अस्पतालजनित संक्रमण
अस्पतालजनित संक्रमण

नोसोकॉमियल संक्रमण क्या हैं, और यह पानी-पर्यावरण और स्वास्थ्य पर क्या असर कर रहा है

नोसोकॉमियल संक्रमण यानी अस्पतालजनित संक्रमण विश्व में सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण चुनौती है। इस गुप्त खतरे से भरती होने से पहले अथवा उस समय नहीं, बल्कि भरती रहने और इलाज की प्रक्रिया के दौरान संक्रमित होता है। गंभीर रोगों के इलाज के लिए अस्पताल तथा अति गंभीर स्थिति में आई सी यू यानी गहन चिकित्सा कक्ष में भरती होना पड़ता है। इसी दौरान कभी-कभी रोगी नोसोकोमियल संक्रमणों की चपेट में आ जाते हैं।
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नोसोकॉमियल संक्रमण यानी अस्पतालजनित संक्रमण विश्व में सार्वजनिक स्वास्थ्य के क्षेत्र में एक महत्वपूर्ण चुनौती है। इस गुप्त खतरे से भरती होने से पहले अथवा उस समय नहीं, बल्कि भरती रहने और इलाज की प्रक्रिया के दौरान संक्रमित होता है। गंभीर रोगों के इलाज के लिए अस्पताल तथा अति गंभीर स्थिति में आई सी यू यानी गहन चिकित्सा कक्ष में भरती होना पड़ता है। इसी दौरान कभी-कभी रोगी नोसोकोमियल संक्रमणों की चपेट में आ जाते हैं। आमतौर पर ये संक्रमण मरीज के अस्पताल में भरती होने के 48 घंटे या उसके बाद में विकसित होते हैं। अस्पताल में भरती नवजात शिशुओं, वृद्धों तथा ट्युमर, ल्यूकीमिया, डायबिटीज, गुर्दे की बीमारी अथवा एड्स जैसे क्रॉनिक रोगों से ग्रस्त व्यक्तियों को नोसोकोमियल संक्रमणों की चपेट में आने का अत्यधिक खतरा होता है। उनसे सेप्सिस जैसी गंभीर समस्याओं के अलावा और मृत्यु तक भी हो सकती है। अस्पताल में भरती रोगियों को ही नहीं, उनके साथ आने वाले परिवार के सदस्यों, उनके तीमारदारों के साथ-साथ इलाज से जुड़े चिकित्सकों, स्वास्थ्यकर्मियों और टेक्नीशियनों, आदि को भी नोसोकोमियल संक्रमणों से संक्रमित होने का बराबर खतरा रहता है। इससे स्वास्थ्य प्रणालियों के प्रबन्धन पर अतिरिक्त वित्तीय बोझ तो पड़ता ही है. मामलों की गंभीरता मृत्यु दर भी बढ़ा देती है। अतः, नोसोकोमियल संक्रमणों का बढ़ना दुनिया भर में रोगी सुरक्षा और सार्वजनिक स्वास्थ्य के लिए एक महत्वपूर्ण खतरा है।

कैसे उभरते हैं नोसोकोमियल संक्रमण? 

नोसोकोमियल संक्रमणों की उत्पत्ति अलग-अलग रोगजनकों यानी पैथोजंस और परिस्थितियों के कारण होती है। जैसे कि आईसीयू में संक्रमित होने, मूत्रपथ संक्रमण (यूटीआई) के इलाज के दौरान प्रयुक्त कैथेटर के उपयोग, ऑपरेशन थिएटर में विसंक्रमित (स्टेरलाइज) किए बिना शल्यक औजारों के प्रयोगय वेंटिलेटर पर रखे रोगी में निमोनिया के संक्रमण, इंट्रावेनस माध्यम से रक्त परिवहन प्रणाली के संक्रमित होने तथा रोगी के कमरे की फर्श के संदूषित होने जैसी स्थितियां प्रमुख हैं। इन संक्रमणों के पीछे बैक्टीरिया, वायरस, कवक और अन्य परजीवी जैसे विभिन्न प्रकार के सूक्ष्मजीवों (माइक्रोऑर्गेनिजम्स) का हाथ हो सकता है, जिनमें बैक्टीरिया का सबसे बड़ा हाथ होता है। इनके पैथोजंस सामान्य रूप से त्वचा और श्लेष्मा झिल्ली पर पाए जाते हैं। नोसोकोमियल संक्रमणों की रोकथाम और उनकी उपचार योजना तैयार करने के लिए उनके के विशिष्ट कारण और उनकी प्रक्रियाओं को समझना महत्वपूर्ण है।

