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केन-बेतवा लिंकिंग प्रोजेक्ट को लेकर मध्य प्रदेश के लोगों में नाराजगी 

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अप्रैल की तपती धूप में 24 साल की गीता कौंदर 45 डिग्री के तापमान में मध्य प्रदेश के दौंधा गांव में एक कुएं से पानी ला रही है। उस समय गांव की दूसरी महिला घर का चूल्हा जलाने के लिए पास के जंगल में लकड़ियां इकट्ठा रही है। ये बुंदेलखंड के लोगों के जीवन का एक हिस्सा है। छतरपुर जिले के दौंधा गांव जैसे आधा दर्जन गांव के लोंगों को बिजली और पानी जैसी समस्याओं से रोज रूबरू होना पड़ता है। जब वे बीमार होते हैं तो उसके इलाज के लिए उनको 40 किलोमीटर दूर बमीठा के अस्पताल में जाना पड़ता है। जहां जाने के लिए इस क्षेत्र में कोई सड़क भी नहीं है।

स्थानीय निवासियों का कहना है कि यहां के स्थानीय अधिकारियों ने उनकी समस्याओं को हल करने के लिए और केन्द्र सरकार से आने वाली योजनाओं के लाभ के लिए गांव का दौरा करना ही बंद कर दिया है। इन लोगों का कहना है कि वे ऐसा इसलिए कर रहे हैं कि क्योंकि गांव वालों ने केन-बेतवा लिंकिंग प्रोजेक्ट का विरोध किया। हम लोगों को हमारे विरोध की सजा दी जा रही है। केन-बेतवा लिंकिंग प्रोजेक्ट के अनुसार मध्य प्रदेश की केन नदी का अतिरिक्त पानी बेतवा नदी में हंस्तांतरण कर दिया जाये। जिससे दोनों राज्यों के बुंदेलखंड के सूखे इलाकों में इस पानी से सिंचाई की सुविधा की जा सके।

इस प्रोजेक्ट के लिए अधिकारियों ने यहां की स्थिति का अध्ययन केवल दो सीजन किया। जब इन इलाकों में बाढ़ आई हुई थी। अधिकारियों ने उस स्थिति का जायजा नहीं लिया जब यहां सूखा पड़ रहा था। ये बड़ी विडंबना है कि पन्ना से होकर केन गुजरती है इसके बावजूद इस क्षेत्र को पानी की किल्लत का सामना करना पड़ता है और ऐसी ही कुछ हालत छतरपुर की भी है।

ये मुद्दा बुंदेलखंड के लोंगों के लिए इस चुनाव में अहम मुद्दा है, बुंदेलखंड के इस इलाके में तीन सीटों पर वोटिंग 6 मई को की जाएगी। तीनों सीटें 2014 के लोकसभा चुनाव में बीजेपी के हक में गईं थीं। यहां के स्थानीय निवासियों का कहना है कि केन-बेतवा प्रोजेक्ट ने प्रत्यक्ष रूप से चार हजार लोगों और अप्रत्यक्ष रूप सैकड़ों लोगों के भविष्य को दांव पर लगा दिया है। क्योंकि ये प्रोजेक्ट पन्ना नेशनल टाइगर रिजर्व के 100 वर्ग किमी के क्षेत्र को जलमग्न कर देगा। जो उनकी आजीविका का मुख्य स्रोत है। स्थानीय निवासी रामदास आदिवासी कहते हैं कि वे राजनीति के बारे में कुछ नहीं जानते। लेकिन कुछ राजनेताओं ने गांव वालों को खूब पैसा दिया और उनकी समस्याओं को खत्म करने का वायदा किया। सड़क, बिजली और पानी की कमी को पूरा करने के बदले उन्होंने इस प्रोजेक्ट का समर्थन मांगा। हमें पता है उन्होंने हम लोगों को जानबूझकर मूलभूत सुविधाओं से वंचित रखा ताकि हम यहां से बाहर जाने के लिए मजबूर हो जाएं। 

