मेजा से मिर्जापुर तक गाँवों में भयंकर पेयजल संकट

Published on
3 min read

इलाहाबाद। तीन तरफ से नदियों से घिरे इलाहाबाद जनपद के मेजा-कोरांव ब्लॉक को पानी के मामले में तो धनी होना चाहिए, लेकिन इस साल न केवल मेजा-कोरांव बल्कि पड़ोसी जनपद मिर्जापुर तक पीने के लिये पानी का संकट उत्पन्न हो चुका है। पौष माह, यानि जनवरी महीने में ही पेयजल की किल्लत भयानक त्रासदी की ओर इशारा कर रहा है।

यह संकट उत्पन्न हुआ है, इस वर्ष पड़े अकाल की वजह से। जुलाई से सितम्बर तक बरसात काफी कमजोर रही। यही कारण रहा कि पहले धान की खड़ी फसल सिंचाई न होने से सूखकर नष्ट हो गई और अब किसान बूँद-बूँद पानी के लिये तरस रहे हैं। अकाल ने किसानों को भयभीत कर दिया है। इस समय सबसे बड़ा संकट पीने के लिये पानी को लेकर है। सुजनी खास गाँव के बुजुर्ग किसान भुवर कुशवाहा ने बताया कि उनके इलाके में सन 1967-68 जैसी स्थिति नजर आ रही है। 67-68 का ऐसा दौर था, जब भयंकर अकाल से लोगों का जीवन खतरे में पड़ गया था। लोग दाने-दाने को तो तरस ही रहे थे, पीने के लिये पानी चार-पाँच कि.मी. दूर से ले आना पड़ता था। गाँवों में कुएँ सूख गये थे। नाले-नदी तक में कहीं पानी नहीं बचा था।

कुछ वैसी ही स्थिति इस साल भी दिख रही है। मेजा-कोरांव (जनपद-इलाहाबाद) तहसीलों के दक्षिण म.प्र. की सीमा रेखा पर बेलन तथा पश्चिम में टोंस नदी बहती है। जबकि उत्तर की ओर है गंगा नदी। बेलन नदी मिर्जापुर से होकर मेजा के दक्षिणी सीमा पर- म.प्र. के अमरकंटक से बहकर आ रही-टोंस नदी में समाहित होकर आगे सिरसा के पास गंगा में मिल जाती है। इस तरह से मेजा व कोरांव का पूरा इलाका बेलन, टोंस और गंगा नदियों से घिरा हुआ है। इसके बावजूद यहाँ पानी को लेकर इतना बड़ा संकट झेलना पड़ रहा है।

जनवरी के महीने में अधिकतर कुएँ सूख चुके हैं। जलस्तर रोज गिर रहा है। तालाबों व नालों में बूँद भर पानी शेष नहीं रह गया है। हैण्डपम्प भी जवाब दे रहे हैं। दरअसल इस इलाके में बेलन नहर किसानों के लिये जीवन रेखा मानी जाती है। यह नहर भूजल रिचार्ज के काम में भी आती है। बेलन नहर मिर्जापुर में बने विशाल जलाशय, जिसका नाम मेजा जलाशय से निकाली गयी है। बेलन नहर 67 कि.मी. लम्बी है। मिर्जापुर के पश्चिमी भूभाग से मेजा-कोरांव तहसील के सीमा तक इस नहर से फसलों की सिंचाई होती है। लेकिन इस बार बारिश कमजोर होने से मेजा जलाशय अपनी क्षमता से एक तिहाई भी नहीं भर पाया और सितम्बर तक पानी बिल्कुल समाप्त हो गया। जलाशय में पानी न होने की सूचना के लिये नहर विभाग के अधिकारियों को डाक बंगलों पर लाल पर्ची चस्पा करनी पड़ी। लाल पर्ची पानी समाप्त होने की निशानी है, जिससे किसान पानी की माँग न करें।

मेजा जलाशय में पानी की कमी, बेलन नहर के बंद हो जाने से जब धान की खड़ी फसल सूख गयी तो इलाके के किसान घबरा गये। लिहाजा पानी के वैकल्पिक स्रोत तलाशने की दिशा में उन्हें सबसे पहले बोरवेल के माध्यम से भूजल नजर आया। इसके बाद देखते-देखते किसानों में बोर कराने की होड़ मच गई। जब बोर होने प्रारम्भ हुये और समरसेबल के माध्यम से पानी निकला तो किसानों को बहुत खुशी हुई। भूजल दोहन शुरू हुआ, लेकिन जल्द ही उसके विपरीत परिणाम भी आने लगे। भूजल दोहन से सबसे पहले कुओं का जलस्तर गिरना प्रारम्भ हुआ और उसके बाद हैण्डपम्प भी जवाब देने लग गये। अब हाल यह है कि जिस गाँव में एक भी बोरवेल चल रहा है, उस गाँव में पीने के लिये पानी का संकट उत्पन्न हो गया है। इस वजह से गाँवों में आपसी तनाव भी तेजी से बढ़ रहा है।

मेजा के दक्षिण सलैया, सिंहपुर, सुजनी, ककराही, धंधुआ, बड्डिहा, दिघलो, जोरा, चांद, मोजरा, धरावल, हनुमना तक टैंकर से पानी आपूर्ति की मांग प्रशासन से की गयी है। कमोबेश यही हाल मिर्जापुर से पश्चिम मेजा तक अधिकतर गाँवों का है, जहाँ पर मार्च के बाद लोग पीने के पानी के लिये तरस जाएँगे। जल्द ही यह संकट किसानों के लिये गले का फाँस बन जायेगा।

संबंधित कहानियां

No stories found.
India Water Portal - Hindi
hindi.indiawaterportal.org