खिसक रहा भू-जल स्तर, कवायद हुई फेल

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तेजी से कट रहे वृक्ष, पट रहे जलाशय, सिकुड़ रहे तालों एवं बढ़ रही आबादी के बीच प्राकृतिक जल का संरक्षण नहीं हो पा रहा है। पर्यावरण पर पड़ रहे प्रतिकूल प्रभाव एवं प्रदूषण ने औसत तापमान में वृद्धि कर दिया है। इन कारणों के चलते भूजल स्तर तेजी से प्रतिवर्ष नीचे खिसकता जा रहा है। हाल यह कि हैडपंप सूख रहे है तोकुंए से जल निकालना आसान नहीं रहा। जमीन से पानी निकालने में लगे छोटे पंप तो दूर नलकूप भी खिसकते जलस्तर से प्रभावित हो रहे है। केंद्र सरकार द्वारा संचालित राष्ट्रीय ग्रामीण रोजगार गारंटी योजना के तहत जलसंरक्षण पर बल दिया गया है। उधर प्रदेश सरकार ने भी योजना के तहत सिंचाई समृद्धि, जल ग्रहण क्षेत्र प्रबंधन, जल संचयन व जल संवर्धन के बाबत विशेष कार्य कराये जाने का निर्देश दिया है।

हाल ही में प्रदेश सरकार ने ग्राम्य विकास विकास विभाग के माध्यम से नरेगा के तहत श्रम एवं रोजगार परक ग्यारह परियोजनाएं संचालित किये जाने का निर्देश दिया है। इन परियोजनाओं में भूमि सुधार, जलग्रहण क्षेत्र प्रबंधन एवं जल संचयन व जल संवर्धन भी समाहित है। इन मल्टी पर्पज योजनाओं के बीच एक कामन उद्देश्य है प्राकृतिक जल का संरक्षण कर भूगर्भ जलस्तर को खिसकने से बचाना। बहरहाल योजनाएं जनपद में गत वित्तीय वर्ष ही संचालित होने से परिणाम की अपेक्षा अभी बेमानी है। उधर अंधाधुंध वृक्ष कटाई के चलते वन विभाग को वृक्षारोपण का दायित्व सौंपा गया है पर परिणाम सर्वविदित है। नरेगा के तहत लगभग प्रत्येक ग्राम पंचायत में पोखरे तो खोदे गये हैं पर इन्हे से पानी से भरने का फरमान बेमानी साबित हो रहा है। हाल यह कि सूखते पोखरे मंह चिढ़ा रहे है। पूर्व में प्रत्येक ग्राम में एक बड़ा पोखरा ऐसा अवश्य होता था जिसका जल कभी नहीं सूखता था चाहे लाख गरमी हो या सूखा पड़े। पर अब हाल यह कि आबादी के निकट स्थित पोखरों पर अतिक्रमण की होड़ है तो आबादी से दूर पोखरों को खेत का रूप दिया जा रहा है। सार्वजनिक पोखरियों की घटती संख्या भी जलस्तर खिसकने कस प्रमुख कारण है। उल्लेखनीय यह कि जल संसाधन घट रहे हैं तो जल उपभोग में वृद्धि हो रही है। ऐसे में जलस्तर का खिसकना स्वाभाविक है पर भावी पीढ़ी की मुश्किलों को कम करने हेतु जलसंरक्षण एवं संवर्धन बेहद जरूरी है।
 

शैशव अवस्था में है जलागम विकास योजना


घोसी : जनपद में जल संरक्षण हेतु गत वर्ष ही राष्ट्रीय जलागम विकास योजना लागू की गयी है। पांच वर्षो हेतु चलायी जाने वाली इस योजना के तहत गत वर्ष तक मात्र 42 लाख का बजट मिला है। वर्तमान में पहसा क्षेत्र में पांच सौ हेक्टेयर के दस जलोगम लिये गये है। योजना को कार्यरूप में परिणीत किये जाने के पूर्व सोसाइटी के गठन, पंजीकरण आदि की प्रक्रिया के बाद अब योजना प्रारम्भ हो गयी है पर परिणाम आना अभी शेष है। योजना के तहत समोच्चय रेखीय, अवरोध, जलसंचय बांधों सहित बैच टेरेसिंग के जरिये खेत के पानी को खेत में ही रोका जायेगा। इससे उतपादन में वृद्धि के साथ ही भूगर्भ जलस्तर भी सुधरेगा।
 

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