Narmada Kund
Narmada Kund

खतरे में है नर्मदा का उद्गम

Published on
3 min read

अमरकंटक के जंगल दुर्लभ वनस्पतियों, जड़ी-बूटियों और वन्य प्राणियों के लिए मशहूर रहे हैं। खदानों में विस्फोटों के धमाकों से जंगली जानवर भारी संख्या में पलायन कर रहे हैं। 'गुलबकावली' के फूल कभी यहां अटे पड़े थे, अब यह दुर्लभ जड़ी-बूटी मुश्किल से मिलती है। इस फूल का अर्क आंखों की कई बीमारियों का अचूक नुस्खा है। इसके अलावा भी आयुर्वेद का बेशकीमती खजाना खनन ने लूट लिया है। अब यहां यूकेलिप्टस उगाया जा रहा है जिसके चलते जमीन के भीतर का पानी सूखता जा रहा है।

नर्मदा मध्य प्रदेश और गुजरात की जीवन रेखा कहलाती है। इसके उद्गम स्थल अमरकंटक के चप्पे-चप्पे से प्राकृतिक सौंदर्य, ऐतिहासिकता और समृद्ध परंपराओं की गंध आती है। अमरकंटक एक तीर्थ स्थान और पर्यटन केंद्र ही नहीं बल्कि एक प्राकृतिक चमत्कार भी है। हिमाच्छादित न होते हुए भी यह पांच नदियों का उद्गम स्थल है। इनमें से दो सदानीरा विशाल नदियां हैं, जिनका प्रवाह परस्पर विपरीत दिशाओं में है। हाल ही में मध्य प्रदेश प्रदूषण बोर्ड ने नर्मदा की बायोमॉनिटरिंग करवाई तो पता चला कि केवल दो स्थानों को छोड़कर नर्मदा नदी स्वस्थ है। जिन दो स्थानों पर नदी की हालत चिंताजनक दिखी, उनमें से एक अमरकंटक है।

चिरकुमारी नर्मदा पश्चिम मुखी है और यह 1304 किलोमीटर की यात्रा तय करती है। सोन नदी का बहाव पूर्व दिशा में 784 किमी तक है। इसके अलावा जोहिला, महानदी का भी यह उद्गम स्थल है। यहां प्रचुर मात्रा में कीमती खनिजों का मिलना इस सुरम्य प्राकृतिक सुषमा के लिए दुश्मन साबित हो रहा है। तेजी से कटते जंगलों, कंक्रीट जंगलों की बढ़ोतरी और बॉक्साइट की खदानों में अंधाधुंध उत्खनन के चलते यह भूमि विनाश की ओर अग्रसर है।

मध्य प्रदेश के शहडोल जिले में मैकाल पर्वत श्रेणी की अमरकंटक पहाड़ी समुद्र की सतह से कोई 3500 फुट ऊंची है। स्कंदपुराण से लेकर कालिदास की काव्य रचना तक में इस पावन भूमि का उल्लेख है। नर्मदा और सोन दोनों ही भूमिगत जल-स्रोतों से उपजी हैं। नर्मदा 'माई की बगिया' में पहले दिखकर गुम हो जाती है। फिर यह 'नर्मदा कुंड' से बहती दिखती है। वहां मौजूद शिलालेख बताते हैं कि 15वीं सदी के आस-पास से नर्मदा का उद्गम-स्थल 'नर्मदा कुंड' रहा है। इससे पूर्व पार्श्व में स्थित 'सूर्यकुंड' नर्मदा की जननी रहा होगा। आज सूर्यकुंड की हालत बेहद खराब है। यह स्थान गंदा और उपेक्षित-सा पड़ा है।

अमरकंटक की पहाड़ियों पर बाक्साइट की नई-नई खदानें बनाने के लिए वहां खूब पेड़ काटे गए। इन खदानों में काम करने वाले हजारों मजदूर भी ईंधन के लिए इन्हीं जंगलों पर निर्भर रहे, सो पेड़ों की कटाई अनवरत जारी है। पहाड़ों पर पेड़ घटने से बरसात का पानी, खनन के कारण एकत्र हुई धूल को तेजी से बहाता है। यह धूल नदियों को उथला बना रही है। यदि शीघ्र ही यहां जमीन के समतलीकरण और वृक्षारोपण की व्यापक स्तर पर शुरुआत नहीं की गई तो पुण्य सलिला नर्मदा भी खतरे में आ जाएगी।

अमरकंटक के जंगल दुर्लभ वनस्पतियों, जड़ी-बूटियों और वन्य प्राणियों के लिए मशहूर रहे हैं। खदानों में विस्फोटों के धमाकों से जंगली जानवर भारी संख्या में पलायन कर रहे हैं। 'गुलबकावली' के फूल कभी यहां अटे पड़े थे, अब यह दुर्लभ जड़ी-बूटी मुश्किल से मिलती है। इस फूल का अर्क आंखों की कई बीमारियों का अचूक नुस्खा है। इसके अलावा भी आयुर्वेद का बेशकीमती खजाना खनन ने लूट लिया है। अब यहां यूकेलिप्टस उगाया जा रहा है जिसके चलते जमीन के भीतर का पानी सूखता जा रहा है। अमरकंटक पर कोई भी आघात कई नदियों के विनाश का आमंत्रण है। अतः इन नदियों से जुड़े लोगों के लिए अमरकंटक के वैभव को सहेज कर रखना अत्यावश्यक है।

संबंधित कहानियां

No stories found.
India Water Portal - Hindi
hindi.indiawaterportal.org