों या विभंगों द्वारा बाहर निकलते हैं। ज्वालामुखी के छाया क्षेत्र में रहने का मतलब लगातार खतरे में जीना है। क्योंकि एक सक्रिय ज्वालामुखी बहुत थोड़ी चेतावनी के साथ उद्गारित हो सकता है और ज्वालामुखी उद्गार अत्यंत प्रचंड घटना हो सकती है, जो नगरों का सफाया कर सकती है। सन 1883 में प्रशांत महासागर के जावा और सुमात्रा द्वीपों के मध्य स्थित क्राकातोआ ज्वालामुखी विस्फोट को 26 शक्तिशाली हाइड्रोजन बम विस्फोट के बराबर शक्तिशाली माना गया था। इस विस्फोट से निर्मित घने बादलों ने सूर्य से पृथ्वी पर आने वाली उष्णता को बीस प्रतिशत तक कम कर दिया था। तब उस स्थान पर विस्फोट के कारण एक महीनें तक धूल का घेरा बना रहा और इस कारण दूर स्थित क्षेत्र लंदन तक सूर्यास्त जैसी लालिमा छा गई थी। यह घटना ज्वालामुखी विस्फोट का शक्तिशाली और नाटकीय प्रभाव थी।
फिर भी सभी ज्वालामुखी विस्फोट प्रचंड नहीं होते हैं।
ज्वालामुखी क्या है?
कुछ ज्वालामुखी पर्वतों की ऊंचाई इस प्रकार है:
माउंट | पोपोकेटेपेटल, मैक्सिको | 5422 मीटर |
माउंट | एकोन्कागुआ, अर्जेंन्टीना | 6960 मीटर |
ओजोस | डल सालाडो, चिली | 6887 मीटर |
माउंट | किलिमिंजारो, तन्जानिया | 5273 मीटर |
माउंट | अराफात, तुर्की | 5165 मीटर |
ज्वालामुखियों की बनावट
ज्वालामुखियों के प्रकार
सक्रिय ज्वालामुखी
प्रसुप्त ज्वालामुखी
निर्वापित या बुझा हुआ ज्वालामुखी
ज्वालामुखी उद्गार
आरंभिक चेतावनी चिन्ह
उद्गार
निक्षेप (द फालआउट)
ज्वालामुखी गतिविधियों को समझना
ज्वालामुखी विस्फोट के लिए पृथ्वी की आंतरिक ऊष्मा जिम्मेदार है। यह आंतरिक ऊष्मा पृथ्वी के अस्तित्व में आने के समय से संबंधित है। पृथ्वी के निर्माण की आरंभिक अवस्था में यह पूरी तरह तरल अवस्था में थी। जीवन के स्थायित्व के लिए तब पृथ्वी बहुत अधिक गर्म थी, लेकिन क्रमिक रूप से यह ठंडी होती गई। इस प्रकार पृथ्वी के ठंडे होते रहने के दौरान पहले पृथ्वी का भूपटल अस्तित्व में आया, लेकिन अभी तक पृथ्वी पूरी तरह ठंडी नहीं हुई थी। माना जाता है कि इस मौलिक ऊष्मा की कुछ मात्रा को पृथ्वी द्वारा संभाल कर रखा गया है। पृथ्वी की क्रोड अभी भी बहुत गर्म अवस्था में है। यह ऊष्मा चट्टानों में उपस्थित यूरेनियम और थोरियम जैसे रेडियो सक्रिय पदार्थों के विखंडन से भी उत्पन्न होती है। पृथ्वी में समाहित ऊष्मा चट्टानों को पिघला सकती है। पृथ्वी के नीचे स्थित तरल चटाटनें मैग्मा कहलाती हैं। मैग्मा, भाप और अन्य गैसों को भी रखता है।
मैग्मा या पिघली शैलों का घनत्व अपने चारों ओर की ठोस चट्टानों से कम होता है। मैग्मा की तरलता तापमान, जल और सिलिका की मात्रा पर निर्भर करती है। मैग्मा में सीलिका की मात्रा अधिक होने से यह अधिक तरल होगा। मैग्मा में विलेय गैसे, इसे अन्य चट्टानों से अधिक हल्का बनाती है। भारी चट्टानों के दबाव से मैग्मा ऊपर की ओर गति करता हुआ अंत में ज्वालामुखी विस्फोट या विदार उद्गार के माध्यम से धरती की सतह तक पहुंचने का मार्ग बना लेता है।
ज्वालामुखी क्रिया का प्रकार
विवरण | वीईआई (VEI) | पिच्छक ऊंचाई | वर्गीकरण | आवृत्ति | उदाहरण |
अ-विस्फोटक | 0 | 100 मीटर से कम | हवाइयन | प्रतिदिन | किलाउई |
हल्का | 1 | 100 से 1000 मीटर | हवाइयन/स्ट्रॉम्बोलियन | प्रतिदिन | स्ट्रॉम्बोली |
