कुछ ऐसी तान सुनाने वाला कवि

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साफ धुला खद्दर का कुर्ता-पाजामा पहने, सिर पर तिरछी टोपी दिए, कभी किसी समाज में पहुंच जाते तो बड़े से बड़ा आदमी छोटा लगने लगता था। उनके आसपास हंसी और उल्लास की तो जैसे बरसात ही होती रहती थी। आत्मीयता ऐसी कि पहली बार मिलकर ही मुझे लगा कि ‘नवीन’ जी ने मुझे नए आदमी की तरह ग्रहण नहीं किया है। उनमें निरर्थक व्यवहार-कुशलता और बनावटी विनम्रता नहीं थी। सबसे स्वाभाविक, आत्मीय भाव से मिलते थे। उनके लिए कोई भी अविश्वसनीय नहीं था।

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