कमलनाथ के क्षेत्र में बिना मंजूरी के बन रहा है बांध, किसान आंदोलन पर

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1984 में जब पर्यावरण मंत्रालय नहीं था तब एक सादे कागज पर मंजूरी दी गई बाद में पर्यावरण और वन विभाग की तरफ से केंद्रीय जल आयोग के साथ पर्यावरण निर्धारण कमेटी से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेने पर जो फैसला आया वह उपलब्ध है जिसकी रोशनी में वह एक पन्ने की इजाजत अब रद्द मानी जा चुकी है। दूसरे, इस बांध के लिए पर्यावरण सुरक्षा कानून 1986 के तरह वन सुरक्षा कानून 1980 की भी मंजूरी नहीं ली गई है। महाराष्ट्र और मध्य प्रदेश सीमा पर स्थित पेंच नदी पर 41 मीटर का बड़ा बांध केंद्रीय मंत्री कमलनाथ के निर्वाचन क्षेत्र में बिना केंद्र सरकार की मंजूरी के बन रहा है। यह आरोप जल आंदोलनों के राष्ट्रीय समन्वय की सदस्य मेधा पाटकर ने लगाया है। मेधा पाटकर ने पेंच परियोजना के खिलाफ आंदोनल छेड़ने से पहले जनसत्ता से बात करते हुए यह जानकारी दी। इस परियोजना में बांध क्षेत्र के 31 गांव डूब क्षेत्र में आ रहे हैं और 5600 हेक्टेयर भूमि का भूअर्जन का काम भी पूरा नहीं हुआ है। जबकि किसान मंच का आरोप है कि केंद्रीय मंत्री कमलनाथ की शह पर ही यह हो रहा है जिसके खिलाफ अब मेधा पाटकर सत्याग्रह करने को मजबूर हुई हैं।

यह पूछने पर कि बांध परियोनजा का दावा है कि इसकी मंजूरी ली गई है, मेधा पाटकर ने कहा –यह सरासर झूठ है। 1984 में जब पर्यावरण मंत्रालय नहीं था तब एक सादे कागज पर मंजूरी दी गई बाद में पर्यावरण और वन विभाग की तरफ से केंद्रीय जल आयोग के साथ पर्यावरण निर्धारण कमेटी से अनापत्ति प्रमाण पत्र लेने पर जो फैसला आया वह उपलब्ध है जिसकी रोशनी में वह एक पन्ने की इजाजत अब रद्द मानी जा चुकी है। दूसरे, इस बांध के लिए पर्यावरण सुरक्षा कानून 1986 के तरह वन सुरक्षा कानून 1980 की भी मंजूरी नहीं ली गई है। यह जानकारी केंद्रीय मंत्री जयंती नटराजन ने दी। जिससे यह साफ हो गया है कि कानून को ठेंगा दिखाते हुए यह बांध परियोजना आगे बढ़ रही है।

यह पूछे जाने पर कि जिला प्रशासन ने कहा है कि किसानों ने अपनी भूमि का मुआवजा ले लिया है? मेधा पाटकर ने कहा, यह भी गुमराह करने का प्रयास है। 1984 के बाद किसानों को तीस से चालीस हजार रुपए मुआवजा दिया जाना धोखाधड़ी के अलावा कुछ नहीं था। फिर जब आंदोलन हुआ तो इसे बढ़ा कर एक लाख रुपए एकड़ कर दिया गया पर इसके बावजूद नब्बे फीसद किसानों ने विस्थापन स्वीकार नहीं किया। पेंच परियोजना से पर्यावरण का क्या नुकसान हो सकता है? इस पर पाटकर का कहना था कि इस बांध से नीचे तोतलाडोह बांध है जो प्रभावित होगा और नदी के चारों ओर घना जंगल है जिस पर असर पड़ेगा। इसके अलावा पेंच नेशनल पार्क और टाइगर प्रोजेक्ट भी इससे प्रभावित होगा। इसीलिए आसपास के गांवों के किसान ओस परियोजना के खिलाफ आंदोलनरत हैं।

किसान नेता सुनीलम की गिरफ्तारी के बाद इस अंचल में पुलिस प्रशासन ने किसानों पर दमन करना शुरू कर दिया है। किसान मंच के अध्यक्ष विनोद सिंह ने नागपुर से लौटकर रविवार को कहा कि पुलिस ने सुनीलम के बाद उनकी सहयोगी आराधना भार्गव को भी गिरफ्तार कर लिया है। उसके बाद समूचे क्षेत्र में बड़ी संख्या में पुलिस बल तैनात कर दिया गया है। परियोजना स्थल पर सत्याग्रह शुरू हो गया है जिसमें अब उत्तर प्रदेश, दिल्ली, महाराष्ट्र और मध्य-प्रदेश के किसान भी हिस्सा लेने जा रहे हैं। अब यह संघर्ष और व्यापक होने जा रहा है। भारतीय किसान यूनियन के साथ सामाजिक संगठनों ने भी इस दिशा में पहल की है।

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