नोसोकोमियल संक्रमणों के संभावित कारण

नोसोकोमियल संक्रमणों के लिए जिम्मेदार खतरों में अस्पताल में रहने की अवधि, इलाज में अपनाई गई प्रक्रियाओं, शरीर में प्रवेश कराए जाने वाले (इनवेसिव) उपकरणों का उपयोग और रोगी की अपनी प्रतिरक्षा प्रणाली जैसी स्थितियां शामिल हैं। बुजुर्गों, कमजोर प्रतिरक्षा प्रणाली वाले व्यक्तियों, लंबी अवधि से एंटीबायोटिक दवाओं का सेवन करने और सर्जिकल प्रक्रियाओं से गुजरने वाले लोगों को इन संक्रमणों का अधिक खतरा होता है। इनके अलावा, अधिकांश रोगियों में अक्सर मधुमेह, फेफड़े और गुर्दे की पुरानी बीमारी या कुपोषण जैसी स्थितियां भी इनके उभरने में सहायक होती हैं। जांच अथवा इलाज के दौरान प्रयुक्त इनवेसिव प्रक्रियाएं, उपकरणों, शल्यक औजारों का अनुचित अथवा विसंक्रमित किए बिना उनका पुनः उपयोग, रोगियों और स्वास्थ्य कर्मियों के बीच स्पर्श और अस्पताल के वातावरण जैसी स्थितियां भी इनका संचरण करती हैं। इतना ही नहीं, अस्पतालों में इनके लिए जिम्मेदार माइक्रोऑर्गेनिजम्स प्रायः अति संवेदनशील एवं प्रतिरक्षाविहीन रोगियों की भारी संख्या में उपस्थिति के कारण भी पनपते हैं। आधुनिक उपचार विधियों की जटिलता और एंटीबायोटिक दवाओं के बढ़ते उपयोग से भी पैथोजंस के ऐसे उपभेदों यानी स्ट्रेंस की संख्या में बढ़ती है जिन पर एंटीबायोटिक दवाइयां बेअसर हो चुकी हैं। ये सभी स्थितियां नोसोकोमियल संक्रमणों की रोकथाम के प्रयासों को और भी जटिल बनाती हैं।

नोसोकोमियल संक्रमणों के लिए जिम्मेदार पैथोजंस

नोसोकोमियल संक्रमणों के लिए जिम्मेदार रोगजनकों में बैक्टीरिया, वायरस और कवक शामिल हैं। उनकी व्यापकता स्वास्थ्य केन्द्रों/अस्पतालों तथा उनमें उपलब्ध साधनों, युक्तियों एवं उपकरण ों की स्वच्छता और रोगी आबादी के आधार पर भिन्न होती है। कुल मिलाकर, बैक्टीरिया सबसे आम रोगजनक हैं, इसके बाद कवक और वायरस आते हैं।

बैक्टीरिया

बैक्टीरिया यानी जीवाणु प्राकृतिक फ्लोरा के रूप में एक्सोजीनस (बहिर्जात) या एण्डोजीनस (अंतर्जात) स्रोतों से उत्पन्न हो सकते हैं। अपॉर्चुनिस्टिक (अवसरवादी) जीवाणु संक्रमण का उभरना होस्ट (मेजबान) की प्रतिरक्षा प्रणाली के कार्यों में खराबी आने पर निर्भर करता है। सामान्य ग्राम-पॉजिटिव ऑर्गेनिजम्स (जीवों) में स्टेफाइलोकॉक्सी, स्टेफाइलोकॉकस ऑरियस, स्ट्रेप्टोकॉकस प्रजातियां और एंटेरोकॉकस प्रजातियां (जैसे ई. फीकैलिस, ई. फीशियम) शामिल हैं। अस्पतालों से संबद्ध रोगजनकों में सी. डिफीसाइल नामक बैक्टीरिया की उपस्थिति सर्वाधिक होती है। सामान्य ग्राम-पॉजिटिव जीवों में एंटेरोबैक्टीरिएसी कुल की प्रजातियों में क्लेबसिएला निमोनियाई और क्लेबसिएला ऑक्सीटोका, एशेरीशिया कोलाई, प्रोटियस मिराबिलिस, और एंटेरोबैक्टर प्रजातियांय स्युडोमोनास एरुजिनोसा, एसिनेटोबैक्टर बाउमानी प्रमुख हैं। नोसोकोमियल संक्रमणों के लिए मुख्यतया मेथिसिलन और बैंकोमाइसिन नामक एंटीबायोटिक दवाओं के प्रति प्रतिरोधी स्टफाइलोकॉकस आरियस, तथा बैंकोंमाइसिन प्रतिरोधी एंटरोकॉक्कस, कार्बापेनीम प्रतिरोधी ऐसीनेटोबैक्टर प्रजातियों तथा मल्टी ड्रग रेजिस्टेंट यानी बहु औषध प्रतिरोधी स्युडोमोनास एरूजिनोसा नामक बैक्टीरिया को जिम्मेदार पाया जाता है। 

