reservoir
reservoir

मारवाड़ के जलाशय

3 min read

मारवाड़ जैसा क्षेत्र जहाँ प्राकृतिक स्रोतों से जल की उपलब्धता एक समस्या बनी रही है, जलाशयों का निर्माण विशेष रुप से महत्वपूर्ण हो जाता है।

मारवाड़ के शासकों व उनके सामन्तों ने जलाशय निर्माण में पर्याप्त रुचि ली। मध्यकाल में दुर्ग-निर्माण की सुरक्षा की दृष्टि से जल स्रोतों का महत्व हुआ करता था। ये दुर्गों की अयेद्यता के सूचक थे। पर्याप्त जल-भंडारण के लिए प्रत्येक दुर्ग के भीतर भी जलाशयों का होना अनिवार्य था। प्राकृतिक जल स्रोतों के अभाव में प्रत्येक दुर्ग के अन्दर कृत्रिम रुप से जल-भंडारण हेतु कई तालाबों, बावडियों, झालरों व टांको का निर्माण करवाया गया। तालाब तथा अधिकांश बड़े जलाशयों का निर्माण प्राय: यहाँ के शासकों ने ही करवाया क्योंकि इसका निर्माण-व्यय बहुत अधिक हो जाया करता था। साधारण व्यक्ति यह खर्च वहन नहीं कर सकती थी। शासकों की भाँति यहाँ की कुछ रानियों ने भी तालाब, बावड़ियों व कुओं के निर्माण-कार्य में व्यक्तिगत रुचि दिखलाई।

बावड़ियों की अपनी एक अलग स्थापत्य शैली थी। कई बार उन्हें अलंकृत करने की कोशिश की गई थी। प्राय: समीपस्थ उपलब्ध पत्थरों का ही प्रयोग किया जाता था। बावड़ियाँ बड़ी विशाल बनती थी जिनके ऊपर कई पोले बनाई जाती थी। इनमें प्रयुक्त होने वाले खम्भों व छज्जों में बनाया हुआ विविध प्रकार का अलंकरण सराहनीय है। सीढियाँ गहराई तक बनी होती थी।

बावड़ियों व कुओं के अलावा यहाँ झालरे भी बनाए जाते थे तो जल-संग्रह के लिए ही होते थे। ये बावड़ीनुमा होते थे। तीनों ओर या चारों ओर सीढियाँ बनी होती थी। ऐसे झालरे प्राय: नगरों में अधिक देखने को मिलती है जबकि बावड़ी व कुएँ आदि बस्ती से दूर निर्जन स्थानों पर भी रास्ते के समीप देखने को मिल जाती है।

जोधपुर में बालसमन्द, गुलाबसागर, सूरसागर, चोकेलाव रानीसर, पद्मसर, फूलेलाव, शेखावत जी का तालाब इत्यादि जलाशय व चांदबावड़ी, तापी बावड़ी, झालप बावड़ी इत्यादि विशाल बावड़ियाँ व अनेक झालरे आज भी अच्छी स्थिति में है।

आलोच्य काल में मारवाड़ में विभिन्न प्रसिद्ध जलाशयों का निर्माण हुआ। कुछ प्रमुख जलाशयों का उल्लेख इस प्रकार है-

- राव मालदेव ने झरना, चोकेलाव, तालाब तथा रानीसर-तालाब के चारों ओर परकोटा करवाया। पातालीमा बेरा (कुंआ) जिसे नयसरों व 'मेलीयान' नाम से भी पुकारा जाता था, का निर्माण करवाया। हनुमान भाखरी और पुराने मेड़तीया दरवाजे के बीच मालासर तालाब बनवाया।

- महाराजा सूरसिंह ने अपने नाम पर सूरसागर नामक तालाब का निर्माण करवाया। इसका उद्घाटन वि.सं. १६६४ वैशाख सुदी २ को की गई। इसके अलावा सूरजवेरों, सूरजकुंड इत्यादि का निर्माण भी महाराजा सूरसिंह ने ही करवाया था।

- महाराजा जसवन्तसिंह के समय विं.सं. १७११ में पुष्करणा आसनाम की साता ने जोधपुर से ४ मील की दूरी पर सालावास मार्ग पर एक बावड़ी बनवाई जो व्यास दी बावड़ी के नाम से प्रसिद्ध हुई।

- खटुकड़ी के पास वि.सं. १७११ में ही मुँहणोत नैणसी ने एक बावड़ी का निर्माण करवाया।

- चाँदपोल के बाहर पंचोली मोहनदास ने एक बावड़ी बनवाई।

- महराजा अजीतसिंह की रानी जोड़ेची जी ने चाँदपोल के बाहर झालरा बनवाया।

- तिवारी सुखदेव ने वि.सं. १७७६ में जोधपुर में जाड़ेजी के झालरे के पास एक बावड़ी बनवाया।

- भंडारी संगनाथ ने रामेश्वर जी के मन्दिर के पीछे वाली बावड़ी का निर्माण करवाया।

- रामेश्वर मन्दिर के निकट ही पुष्करणा ब्राह्मण रिणछोड़दास ने एक कुँआ बनवाया जो पुरोहित जी का कुँआ के नाम से जाना जाने लगा।

- महाराजा अभयसिंह ने अभयसागर तालाब का पक्का पट्ठा बनवाया। उदय मन्दिर में स्थित नवलखा झालरा, तालाब देवकुंड गोल के ऊपर पक्का बनवाया। जोधपुर दुर्ग में चोकेलाव में पहाड़ी के भीतर सुरंग लगाकर कुँआ खुदवाया। चोखा गाँव में बगीचे के अन्दर कुँआ बनवाया।

- महाराजा बखतसिंह ने वि.सं. १८०९ में बखतसागर तालाब को खुदवाना प्रारम्भ किया था पर यह कार्य पूरा नहीं हो सका।

- महाराजा विजयमिंह की पासवास गुलाबराय ने महिला बाग में एक झारला व अपने पुत्र तेजसिंह के नाम पर तेजसागर बनवाया। उसने स्वयं अपने नाम पर वि.सं. १८४५ में गुलाबसागर बनवाया।
 

India Water Portal Hindi
hindi.indiawaterportal.org