मैंग्रोव क्षेत्रों की सुरक्षा तथा उनका संरक्षण

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हाल ही के वर्षों में सुनामी के कहर के बाद मैंग्रोव वनों का महत्व एक बार फिर सामने आया है। हालांकि मैंग्रोव क्षेत्रों की भूमि को अन्य कार्यों के लिए उपयोग करने पर कानूनी प्रतिबन्ध लगाये गये हैं, परन्तु मैंग्रोव वन अभी तक सुरक्षित नहीं हैं। भावी पीढियों के लिए मैंग्रोव क्षेत्रों को सुरक्षित रखने के लिए कुछ तात्कालिक कदम उठाये जाने की आवश्यकता है।

मैंग्रोव क्षेत्रों की सुरक्षा हेतु पारिस्थितिकीय सिद्धान्तों पर आधारित प्रबन्धन योजनाओं का क्रियान्वयन किया जाना चाहिये। मैंग्रोव वनों से सटे क्षेत्रों में पर्यावरण-विकास के लिये व्यवहारिक योजनाएं बनानी होंगी। मैंग्रोव संरक्षण हेतु लीक से हटकर कुछ प्रयास किये जाने चाहिए।

मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र का पुनरुद्धार

मैंग्रोव पुनरुद्धार के मुख्य उद्देश्य निम्नांकित हैं :

प्राकृतिक पुनरुज्जीवन

कृत्रिम पुनरुज्जीवन

पुनरुद्धार के मापक

प्रजातियों का चयन

मैंग्रोव प्रजातियों की अनुक्षेत्र अभिरुचि

ज्वारीय क्षेत्र

वरीय प्रजातियां

उच्च और मध्य स्तरीय जल एविसेनिया मेरीना, ब्रूगेरिया सायलिंड्रिका, ब्रूजिम्नोरहिजा,

ब्रू. पेरविफ्लोरा, ब्रू. सेक्सेंगुला, सेरिओपा डिसेंड्रा, से. टगल, ऐक्सेरिया, ऐजेलोका, सिफिफोरा जाइलोकार्पस ग्रांट्रम एवं जा. मेकोंगिंसिस

मध्य और निम्न स्तरीय जल राइजोफोरा प्रजाति, सोनेरेशिया एल्बा और ऐजिसिरस नाइपा, उच्च स्तरीय जल फ्रुटसियन एवं ल्यूमिनिटेजरा

विभिन्न स्थानों पर मैंग्रोव प्रजातियों की अनुकूलता

मैंग्रोव प्रजातियां

अनुकूलता या वरीयत स्थान

एविसेनिया मारीना अपेक्षाकृत शुष्क ज्वारीय भूमि, नदी मुहाने या उच्च

लवणीय समतल, बंजर क्षेत्र

ब्रूगेरिया जिम्नोरहिजा मीठे जल की वृहद आपूर्ति
सेरिओरस टगल उच्च लवणीय क्षेत्र
नाइपा फ्रुटसियन यह क्षेत्र निम्न स्तरीय ज्वारी वाली घासों से ढका रहता

है, निम्न लवणता

राइजोफारा अेपिक्यूलेटा कीचड़ युक्त क्षेत्र नदीमुख एवं कीचड़ समतल वाला
राइजोफारा मुक्रोनेटा कीचड़ युक्त क्षेत्र नदीमुख एवं कीचड़ समतल वाला
राइजोफारा स्टयलोसा सागर के समीप, यह निम्न ज्वारीय आयाम में उगता है
सोनेरेशिया एल्बा सागर के समीप, उच्च लवणीय क्षेत्र
जाइलोकापर्स ग्रांट्रम निम्न ज्वारीय क्षेत्र

स्थान का चयन

वृक्षारोपण के उद्देश्य से प्रजातियों का चुनाव

वृक्षारोपण का उद्देश्य

प्रत्याशी प्रजातियां

प्राकृतिक पुनरुज्जीवन ऐविसिनिया मेरिना, ऐ. ओफिशिंलिस, ऐजिसिरसर

कोर्निक्यूलेटम, एक्सोरिया एगलोसा, एकेन्थस

इलसिकोलिस

ज्वारीय जल, क्षरण एवं चक्रवातों से तटीय सुरक्षा के लिए राइजोफोरा एपिक्यूलेटा, रा. मुक्रोनेटा, सोनेरेशिय

एल्बा, ऐविसिनिया मेरीना, ऐ. ऑफिसिनेलिस,

हेरिटियेरा, फॉमस्, कैन्डेलिया केंडेल

मुहानों एवं नदीमुखों की सुरक्षा के लिए ऐविसिनिया मेरिना, ऐ. एल्बा, ऐ. ऑफिसिनेलिस,

