क्यों कर रहा है लद्दाख क्लाइमेट फास्ट (जलवायु उपवास)
पिछले कई महीनों से केंद्र शासित प्रदेश लद्दाख के लोग अपनी कई माँगों को लेकर आंदोलन कर रहे हैं। ‘सेव लद्दाख, सेव हिमालय, सेव ग्लेशियर’ और ‘लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा दो’ लिखे होर्डिंग लेकर माइनस 10 से माइनस 12 डिग्री के तापमान में खुले में अनशन करने वाले लद्दाख के लोगों में जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक भी 6 मार्च से शामिल हो गये थे। लेह और कारगिल ज़िलों में लोग सड़कों पर उतरकर लद्दाख को संविधान की छठीं अनुसूची में शामिल करने और राज्य का दर्जा देने समेत कई माँगें कर रहे हैं। मैग्सेसे पुरस्कार विजेता, पर्यावरणविद, शिक्षा सुधारक और सामाजिक कार्यकर्ता जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने इस अनशन को क्लाइमेट फास्ट (जलवायु अनशन) नाम दिया है।
हालाँकि लम्बे समय से अनशन पर खुले में बैठे जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की तबीयत बिगड़ने के चलते उन्होंने 21 दिन बाद अनशन तो तोड़ दिया; लेकिन इससे विरोध-प्रदर्शन पर कोई असर नहीं पड़ा। अब महिलाएँ आन्दोलन कर रही हैं। हालांकि ऐसा नहीं है कि इस आंदोलन से पुरुष दूर हैं। लेकिन आंदोलन का मोर्चा अब महिलाओं ने सम्भाल लिया है। शान्ति से किये जा रहे प्रदर्शन के दौरान जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने प्रधानमंत्री से एक भावुक अपील करते हुए कहा कि मोदी भगवान राम के भक्त हैं और उन्हें प्राण जाएँ पर वचन न जाए की उनकी सीख का पालन करना चाहिए। लेकिन केंद्र सरकार ने लद्दाख के लोगों की माँग पर रिपोर्ट लिखे जाने तक कोई तक ध्यान नहीं दिया।
जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक के साथ क़रीब 2,000 लोग विरोध-प्रदर्शन कर रहे हैं। इसके अलावा लद्दाख में कई जगहों पर हज़ारों लोग अनशन और धरने पर बैठे हैं। जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक अपने अनशन की जानकारी वीडियोज के माध्यम से सोशल मीडिया और पूर्व ट्वीटर हैंडल - एक्स पर साझा करते हैं। उन्होंने एक वीडियो में कहा था कि अगर कोई यह कह रहा है कि वो डरता नहीं है, तो या तो वो झूठ बोल रहा है या फिर गोरखा है। उन्होंने आगे कहा कि अग्निवीर योजना के विरोध में गोरखा चीन की सेना में भर्ती होने का फैसला कर रहे हैं। जो गोरखा हमारे देश की रक्षा के लिए बहादुरी से लड़ते रहे हैं, वो अब चीन की तरफ से हमारे ऊपर ही हमला करेंगे। जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक का वीडियो के ज़रिये दिया गया यह बयान अगर सही है, तो केंद्र सरकार को इसकी चिंता करनी चाहिए और गोरखा रेजीमेंट के जवानों की बात सुननी चाहिए। अरुणाचल प्रदेश, लद्दाख, सिक्किम और उत्तराखण्ड ऐसे राज्य हैं, जिनकी सीमाएं चीन से लगती हैं। चीन कई वर्षों से इन सीमावर्ती राज्यों की ज़मीन हड़पने की कोशिशें कर रहा है। उसकी नज़र इन सीमावर्ती राज्यों पर एक दुश्मन की तरह टिकी हुई है और वो इन राज्यों को अपने देश