फंगस

आमतौर पर फंगल पैथोजंस (रोगजनक) प्रतिरक्षाविहीन रोगियों और युरिनरी (मूत्र) कैथेटर जैसे उपकरणों की सहायता से इलाज प्राप्त करने वाले रोगियों को संक्रमित करते हैं। अस्पताल में संक्रमित करने वाले फंगस यानी कवक में कैंडिडा के अंतर्गत सी. अल्बिकन्स, सी. पैराप्सिलोसिस, सी. ग्लैब्रेटा प्रजातियां प्रमुख हैं। बहुऔषध-प्रतिरोधी फंगस कैंडिडा ऑरिस का उभरना विश्व स्तर पर एक गंभीर समस्या है, जिसके निदान में कठिनाई और उपचार में अत्यधिक किलता के कारण रोगी में रुग्णता और मृत्यु दर काफी अधिक है। अस्पताल के निर्माण स्थल और परिवेश में एस्परजिलस फ्युमिगेटस नामक फंगस की उपस्थिति अस्पताल में भरती मरीज को संक्रमित कर सकती है।

वायरस

अस्पतालजनित संक्रमणों में वायरल पैथोजंस (रोगजनकों) की भूमिका का बहुत कम वर्णन मिलता है। इलाज के दौरान विसंक्रमित यानी उपयुक्त रूप से स्टेरलाइज किए बिना नीडल्स (सुइयों) के प्रयोग, रक्त आधान यानी ब्लड ट्रांसफ्युजन, डायलिसिस, इंजेक्शन, एंडोस्कोपी जैसी स्थितियों में हेपेटाइटिस बी और सी, और एचआईवी जैसे वायरल संक्रमणों का खतरा बढ़ जाता है। अध्ययनों से मिले परिणामों के अनुसार वैश्विक स्तर पर सभी एचआईवी संक्रमणों में 5.4% मामले स्वास्थ्य सुविधा केंद्रों में उभरते हैं, यह स्थिति प्रायः विकासशील देशों से प्रकाश में आती है। अन्य शोध परिणामों के अनुसार वायरल नोसोकोमियल संक्रमणों में मुख्य रूप से राइनोवायरस, साइटोमेगैलोवायरस, हर्पीस सिम्प्लेक्स वायरस, रोटावायरस और इन्फ्लुएंजा वायरसों की प्रमुख भूमिका पाई जाती है। आई सी यूः नोसोकोमियल संक्रमण का प्रमुख स्रोत अस्पतालों के आई सी यू यानी गहन चिकित्सा कक्ष नोसोकोमियल संक्रमणों के प्रमुख स्रोत होते हैं। आमतौर पर आई सी यू में संक्रमणों के लिए जिम्मेदार प्रमुख पैथोजंस में सम्मिलित हैं: बहु औषध प्रतिरोधी माइकोबैक्टीरियम टयुबरकुलोसिस, स्टेनोट्रोफोमोनास माल्टोफीलिया, ग्राम निगेटिव बैक्टीरिया स्युडोमोनास ऐरूजिनोसा, एशेरीशिया कोलाई, एंटेरोबैक्टर क्लोएसी, एसीनेटोबैक्टर बौमानी, क्लेबसिएला निमोनियाई, एनएरोबिक ग्राम नेगेटिव बैक्टीरिया, आदि। इनके अलावा आई सी यू में भरती रोगियों को कैंडिडा एल्बिकैंस, एस्परजिलस, न्युमोसिस्टिस नामक फंगस से भी संक्रमित होने का खतरा बना रहता है।