ब्रूगेरिया सिलिंड्रका, राइजोफोरा ऐपिक्यूलेटा, रामुक्रोनेटा,

रा.स्ट्रइलोसा, सोनेरिशया, कैसेओलारिस,

से. एल्बा, कैन्डेलिया केंडेल, एकेन्कथ लिसिफोलियस

सागर एवं जलकृषि क्षेत्रों के लिए बांध की सुरक्षा के लिए ऐविसिनिया मेरिना, ऐ. एल्बा, ऐ. ऑफिसिनेलिस,

सेरिओरस टगल, राइजोफोरा ऐपिक्यूलेटा, रा. स्ट्रइलोबा,

सोनेरिशया, कैसेओलारिस, ब्रूगेरिया जिम्नोरिजा,

एक्सोकेरिया एगेलोचा

बंजर तटों पर हरियाली के लिए ऐविसिनिया ऑफिसिनेल, सेरिओप्स टगल
खनन क्षेत्रों के पुनरुज्जीवन के लिए राइजोफोरा एसपीपी
नवीन कीचड़समतल के प्रवेश के लिए राइजोफोरा मुक्रोनेटा, रा. एपिक्यूलेटा, ऐविसिनिया

मेरीना, ऐ. ऑफिसिनेलिस, ऐजिसिरस कोर्नक्यूलेटम

इमारती लकड़ी, काठकोयला और जलावन लकड़ी

आदि वन उत्पादों के लिए

सोनेरिशया एल्बा, से. एप्टेला, ऐविसेनिया मेरीना,

ऐ. ऑफिसिनेल, राइजोफोरा एपिक्यूलेटा, रा. मुक्रोनेटा,

केरिओप्स टगल, ब्रूगेरिया जिम्नोरिजा, कैन्डेलिय

कैंडेल, हेरिरियेटा फॉर्मस्, जाइलोकार्पस ग्रांट्रम

मत्स्य संसाधनों की वृद्धि के लिए ऐविसिनिया प्रजाति, ब्रूगेरिया प्रजाति

प्रजातियों की जटिलता

तटीय सुरक्षा

मैंग्रोव संरक्षण के अतिरिक्त लाभ

मैंग्रोव पौधशालाओं का प्रबंधन

पौधारोपण का प्रकार

मैंग्रोव वृक्षों का पौधारोपण निम्नांकित दो प्रकार से किया जाता हैः


(i) बीज अथवा प्रावर्ध्य (मातृ वृक्ष पर ही बीज से तैयार पौधा) को सीधे ही दलदली क्षेत्रों में रोपित किया जाता है।
(ii) बीजों से पौधशाला में तैयार पौधों को रोपित किया जाता है।

उन क्षेत्रों में जहां कीट-प्रकोप अधिक होता है, पौधशाला में तैयार अपेक्षाकृत बडे़ पौधों के रोपण की सलाह दी जाती है। पौधारोपण के समय मैंग्रोव वनस्पति के प्राकृतिक अनुक्षेत्र वर्गीकरण का भी ध्यान रखना चाहिये। उदाहरणः के लिए लम्बे प्रावर्ध्य उच्च ज्वारीय क्षेत्र में स्थापित होते हैं जबकि वे प्रावर्ध्य जिनकी लम्बाई अपेक्षाकृत कम होती है, अन्तर ज्वारीय क्षेत्र के भूमि की ओर वाले भाग में स्थापित होते हैं। पौधारोपण का आदर्श समय वह है जब जलस्तर कम हो। अधिक लम्बे प्रावर्ध्य को रोपित करते समय उसकी गहराई बढ़ायी जा सकती है। पौधारोपण के समय प्रावर्ध्य का नुकीला सिरा मिट्टी के अन्दर होना चाहिये। छोटे आकार के बीज मिट्टी में धीरे से रख दिये जाते हैं। पौधों के बीच की दूरी सामान्यतः 1.5 से 2 मीटर के बीच रखी जाती है। पौधों के बीच सही दूरी बनाये रखने के लिए एक लम्बी सीधी रस्सी का प्रयोग किया जाता है।