में शामिल करना चाहता है। केंद्र सरकार को सोचना चाहिए कि अगर भारत के ही चीन के सीमावर्ती राज्य के लोग केंद्र सरकार की नीतियों की बगावत करने लगेंगे, तो चीन का मनोबल बढ़ेगा और वह अपने नापाक इरादों में कामयाब होगा। लद्दाख के लोगों का इस तरह से बग़ावत पर उतर आना कोई छोटी बात नहीं है। समुद्र तल से क़रीब 3,500 मीटर की ऊँचाई पर बसे लद्दाख में हमारे जवान चीन और पाकिस्तान से देश की सीमा की रक्षा करते हैं। लेकिन इस राज्य को केंद्र शासित प्रदेश होने के चलते सुविधाओं से वंचित रहने के अलावा माफ़िया द्वारा दोहन किये जाने को लेकर वहाँ के लोगों को आन्दोलन करने को मजबूर होना पड़ा है।
लद्दाख के लोगों का कहना है कि उन्हें लद्दाख की सुरक्षा के साथ-साथ वो सभी अधिकार चाहिए, जो एक स्वतंत्र राज्य के लोगों को मिलते हैं। लद्दाख के दोनों जिलों लेह और कारगिल समेत इस केंद्र शासित राज्य के ग्रामीण इलाक़ों तक में लोग आन्दोलन कर रहे हैं। लद्दाख के लोगों की कई ऐसी माँगें हैं, जो केंद्र सरकार को भले ही गैर-ज़रूरी लग रही हों; लेकिन कई माँगें ऐसी हैं, जिन्हें तत्काल पूरा करने के लिए केंद्र सरकार को आगे आना चाहिए। लद्दाख में सबसे पहले लेह से विरोध-प्रदर्शन शुरू हुआ था, उसके तुरन्त बाद कारगिल में भी विरोध-प्रदर्शन शुरू हो गया। कारगिल शहर में 20 मार्च को आधे दिन का बन्द भी रखा गया। यह विरोध तब और बढ़ गया, जब जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक अनशन पर बैठ गये।
ऐसा नहीं है कि लद्दाख में आन्दोलन अचानक शुरू हुआ है। इस आन्दोलन को जन्म देने वाली केंद्र सरकार ही है। क्योंकि जब उसने लद्दाख को जम्मू-कश्मीर से अलग करके केंद्र शासित प्रदेश घोषित किया, तब साल 2019 के लोकसभा चुनाव के अपने चुनावी घोषणा-पत्र में भाजपा ने यह वादा किया कि लद्दाख को संविधान की छठी अनुसूची में शामिल किया जाएगा। इसके बाद अक्टूबर, 2020 में भी लद्दाख ऑटोनॉमस हिल डेवलपमेंट काउंसिल, लेह के चुनाव में फिर भाजपा ने यही वादा अपने दूसरे घोषणा-पत्र में किया था। भाजपा के इस वादे को पूरे चार साल हो गये; लेकिन उसे अपने वादे की याद नहीं आयी और केंद्र सरकार से भी लद्दाख के लोगों को कोई आश्वासन तक नहीं मिला। लद्दाख के लोगों का कहना है कि उनसे की गयी वादाख़िलाफ़ी को लेकर चार साल के इंतज़ार के बाद वे विरोध-प्रदर्शन और आन्दोलन करने को मजबूर हैं। उनका कहना है कि भाजपा का वादा प्रधानमंत्री मोदी का वादा ही है। आजकल तो प्रधानमंत्री मोदी हर जगह मोदी की गारंटी के नाम से हर किसी को गारंटियाँ दे रहे हैं, तो फिर लद्दाख वालों से किये गये वादे को वे कैसे भूल गये ? अनशन पर बैठे लोगों का कहना है कि लद्दाख के मामलों पर विचार के लिए उच्च स्तरीय समिति बनाकर केंद्र सरकार ने बातचीत के नाम पर सिर्फ और सिर्फ़ मुद्दों को टालने की नीयत से वक़्त काटा है। लेकिन अब लद्दाख के लोगों को विश्वास हो गया है कि उनके साथ धोखा हो रहा है और केंद्र सरकार अपने वादे से मुकर रही है। भाजपा ने लद्दाख के लोगों को वादे के झाँसे में लेकर 2019 में लद्दाख लोकसभा सीट जीती और लेह के काउंसिल चुनाव में भी बहुमत हासिल कर लिया; लेकिन अब लद्दाख के लोग वादों की याद दिला रहे हैं।।