सार्वजनिक स्वास्थ्य प्रणालियों पर नोसोकोमियल संक्रमणों के प्रभाव

पहले से रोगग्रस्त व्यक्ति में नोसोकोमियल संक्रमण उसकी मौजूदा स्वास्थ्य समस्याओं को दोगुना बढ़ा देता है। स्वास्थ्य सुविधाओं और चिकित्सा संसाधनों का उपयोग बढ़ जाता है, अस्पताल में लंबी अवधि तक भरती रहने से घरेलू उत्पादकता प्रभावित हो सकती है और उनके उपचार पर अतिरिक्त आर्थिक बोझ उठाना पड़ता है। उनके परिवारों पर पड़ते मनोवैज्ञानिक प्रभाव भी कम व्यथित नहीं करते। एंटीबायोटिक दवाइयों के अत्यधिक प्रयोग से उनके प्रति प्रतिरोध बढ़ने के कारण संक्रमण का प्रबंधन और अधिक जटिल हो सकता है। प्रायः, नोसोकोमियल संक्रमण से संक्रमित रोगी के ठीक होने में अधिक समय लगता है, बेचौनी बढ़ जाती है, और गंभीरता की स्थिति में विकलांगता अथवा मृत्यु हो जाती है। अतः, स्वास्थ्य सेवाओं की प्रभावकारिता, सुरक्षा और स्थिरता सुनिश्चित करने के लिए नोसोकोमियल संक्रमणों पर काबू रखना सर्वोपरि है।

नोसोकोमियल संक्रमण से बचाव

नोसोकोमियल संक्रमण की रोकथाम रोगी के बाहरी और भीतरी संचरण को बाधित करने तथा अस्पतालों और स्वास्थ्य केन्द्रों में संक्रमण नियंत्रण प्रोटोकॉल के कड़ाई से अनुपालन पर निर्भर करती है। बहिर्जात संचरण व्यक्ति-से-व्यक्ति के बीच सम्पर्क और पर्यावरणीय पारस्परिक संदूषण के माध्यम से होता है। रोगजनकों यानी पैथोजंस के प्रसार को सीमित करने के लिए बार-बार हाथ की स्वच्छता सबसे महत्वपूर्ण निवारक उपाय है। अन्य उपायों में अलगाव संबंधी सावधानियों का अनुपालन और व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण ॥ का उचित उपयोग शामिल है। इसके अतिरिक्त, स्वास्थ्य देखभाल प्रदाताओं को घरेलू उपकरणों के अनावश्यक उपयोग से बचना चाहिए। अंत में, पर्यावरणीय संचरण को कम करने में उपकरणों को स्टेरेलाइज करने और उनके रखरखाव के दौरान उपयुक्त सावधानियां बरती जानी आवश्यक हैं। उदाहरण के लिए, भरती कक्ष की दीवारों और फर्श, रोगी की देखभाल, जांच और चिकित्सा में प्रयुक्त उपकरणों के नियमित कीटाणुशोधन के साथ-साथ अस्पताल के कचरे का उचित निपटान नोसोकोमियल संक्रमण के बाहरी संचरण को रोकने के महत्वपूर्ण उपाय हैं।

हाथ की स्वच्छताः

स्वास्थ्यकर्मियों और रोगी से मिलने वाले आगंतुकों द्वारा नियमित और पूरी तरह से हाथ धोने से संक्रमण का प्रसार काफी हद तक कम किया जा सकता है। रोगी के इलाज से जुड़े स्वास्थ्यकर्मियों, उनकी देखभाल करने वाले घर के सदस्यों अथवा उनसे मिलने आने वाले आगंतुकों के लिए अनिवार्य है कि पहले अल्कोहल आधारित सैनिटाइजर से हाथों को रगड़कर अथवा साबुन से अच्छी तरह हाथ धोया जाए। रोगी को छूने से पहले इन प्रक्रियाओं का अनुपालन अस्पताल से होने वाले संक्रमणों से बचने का सर्वोत्तम उपाय है।।