पौधारोपण का समय या पौधारोपण का मौसम रोपित की जाने वाली प्रजाति, पौधों की उपलब्धता, पानी के खारेपन का अनुकूल स्तर आदि कारकों द्वारा निर्धारित होता है। पानी की लवणीयता अधिक होने पर या तीव्र वायु गति के कारण लहरों का वेग तीव्र होने पर पौधों रोपण की सलाह नही दी जाती है। मानसून के बाद का समय जब पानी की लवणीयता मध्यम स्तर पर होती है, पौधारोपण के लिये उपयुक्त रहता है। नव रोपित पौधों की उचित देखरेख होनी चाहिये और क्षतिग्रस्त या मृत पौधों को तुरन्त हटा कर उनके स्थान पर नये पौधे लगाने चाहिये। यद्यपि मैंग्रोव क्षेत्रों का पुनरूद्धार एक अच्छा कार्य है परन्तु वर्तमान में विद्यमान मैंग्रोव क्षेत्रों का संरक्षण उनके पुनरुद्धार से कहीं अधिक अच्छा है। मैंग्रोव वनों के संरक्षण के लिये मानव की उन पर निर्भरता को कम करना होगा। स्थानीय लोगों की आवश्यकताओं को ध्यान में रखकर प्रतिरोधक (बफर) क्षेत्र में ईंधन की लकड़ी देने वाले पौधांे की विकसित प्रजातियों का वृहद स्तर पर रोपण किया जाना चाहिये।

संयुक्त वन प्रबंधन

सम्बन्धित व्यक्तियों की पहचान

स्थानीय उपभोक्ता समुदाय :

इस समुदाय के लोग मैंगरोव वन क्षेत्रों में या उनके आसपास रहते हैं तथा मछली, लकड़ी, पत्तियों तथा डालियों जैसे संसाधनों का सीधे उपयोग करते है।

(ii)

स्थानीय समुदाय :

इस समुदाय के लोग मैंग्रोव वन के संसाधनों का उपयागे नहीं करते, लेकिन चक्रवात आदि से सुरक्षा के लिये वन क्षेत्र में निवास करते हैं।

(iii)

दूरूरस्थ उपभोक्ता समुदाय :

इस समुदाय के लागे दरू -दराज क्षेत्रों से आते हैं और मैंग्रोव क्षेत्रों का उपयोग झींगा और मत्स्य उत्पादन के लिये करते हैं।

(iv)

सरकारी संस्थाएं :

इन पर मैंग्रोव वे क्षेत्रों के संरक्षण तथा प्रबंधन की जिम्मेदारी है।

(v)

मैंग्रोव उपभोक्ता समुदाय के पक्षधरः

गैर सरकारी संस्थाएं तथा अन्य स्वयंसेवी संस्थायें।

(vi)

शोध एवं शिक्षण संस्थाएं :

ये मैंग्रोव क्षेत्रों की दशा का आकलन करते हैं।

वास्तविक भागीदारी में, प्रबन्धन तथा संरक्षण सम्बन्धी निर्णय लेने में सभी सम्बद्ध व्यक्तियों की सक्रिय भूमिका होती है। वे मैंग्रोव संसाधनों के प्रबन्धन की योजनाएं बनाने, उनके क्रियान्वयन तथा निरीक्षण से सीधे जुडे़ होते हैं। स्थानीय लोगों को मैंग्रोव वनों के आर्थिक तथा पर्यावरण सम्बन्धी महत्व के बारे में शिक्षित करना उनके (वनों के) संरक्षण की दिशा में एक सार्थक कदम हो सकता है। संसाधनों के बेहतर प्रबन्धन से स्थानीय लोग अपने घरेलू उपयोग के लिये ईंधन की लकड़ी इस प्रकार प्राप्त कर सकते हैं जिससे वनों को कोई हानि न हो।

वैश्विक (अंतर्राष्ट्रीय) संस्थाओं की भूमिका

रामसर सम्मेलन

मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्रों के लिये अंतर्राष्ट्रीय समिति (आई. एस.एम.ई)

यह सन् 1990 में ओकीनावा (जापान) में प्रारम्भ हुई एक गैर सरकारी संस्था है। इसके उद्देश्य निम्नांकित हैं -


(i) मैंग्रोव पारिस्थितिकी तंत्र के संरक्षण तथा पुनरुद्धार के लिये किये जाने वाले कार्यों को सहायता देना तथा प्रोत्साहित करना।

(ii) वैश्विक मैंग्रोव डाटाबेस तथा सूचना तंत्र (जी.एल.ओ.एम.आई.एस.) द्वारा आवश्यक सूचनाएं उपलब्ध कराना।