इस मामले में कई कोशिशों और बातचीतों के नाकाम रहने के बाद ही लद्दाख के लोगों ने विरोध-प्रदर्शन करना शुरू किया है। 4 मार्च को भी लद्दाख आन्दोलन के प्रतिनिधियों ने दिल्ली में केंद्रीय गृह मंत्री अमित शाह से भी इस मामले पर मुलाक़ात करके चर्चा की। इन प्रतिनिधियों ने अपनी परेशानियाँ गिनाते हुए केंद्रीय गृह मंत्री से लद्दाख को पूर्ण राज्य का दर्जा देने की माँग की। इसके बाद भी कोई नतीजा नहीं निकला, जिसके चलते लद्दाख के लोग विरोध-प्रदर्शन और अनशन पर बैठ गये। जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक ने पहले भी साफ़ कहा था कि अगर केंद्र सरकार लद्दाख के लोगों की माँग नहीं मानेगी, तो उनका क्लाइमेट फास्ट, आमरण अनशन में बदल जाएगा। इतने पर भी केंद्र सरकार ने इस मामले को लेकर कोई पहल नहीं की और न ही अनशन पर बैठे लोगों के प्रति कोई संवेदनशीलता दिखायी।
सवाल यह है कि क्या देश के किसानों की तरह ही लद्दाख के लोगों की आवाज़ भी दिल्ली में बैठी केंद्र सरकार सुनना नहीं चाहती ? क्योंकि जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक की सेहत बिगड़ने पर भी केंद्र सरकार पर कोई असर नहीं हुआ, जबकि जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक के देश के लिए दिये गये योगदान को भुलाया नहीं जा सकता। सामाजिक कार्यकर्ताओं और पर्यावरण बचाने के लिए मुहिम चलाने वाले कई लोगों ने लद्दाख के मुद्दे को संवेदनशील माना है। कई ने तो यहाँ तक कहा है कि प्रधानमंत्री मोदी को लद्दाख की आवाज़ सुननी चाहिए और संवेदनशीलता के साथ उसके मसलों को हल करने के लिए क़दम उठाने की पहल करनी चाहिए। दरअसल पर्यावरण, सीमा सुरक्षा और सामरिक नज़रिये से लद्दाख़ भारत के लिए बहुत ही महत्त्वपूर्ण राज्य है। लद्दाख के कई इलाक़ों पर चीन की नज़र है और वह लद्दाख में आन्दोलन भड़काने की कोशिशें कर सकता है, ताकि उसकी मंशा पूरी होने में अड़चनें कम आएँ।
चीन पहले भी लद्दाख में अपने सैनिकों को घुसाने की कोशिशें कर चुका है। आज़ादी के बाद से चीन कई बार ऐसी कोशिशें कर चुका है, जिसके चलते सीमा पर भारतीय सैनिकों और चीनी सैनिकों के बीच कई बार झड़पें भी हुई हैं। सन् 1962 में भारत-चीन के बीच हुआ युद्ध का भी यही क्षेत्र प्रमुख केंद्र था। लद्दाख के उत्तर में चीन की घुसपैठ और दक्षिणी हिस्से में विशाल औद्योगिक मशीनों के चलते लद्दाख की जनजातियाँ चारागाह की प्रमुख ज़मीन खो रहे हैं।
जलवायु कार्यकर्ता सोनम वांगचुक इस बात को कई बार कह चुके हैं। लद्दाख के लोगों का आन्दोलन केंद्र सरकार को समझना चाहिए और इसे हल्के में लेकर अनसुना नहीं करना चाहिए। कहा जाता है कि अपनों को जो पराया करता है, तो अपनों का परायापन परायों से भी ज़्यादा हानिकारक होता है, जिसका फ़ायदा दुश्मन उठा ले जाते हैं। इसलिए केंद्र सरकार को लद्दाख के लोगों की मांगों का समाधान करना चाहिए।