व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण (पीपीई) का उपयोगः

रोगजनकों के स्थानांतरण को रोकने के लिए चिकित्सकों, स्वास्थ्यकर्मियों द्वारा दस्ताने, गाउन और मास्क का उचित उपयोग आवश्यक है। दो वर्ष पूर्व कोरोना वायरस की वैश्विक महामारी के दौरान व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण यानी पीपीई किट के व्यापक प्रयोग के बावजूद भी विश्व में अनेक चिकित्सकों, स्वास्थ्यकर्मियों और रोगियों के तीमारदारों को अस्पताल में संक्रमित होने के कारण मौत का शिकार होना पड़ा। दस्ताने, मास्क, गाउन और आंखों के चश्मे जैसे व्यक्तिगत सुरक्षा के साधन संक्रामक माइक्रोऑर्गेनिजम्स के संचरण को बाधित करते हैं। पीपीई किट को सही तरीके से पहनने और उतारने के साथ-साथ उसके उचित निपटान की प्रक्रियाएं अस्पताल से होने वाले संक्रमण को फैलने से प्रभावी ढंग से कम करती हैं।

परिवेश की स्वच्छताः 

रोगजन कों को नष्ट करने के लिए रोगी के कमरे और उपचार क्षेत्रों की नियमित और पूरी तरह से सफाई व्यवस्था आवश्यक है। नोसोकोमियल संक्रमण के प्रसार को कम करने के लिए पर्यावरणीय स्वच्छता का कड़ाई से अनुपालन और चिकित्सा में प्रयुक्त उपकरणों एवं यंत्रों को स्टेरलाइज करना अत्यंत महत्वपूर्ण है। रोगी के बिस्तर, चिकित्सा उपकरण और दरवाजे के हैंडल जैसी स्पर्श की जाने वाली वस्तुओं की अस्पताल-ग्रेड के कीटाणुनाशकों से लगातार और पूरी तरह से सफाई की जानी चाहिए। अस्पताल प्रशासन द्वारा मानकीकृत स्वच्छता प्रक्रियाओं का पालन अस्पताल के परिवेश को रोगजनकों से मुक्त करने को ही नहीं, बल्कि रोगियों और स्वास्थ्य कर्मचारियों के लिए एक सुरक्षित स्थान भी सुनिश्चित करता है।

एंटीबायोटिक प्रबंधनः

बैक्टीरिया के प्रतिरोधी उपभेदों यानी ड्रग रेजिस्टेंट स्ट्रेंस के विकास को रोकने के लिए एंटीबायोटिक दवाओं का विवेकपूर्ण उपयोग एंटीबायोटिक प्रतिरोधी बैक्टीरिया के उद्भव को रोककर लाइलाज नोसोकोमियल संक्रमणों को रोकने में प्रभावी होता है। अति गंभीर रोगों के इलाज में प्रयुक्त एंटीबायोटिक दवाइयां, उनकी खुराक, सेवन की अवधि एवं अंतराल का निर्धारण विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा ही किया जाना आवश्यक है। इससे एंटीबायोटिक प्रतिरोधी रोगाणुओं के प्रतिकूल प्रभावों और प्रतिरोध के प्रसार को कम किया जा सकता है। रोगी का क्वैरेंटाइनः अत्यधिक संक्रामक पैथोजंस से ग्रस्त रोगियों को अन्य रोगियों, स्वास्थ्य कर्मियों, उनके तीमारदारों अथवा अन्य व्यक्तियों से अलग एकांत में रखना अर्थात क्वैरेंटाइन यानी संगरोधन करना नोसोकोमियल रोगजनकों के संचरण को सीमित करने में महत्वपूर्ण है। जाहिर है क्वैरेंटाइन प्रक्रिया के दौरान सख्त प्रोटोकॉल के अनुपालन पर जोर दिया जाता है। 

