dry hand pump
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पानी की आस में पथराई आँखे

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खरीद कर पानी पीने को मजबूर उमरिया खुर्द के लोग
बिजली के तारों के साथ पानी के पाइपों का जाल


मालवा और निमाड़ क्षेत्र के 188 गाँव जलसंकट से जूझ रहे हैं। उमरिया खुर्द भी उन्हीं गाँवों में से एक है। इन इलाकों में पीने का तो क्या, निस्तार का भी पानी उपलब्ध नहीं है। इन गाँवों की प्यास बुझाने के लिये मध्य प्रदेश सरकार ने नर्मदा-क्षिप्रा लिंक परियोजना की शुरुआत भी की है। इस परियोजना में उमरिया खुर्द को छोड़कर आसपास के सभी गाँवों को शामिल किया गया है। लेकिन उमरिया खुर्द की प्यास कब और कैसे बुझेगी, इसका उत्तर किसी के पास नहीं है। हरिओम ठाकुर 35 वर्ष के हैं। उन्हें उम्मीद है कि एक सुबह ऐसी भी आएगी, जब उनकी पत्नी गाँव के हैण्डपम्प से मुफ्त में पानी लाएगी। 50 वर्ष की रुक्मणी बाई भी ईश्वर से केवल यही माँगती हैं कि कोई चमत्कार ऐसा भी हो जाये कि उन्हें भी बगैर दाम चुकाए पीने का पानी मिलने लगे।

शेर सिंह भी उसी दिन की राह ताक रहे हैं, उन्हें भी पूरा विश्वास है कि उनकी आने वाली पीढ़ियों को पानी के लिये संघर्ष नहीं करना पड़ेगा। हरिओम ठाकुर, रुक्मणी बाई और शेर सिंह उमरिया खुर्द में रहते हैं, जहाँ रोटी से पहले पीने के पानी का जुगाड़ करना पड़ता है।

दरअसल मध्य प्रदेश की औद्योगिक राजधानी इन्दौर का एक निर्मल ग्राम ऐसा भी है, जहाँ लोग खरीदकर पानी पीने को मजबूर हैं। ये बोतलबन्द मिनरल वॉटर पीने वाले लोग नहीं, बल्कि निहायत ही गरीब किसान हैं, जिन्हें मजबूरी में पानी खरीदना पड़ता है। पानी बेचने वाले उमरिया खुर्द के ही सम्पन्न किसान हैं।

इन्दौर से महज 14 किलोमीटर दूर साढ़े पाँच हजार की आबादी वाले उमरिया खुर्द गाँव में पीने के पानी की कोई व्यवस्था ही नहीं है। गाँव के 15 हैण्डपम्प पिछले कई वर्षों से सूखे पड़े हैं। इस इलाके में पानी का भीषण संकट है, लेकिन स्थानीय प्रशासन या राज्य सरकार ने इस परेशानी को दूर करने का अब तक कोई प्रयास नहीं किया है।

उमरिया खुर्द के बुजुर्गों का सपना है कि उनके गाँव में भी पानी आये, वो भी ऐसा, जिसका दाम न चुकाना पड़े। इन बुजुर्गों की सारी उम्र दाल-रोटी के इन्तजाम के साथ-साथ पीने का पानी जुटाने में ही बीत गई, लेकिन यह चाहते हैं कि इनके बच्चों को पीने का पानी वैसे ही उपलब्ध हो जाये, जैसा कि आमतौर दूसरे गाँवों में होता है।

उमरिया खुर्द में प्रवेश करते ही आपका स्वागत पानी के पाइप करते हैं, जब आप आसमान की तरफ सर उठाते हैं, तो बिजली के तारों से ज्यादा पानी के पाइपों का जाल नजर आता है। जिन किसानों के घर बोर में पानी आ रहा है, वे पाइप के जरिए घरों में सशुल्क पानी की सप्लाई करते हैं। पानी का दाम पानी खरीदने वाले की हैसियत पर निर्भर करता है।

हर माह बिजली के बिल की तरह पानी का भी मूल्य चुकाया जाता है। ऐसा नहीं है कि उमरिया खुर्द मध्य प्रदेश का कोई अनजाना सा गाँव है, इसी गाँव को वर्ष 2008 में तत्कालीन राष्ट्रपति प्रतिभा पाटील ने निर्मल ग्राम के रूप मे सम्मानित किया था। ग्रामवासी कई बार अपनी शिकायत लेकर स्थानीय जनप्रतिनिधियों और प्रशासनिक अफसरों से मुलाकात कर चुके हैं। लेकिन नतीजा सिफर ही रहा है।

पानी सप्लाई करने वाले बहादुर सिंह बताते हैं कि हमने भी तो धन खर्च कर गहरा बोर करवाया है, तो मुफ्त में तो पानी नहीं बाँट सकते हैं। फिर ज़मीन से पानी खींचने में बिजली भी तो खर्च होती है, इसलिये गाँव वालों से पानी का पैसा लेते हैं। पंचायत सचिव मोहन सिंह ठाकुर भी गाँव की समस्या को लेकर उलटा सवाल कर देते हैं। ठाकुर कहते हैं कि जब गाँव में पानी है ही नहीं, तो पंचायत क्या करे? फिर वे समाधान भी सुझाते हैं कि यदि पास से ही निकल रही नर्मदा की लाइन गाँव में आ जाए तो सारी समस्या ही हल हो जाये।

दरअसल मालवा और निमाड़ क्षेत्र के 188 गाँव जलसंकट से जूझ रहे हैं। उमरिया खुर्द भी उन्हीं गाँवों में से एक है। इन इलाकों में पीने का तो क्या, निस्तार का भी पानी उपलब्ध नहीं है। इन गाँवों की प्यास बुझाने के लिये मध्य प्रदेश सरकार ने नर्मदा-क्षिप्रा लिंक परियोजना की शुरुआत भी की है। इस परियोजना में उमरिया खुर्द को छोड़कर आसपास के सभी गाँवों को शामिल किया गया है। लेकिन उमरिया खुर्द की प्यास कब और कैसे बुझेगी, इसका उत्तर किसी के पास नहीं है।

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