विस्फोटक | 2 | 1 से 5 किलोमीटर | स्ट्रॉम्बोलियन/वल्केनियन | साप्ताहिक | गेलेरीस, 1992 |
तीव्र | 3 | 3 से 15 किलोमीटर | वल्केनियन | वार्षिक | रूईज, 1985 |
भीषण | 4 | 10 से 25 किलोमीटर | वल्केनियन/पीलियन | दस वर्ष | गैलुनगुगं, 1982 |
आवेगी | 5 | 25 किलोमीटर से अधिक | पीलियन | सौ वर्ष | माउंट सेंट हेलेन, 1980 |
विशाल | 6 | 25 किलोमीटर से अधिक | पलीनियनुलट्रा-पीलियन | एक हजार वर्ष | क्राक्रातोआ, 1883 |
अतिविशाल | 7 | 25 किलोमीटर से अधिक | अल्ट्रा-पीलियन | एक हजार वर्ष | तामबोरो, 1815 |
महाकार | 8 | 25 किलोमीटर से अधिक | अल्ट्रा-पीलियन | दस हजार वर्ष | यलोस्टोन, 22 लाख वर्ष पूर्व |
ज्वालामुखी गतिविधियों का वर्गीकरण
ज्वालामुखी उद्गार की शक्ति
लावा
लावे के प्रकार
फेल्सिक लावा
मध्यवर्ती लावा
मैफिक लावा
अलमैफिक लावा
चट्टानें
राख
गैसें
अंगार शंकु
गुम्बदी या कवच ज्वालामुखी
मिश्र ज्वालामुखी
भव्य या उच्चया ज्वालामुखी
अंतः सागरी ज्वालामुखी
अधोहिमानी ज्वालामुखी
क्यों बनते हैं ज्वालामुखी
ज्वालमुखी निर्माण की वर्तमान धारणा
अतप्त स्थल आंतरिक प्लेट ज्वालामुखी
अपसारी प्लेट सीमा
अभिसारी प्लेट सीमा
तप्त स्थल
पिटिश्पोट (Pititspots)
भयंकर ज्वालामुखी विस्फोट
वीसूवियस
क्राकातोआ
ज्वालामुखी गतिविधियों पर नजर रखना
कुछ भयंकर ज्वालामुखी उद्गार
क्र. | उद्गार वर्ष | ज्वालामुखी का नाम | मृतकों की संख्या | मृत्यु का प्रमुख कारण |
1 | सन् 79 | वीसूवियस, इटली | 3,360 | राख प्रवाह और गिरना |
2 | सन् 1631 | वीसूवियस, इटली | 3,500 | कीचड़ प्रवाह और लावा प्रवाह |
3 | सन् 1640 | कोमोगेटाकी, जापान | 700 | सुनामी |
4 | सन् 1741 | आसीमा, जापान | 1,475 | सुनामी |
5 | सन् 1772 | पापाडायन, इंडोनेशिया | 2,975 | राख प्रवाह |
6 | सन् 1783 | लाकी, आइसलैंड | 9,350 | स्ट्रावेशन |
7 | सन् 1783 | असमा, जापान | 1,377 | राख प्रवाह और कीचड़ प्रवाह |
8 | सन् 1792 | उनजीन, जापान | 14,300 | ज्वालामुखी का ढहना और सुनामी |
9 | सन् 1814 | मैयोन, फिलीपाइंस | 1,200 | कीचड़ प्रवाह |
10 | सन् 1815 | तामबोरो, इंडोनेशिया | 92,000 | स्ट्रावेशन |
11 | सन् 1822 | गैलुनगुंग, इंडोनेशिया | 4,011 | कीचड़ प्रवाह |
12 | सन् 1845 | रुईज, कोलम्बिया | 700 | कीचड़ प्रवाह |
13 | सन् 1877 | कोतोपेक्सी, इक्वेडोर | 1,000 | कीचड़ प्रवाह |
14 | सन् 1883 | क्राकातोआ, इंडोनेशिया | 36,417 | सुनामी |
15 | सन् 1902 | माउंट पेले | 2,902 | राख प्रवाह |
16 | सन् 1902 | सोउफटीर, सेंट, विसेंट | 1,680 | राख प्रवाह |
17 | सन् 1911 | टाड, फिलीपींस | 1,335 | राख प्रवाह |
18 | सन् 1919 | केलुद, इंडोनेशिया | 5,110 | कीचड़ प्रवाह |
19 | सन् 1951 | हेमिंगटन, पापुआ न्यू गिनी | 2,942 | राख प्रवाह |
20 | सन् 1953 | हिबोक-हिबोक, फिलीपाइंस | 500 | राख प्रवाह |
21 | सन् 1963 | अगुंग, इंडोनेशिया | 1,184 | राख प्रवाह |
22 | सन् 1982 | एल चिकोन मैक्सिको | 2,000 | राख प्रवाह |
23 | सन् 1985 | रुईज, कोलम्बिया | 23,000 | कीचड़ प्रवाह |
24 | सन् 1991 | पिनाटूबो, फिलीपाइंस | 800 | छत का गिरना और बीमारियां |