त्वरित पहचान करने और उनका समाधान निगरानी और रिपोर्टिंगः 

प्रकोपों की करने के लिए स्वास्थ्य सुविधाओं के भीतर भारत में स्वास्थ्य सुविधाओं से संबंध संक्रमणों पर निगरानी संक्रमण दर पर निगरानी रखना। नोसोकॉमियल संक्रमणों पर काबू पाने के लिए उस पर निगरानी रखना बहुत जरूरी है। दि लैंसेट ग्लोबल हेल्थ के सितंबर, 2022 अंक में प्रकाशित शोध परिणामों के अनुसार दुनिया के निम्न और मध्यम आय वर्ग के देशों में वर्ष 2010 में राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय स्तर पर केवल 16% नोसोकोमियल संक्रमणों पर निगरानी रखी गई। इंटरनेशनल नोसोकोमियल इन्फेक्शन कंट्रोल कंसोर्सियम द्वारा संपन्न निगरानी अध्ययन के अनुसार संयुक्त राज्य अमेरिका में इंटेंसिव केयर यूनिट्स में नोसोकोमियल संक्रमणों की तुलना में निम्न और मध्यम आय वर्ग के 45 देशों में कैथेटर के उपयोग और रक्त प्रवाह से संबंधित संक्रमणों की मिली-जुली दर 3 से 6 गुना अधिक पाई गई। भारत में वर्ष 2004 से 2013 के दौरान 40 अस्पतालों में संपन्न निगरानी के परिण तामस्वरूप रक्त संक्रमणों के प्रति 1000 और कैथेटर उपयोग के प्रति 1000 मामलों में नोसोकॉमियल संक्रमणों की व्यापकता क्रमशः 5.1% और 2.5% दर्ज की गई थी। वर्ष 2019 में भारत में एक केंद्र पर संपन्न अध्ययन में रक्त परिवहन संबंधी प्रति 1000 मामलों में नोसोकॉमियल संक्रमण ों की व्यापकता 4.3% पाई गई। विश्व स्वास्थ्य संगठन के अनुसार इंटेंसिव केयर यूनिट्स में भरती रोगियों में नोसोकोमियल निमोनिया संक्रमण की दैनिक दर 3% है। वेंटिलेटर पर रखे गए रोगियों की पाचन प्रणाली, श्वसन प्रणाली, नाक एवं गला, फेफड़ों के अस्पतालजनित निमोनिया से संक्रमित होने का बहुत अधिक खतरा होता है। इसके अलावा आईसीयू में अचेत अवस्था में भरती शिशुओं और वृद्ध लोगों को अस्पतालजनित वायरल ब्रोकियोलाइटिस यानी श्वसनीशोथ (सांस की नली में सूजन) की चपेट में आने का भी बहुत अधिक खतरा होता है। विश्व स्तर पर संपन्न एक सर्वेक्षण में निम्न और मध्यम आय वर्ग के देशों में इंटेरोबैक्टीरिएसी कुल के बैक्टीरिया में सेफैलोस्पोरिंस और कार्बापेनीम्स नामक एंटीबायोटिक दवाइयों के प्रति प्रतिरोध की व्यापकता बहुत अधिक पाई गई है। भारत में बैक्टीरिया की ऐसीनेटोबैक्टर, स्युडोमोनास तथा क्लेबसिएला प्रजातियों में कार्बपिनीम नामक एंटीबायोटिक दवाई के प्रति उच्च स्तर का  प्रतिरोध पाया गया है। भारत की अधिकांश आबादी का इलाज प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्रों, जिला स्तर के सार्वजनिक स्वास्थ्य केंद्रों अथवा निजी अस्पतालों पर निर्भर है, जहां सफाई, स्वच्छता यानी हाइजीन, कचरा प्रबंधन और संक्रमण नियंत्रण के उपायों की पर्याप्त व्यवस्था नहीं होने के कारण संक्रमण का पर्याप्त निवारण और नियंत्रण नहीं हो पाता। वहां प्रशिक्षित और समर्पित स्टाफ की भी कमी होती है। इन तमाम प्रतिकूल स्थितियों के अलावा इलाज के लिए भारी संख्या में रोगियों का आना नोसोकोमियल संक्रमणों को बढ़ाने में मदद करते हैं।