इस चुनाव में पहली बार वोट डाल रहे मनोज आदिवासी ने बताया, ये चुनाव बीजेपी के लिए आसान नहीं होगा। बीजेपी की सरकार ने ही 2015 में इस प्रोजेक्ट की नींव रखी थी। बीजेपी पड़ोसी राज्य उत्तर प्रदेश पर ज्यादा ध्यान दे रही है और इसकी वजह है वहां सांसदों की संख्या ज्यादा है। दिसंबर में हुए विधानसभा चुनाव में कांग्रेस ने बीजेपी को यहां हरा दिया था। पन्ना जिले के लोग भी इस प्रोजेक्ट को लेकर चिंतित हैं। पन्ना के मड़ला गांव के निवासी केपी ओमह्रे बताते हैं कि उनका गांव नीचे की ओर है। ‘अगर वे डैम बनाते हैं तो हमें मछली पकड़ने के लिए पर्याप्त पानी नहीं मिलेगा, जो हमारी आजीविका का एकमात्र स्त्रोत है।

कांग्रेस उम्मीद कर रही है कि प्रोजेक्ट के प्रति लोगों का गुस्सा चुनाव में उनको मदद करेगा। तीन सीटों मे से एक खजुराहो से कांग्रेस की उम्मीदवार कविता सिंह ने का मानना है, केन-बेतवा लिंक प्रोजेक्ट केन्द्र में बीजेपी सरकार के लिए प्रतिष्ठा का मुद्दा बन गया है। केन्द्रीय मंत्री नितिन गडकरी और उमा भारती ये बयान भी दे चुके हैं कि ये प्रोजेक्ट बुंदेलखंड के लिए वरदान साबित होगा। लेकिन हकीकत कुछ और है। अगर हमारी सरकार बनती है तो हम इस प्रोजेक्ट को बनने की अनुमति नहीं देंगे। खजुराहो से भाजपा के उम्मीदवार वीडी शर्मा ने कहा, ये प्रोजेक्ट यहां के लोगों के लिए फायदेमंद साबित होगा क्योंकि इससे सिंचित भूमि बढ़ेगी और पेयजल समस्या का समाधान होगा। अगर इस प्रोजेक्ट से लोगों को परेशानी है तो हम आगे बढ़ने से पहले उनकी बात सुनेंगे। छतरपुर के जिला कलेक्टर मोहित बुंदास ने बताया कि वे इस इलाके के गांवों की स्थिति से अनजान हैं लेकिन वे यहां जांच करेंगे।

पन्ना के एक्टिविस्ट मेहरून सिद्दीकी ने बताया, इस प्रोजेक्ट के लिए अधिकारियों ने यहां की स्थिति का अध्ययन केवल दो सीजन किया। जब इन इलाकों में बाढ़ आई हुई थी। अधिकारियों ने उस स्थिति का जायजा नहीं लिया जब यहां सूखा पड़ रहा था। सिद्दीकी आगे बताते हैं, यहां कोई अतिरिक्त पानी नहीं है। ये बड़ी विडंबना है कि पन्ना से होकर केन गुजरती है इसके बावजूद इस क्षेत्र को पानी की किल्लत का सामना करना पड़ता है और ऐसी ही कुछ हालत छतरपुर की भी है। पन्ना और छतरपुर जिले में सिंचित भूमि 20 प्रतिशत से अधिक नहीं है। इसके बावजूद शायद ही सरकार ने इसे बढ़ाने के लिए सोचा है।

बीजेपी जब पिछली बार केन्द्र सरकार में थी तब 2003 में पहली बार नदी जोड़ने के प्रोजेक्ट को प्रस्तावित किया गया था। तब उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री मुलायम सिंह यादव और मध्य प्रदेश के मुख्यमंत्री बाबू लाल गौर ने इस प्रोजेक्ट के ज्ञापन पर हस्ताक्षर कर मंजूरी दी थी।  2017 में पर्यावरणविद हिमांशु ठक्कर इस प्रोजेक्ट के खिलाफ नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल (एनजीटी) चले गये। जहां उन्होंने इस प्रोजेक्ट को पर्यावरण के लिए खतरनाक बताया, खासकर पन्ना टाइगर रिजर्व के लिए। एनजीटी ने हिमांशु की याचिका दाखिल करके इस प्रोजेक्ट पर रोक लगा दी है और एनजीटी में इस मामले पर सुनवाई चल रही है। भारतीय वन सेवा के सेवानिवृत्त अधिकारी मनोज मिश्रा ने दिसंबर 2017 में राष्ट्रीय वन्यजीव बोर्ड की डैम के लिए दी गई मंजूरी को चुनौती दे दी। जिसके बाद मार्च 2019 में सुप्रीम कोर्ट ने इस प्रोजेक्ट का दौरा करने के लिए एक पैनल गठित किया। इस पैनल ने अभी तक इसकी रिपोर्ट पेश नहीं की है।

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