(iii) मैंग्रोव सम्बन्धित क्रियाकलापों के लिए धन एकत्र करना।

सन् 1991 में आई.एस.एम.ई. ने एक ”मैंग्रोव पर एक घोषणापत्र“ को अपनाया। इस संस्था के 70 देशों में 700 सदस्य हैं। यह संस्था जैव विविधता कार्यक्रम में स्वयं सेवकों का योगदान, मैंग्रोव वृक्षारोपण कार्यक्रमों का निरीक्षण तथा मूल्यांकन, तट रोधक (रक्षक) के रूप में मैंग्रोव का मूल्यांकन तथा मैंग्रोव एवं अंतर्राष्ट्रीय सहयोग के लिये निपुण प्रबन्धकों का स्थानान्तरण आदि कार्यक्रमों में सम्मिलित है। इस संस्था की जी.एल.ओ.एम.आई.एस. परियोजना के चार क्षेत्रीय केन्द्र ब्राजील, घाना, फिजी तथा भारत में स्थित हैं। इस परियोजना में विशेष रूप से वैज्ञानिकों, सरकारों तथा संरक्षण और प्रबन्धन से जुडे़ व्यक्तियों के बीच सामंजस्य तथा सूचनाओं के आदान-प्रदान पर विशेष बल दिया गया है।

वेटलैण्ड इन्टरनेशनल

मैंग्रोव एक्शन प्लान

मैंग्रोव एक्शन प्लान के अंतर्गत भारतीय मैंग्रोव

क्रमांक संरक्षण प्राप्त मैंग्रोव क्षेत्र राज्य
1 सुंदरवन पश्चिम बंगाल
2 भितरकनिक उड़ीसा
3 महानदी उड़ीसा
4 सुवर्णरेखा उड़ीसा
5 देवी उड़ीसा
6 धामरा उड़ीसा
7 कालीभंजा डीए द्वीपसमूह उड़ीसा
8 कोरिन्गा आंध्र प्रदेश
9 पूर्व गोदावरी आंध्र प्रदेश
10 कृष्णा आंध्र प्रदेश
11 पिचवरम तमिलनाडु
12 केजुहुवेली तमिलनाडु
13 मुथुपेट तमिलनाडु
14 रामानाड तमिलनाडु
15 अचरा-रत्नागिरी महाराष्ट्र
16 देवगढ़ महाराष्ट्र
17 विजयदुर्ग महाराष्ट्र
18 मुम्ब्रा-दीवा महाराष्ट्र
19 वितीरलर नदी महाराष्ट्र
20 कुण्डलिका-रवदाना महाराष्ट्र
21 वसासी-मनोरी महाराष्ट्र
22 श्रीवर्धन-वेरल-टुरुमबादी और कालसुरी महाराष्ट्र
23 चारो गोवा
24 उत्तरी अंडमान अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह
25 दक्षिणी अंडमान अंडमान और निकोबार द्वीपसमूह
26 खम्भात की खाड़ी गुजरात
27 कच्छ की खाड़ी गुजरात
28 कून्डापुर कर्नाटक
29 होनावर क्षेत्र कर्नाटक

कैरेबियन मैंग्रोव नेटवर्क

भारतीय प्रयास-भारतीय मैंग्रोव समिति (मैंग्रोव सोसाइटी ऑफ इण्डिया)

एम.एस. स्वामीनाथन शोध संस्थान, चेन्नई

मंत्रालय द्वारा चिन्हित मैंग्रोव क्षेत्रों की प्रदेशवार सूची

प्रदेश

/

केन्द्र शासित प्रदेश मैंग्रोव क्षेत्र

पश्चमि बंगाल

 सुंदरवन

दक्षिण कन्नड़/होनवार

मैंगलोर वन क्षेत्र

करवार

उड़ीसा

भितरकनिक

महानदी

सुवर्णरेखा

देवी

धामरा

एम.आर.जी.सी.

चिलका

गोवा

गोवा

आन्ध्र प्रदेश

कोरिन्गा

पूर्व गोदावरी

कृष्णा

पुलीकट

काजुवेली

महाराष्ट्र

अचरा-रत्नागिरी

देवगढ़-विजय दुर

वेलदुर

कुण्डलिका-रवदाना

मुम्ब्रा-दीवा

विकरोली

श्रीवर्धन

वैतरन

वसासी-मनोरी

मालवन

अंडमान और निकोबार

उत्तरी अंडमान

निकोबार

गुजरात

कच्छ की खाड़ी

खम्बात की खाड़ी

डुमास-उबरत

केरल

वेम्बानाद कन्नूर

कर्नाटक

कून्डापुर

तमिलनाडु

पिचवरम

मुथुपेट

गोदरेज औद्योगिक समूह की मैंग्रोव परियोजना

सरकार की सहभागिता

जीव मण्डल संरक्षित क्षेत्र

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