रोगी शिक्षा एवं भावी दिशाएं अस्पतालों में मेथिसिलिन प्रतिरोधी स्टेफाइलोकॉकस ऑरियस नामक बैक्टीरिया से होने वाले संक्रमणों के विरुद्ध व्यापक संक्रमण नियंत्रण कार्यक्रम नोसोकोमियल संक्रमण की घटनाओं को कम करने में प्रभावी पाए गए हैं। स्वास्थ्य वैज्ञानिक इन संक्रमणों के लिए जिम्मेदार रोगजनकों की आनुवंशिक संरचना को समझने के लिए शोधरत हैं। आशा है कि उनके परिणाम नए उपचार और निवारक रणनीतियों के विकास में सहायक होंगे। प्रौद्योगिकी में प्रगति के आधार पर रोगी के कमरे को विसंक्रमित करने के लिए पराबैंगनी (अल्ट्रा वॉयलेट) प्रकाश का उपयोग और उसे हानिकारक माइक्रोऑर्गेनिजम्स से मुक्त करने में आधुनिक रोबोटिक्स की तैनाती जैसी निवारक विधियां भी नोसोकोमियल की आवश्यकता होती है, जिसमें हाथ की स्वच्छता, व्यक्तिगत सुरक्षा उपकरण ॥ का उपयोग, पर्यावरणीय स्वच्छता, एंटीबायोटिक्स का विवेकपूर्ण उपयोग और रोगी को क्वैरेंटाइन करने जैसी प्रभावी प्रक्रियाओं का अनुपालन अस्पतालजनित संक्रमणों को रोकने में अत्यधिक प्रभावी एवं सहायक हो सकता है। रोग नियंत्रण और रोकथाम केंद्र (सीडीसी) जैसे राष्ट्रीय सार्वजनिक स्वास्थ्य संस्थानों द्वारा निर्धारित रोकथाम दिशानिर्देशों का अनुपालन अधिकांश नोसोकोमियल संक्रमणों को रोकने में प्रभावी होता है। 

निष्कर्ष

नोसोकोमियल संक्रमणों को रोकने के लिए एक व्यापक और सावधानीपूर्वक प्रयास संक्रमणों के खिलाफ लड़ाई में सहायक हो सकती हैं। जनसाधारण में जागरूकता अभियान आमतौर पर जनसाधारण में नोसोकोमियल संक्रमणों के प्रति जागरूकता कम ही होती है, इसलिए इसके कारणों, सामान्य प्रकारों, प्रभावों और निवारक तरीकों को समझना उनकी घटना को कम करने और सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं पर बढ़ते बोझ को कम करने में सहायक साबित हो सकता है। नोसोकोमियल संक्रमण के खिलाफ लड़ाई में चिकित्सकों, स्वास्थ्यकर्मियों, प्रयोगशाला टेक्नीशियनों की भूमिका महत्वपूर्ण होती है। उनके द्वारा संक्रमण नियंत्रण दिशानिर्देशों का पालन करने, शिक्षा कार्यक्रमों में भाग लेने और रोगी को हरसंभव स्वास्थ्य सेवाएं उपलब्ध कराने के प्रति उनकी प्रतिबद्धता अपरिहार्य है। जन जागरूकता की भूमिका भी उतनी ही महत्वपूर्ण है। अस्पतालों और स्वास्थ्य सुविधाओं द्वारा रोगियों तथा उनके परिवारों को नोसोकोमियल संक्रमणों, उनके खतरों को कम करने के तरीकों के विषय में शिक्षित करना महत्वपूर्ण है। आम लोगों में इनके प्रति जागरूकता एवं उनकी सहभागिता निवारक उपायों के बेहतर अनुपालन में अत्यंत सहायक हो सकती है, जिनसे अंततः इन संक्रमणों की घटनाओं को कम किया जा सकता है।

नोसोकोमियल संक्रमण से उभरी स्वास्थ्य समस्याओं की चुनौतियों का सामना करने के लिए रोगियों के साथ-साथ स्वास्थ्य सेवा प्रदाताओं, स्वास्थ्य नीति निर्माताओं और आम नागरिकों के सामूहिक प्रयासों की आवश्यकता होती है। नोसोकोमियल संक्रमणों पर सार्वजनिक शिक्षा अभियानों के अंतर्गत सार्वजनिक स्वास्थ्य सुविधाओं और निजी अस्पतालों एवं स्वास्थ्य संस्थानों द्वारा व्याख्यानों, वार्ताओं के आयोजन, प्रिंट, डिजिटल एवं सोशल मीडिया के माध्यम से प्रचार-प्रसार, सूचनात्मक फैलेट्स के वितरण और सामुदायिक आउटरीच जैसे विभिन्न कार्यक्रमों के आयोजन किए जाने चाहिए।

संपर्क: डॉ. कृष्णा नन्द पाण्डेय, बी 289/बी, सेक्टर 19, नोएडा ईमेल: knpandey@gmail.com, यह आलेख विज्ञान संप्रेषण के अगस्त अंक से लिया गया है। शीर्षक - नोसोकोमियल यानि अस्पतालजनित संक्रमणों से बचाव


 

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