ज्वालामुखी उद्गार के बारे में वैज्ञानिक विस्तृत रूप से सूचनाओं को लिपिबद्ध करते हैं। वे अक्सर लावे और गैसों का तापमान मापते हैं और उद्गारित लावा स्रोत ऊंचाई मापने के साथ ज्वालामुखी से निकलने वाली राख और लावा के बहाव दर का अनुमान लगाते हैं। ज्वालामुखी उद्गार की इन प्रक्रियाओं को पूरी तरह से अभिलेखित करने के लिए वैज्ञानिक समय-समय पर इनका अवलोकन करते रहते हैं। इस प्रकार के दस्तावेज़ या प्रलेख किसी दिए गए ज्वालामुखी उद्गार के प्रकार के बारे में किसी व्यवहारिक गुणों वाले नमूनों के निर्माण में सहायक हो सकते हैं। कुछ साहसी वैज्ञानिक ज्वालामुखी अध्ययन की प्रक्रिया के दौरान अपना जीवन भी खो देते हैं।
ज्वालामुखी निगरानी का कार्य मानवीय आंखों से ना सही लेकिन यथार्थ और उन्नत उपकरणों द्वारा संभव है। ज्वालामुखी निगरानी की प्रक्रिया में ज्वालामुखी परिघटना का विश्लेषण और उसका विवरण सम्मिलित है। इन अवलोकनों में सतही हलचल जैसे भूकंप (विशेषकर लोगों द्वारा अनुभव किए जाने वाले छोटे भूकंप), गैस संघटन में बदलाव, लावे की हलचल से दाब और तनाव के कारण स्थानीय विद्युत और चुम्बकीय क्षेत्रों में बदलाव होना शामिल होता है।
उपग्रह में रखे विकिरणमापी, स्पेक्ट्रममापी (स्पेक्ट्रोमीटर) और व्यतिकरणमापी जैसे उपकरण अंतरिक्ष से धरती के करीब 500 सक्रिय ज्वालामुखियों पर नजर रखते हुए इनके संबंध में लगातार सूचनाएं प्रेषित करते रहते हैं। वे दीर्घकालीन निगरानी और विस्तृत चित्रों और दृश्यों से लगातार सूचना प्रेषित करते रहते हैं। संग्रहित आंकड़े एक समय के बाद कम्प्यूटर एनिमेशन द्वारा विविध परिवर्तनों के प्रमाण प्रस्तुत करते हैं।
नासा के पृथ्वी अवलोकन व्यवस्था (अर्थ ओबसर्विंग सिस्टम) के भाग के रूप में दिसम्बर 1999 में प्रक्षेपित किए गए टेरा नामक उपग्रह में उन्नत स्पेशबोर्न तापीय उत्सर्जन और परावर्तन ऊर्जामिति (स्पेशबोर्न थर्म एमिशन एंड रिफ्लेकशन रेडियोमीटर) नामक चित्रण उपकरण रखा गया था। इसका उपयोग भूपृष्टीय तापमान, विकिरण उत्सर्जन, परावर्तकता और उत्थान के संबंध में विस्तृत नक्शों का निर्माण करने में किया जाता है। ये नक्शे वैज्ञानिकों को विश्वव्यापी ज्वालामुखियों पर निगरानी रखने में सहायक होते हैं। उड़ते टेरा उपग्रह में बहुआयामी चित्रण के लिए स्पेक्ट्रमी ऊर्जामिति भी था। यह उपकरण समकालिक नौ कोणीय स्थानों से प्रत्येक कोण से पृथ्वी के विस्तृत चित्र चार अलग-अलग रंगों में बनाता है। अंतरिक्ष से यह बहुआयामी चित्रण प्रौद्योगिकी पिच्छक में निहित बहुत छोटे वायुकणों को भी खोज लेती है।
सन् 2000 के फरवरी महीने में स्पेश शटल एंडीएवोर द्वारा प्रेषित शटल रेडार टोपोग्राफी मिशन (अंतरिक्षयान रेडार स्थलाकृति मिशन) में रेडार व्यतिकरणमापी का उपयोग किया गया था। रेडार द्वारा दो आंशिक भिन्न सतहों से लिए गए चित्रों से सतही उत्थान की गणना की जा सकती है। ज्वालामुखियों के तीन आयामी आकार से उद्गार का प्रकार, राख बहाव और क्षरण व्यवस्था से बहुत महत्वपूर्ण सूचनाएं उपलब्ध होती है।
यूरोपीयन सुदूर संवेदी उपग्रह द्वारा शोधकर्ताओं ने कृत्रिम द्वारक राडार व्यतिकरणमापी से ज्वालामुखी के ‘सांसे’ लेने की प्रणाली या ज्वालामुखी के अंदर या इसकी गहराई में होने वाले परिवर्तनों जिनके कारण इसकी सतह फैलती या सिकुड़ती है, को देख कर इस संबंध में आंकड़े एकत्र किए।