पानी की जुगाड़ में गुजर रही है आधी जिन्दगी

पानी की जुगाड़ में गुजर रही है आधी जिन्दगी

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विश्व जल दिवस पर विशेष

‘‘गांव से बाहर लगभग दो किलोमीटर दूर हमें घाटियों से नीचे उतरना पड़ता है, जहाँ झरने से हमें पानी मिलता है। वहाँ एक बार जाने और आने में लगभग 2 घण्टे लग जाते हैं। हमें दिन में दो बार जाना पड़ता है। घाटियों से चढ़ने में कई बार पानी के बर्तन गिर जाते हैं, पाँव फिसल जाने पर चोट लग जाती है वह अलग। वहाँ से एक बार में 20 लीटर ही पानी ला पाती हैं। हमारे घरों में बर्तनों को धोने के बजाय सिर्फ राख से साफ करते हैं। घर के लोग नियमित नहा नहीं पाते। धोने के लिए कपड़े भी हमें वहीं लेकर जाना पड़ता है।’’
‘‘इस गाँव के आसपास के गाँवों में पानी है, पर जनप्रतिनिधियों की उदासीनता एवं ग्रामीणों में जागरूकता के अभाव के कारण यहाँ इस समस्या का निदान नहीं हो पाया। ऐसी स्थिति सिर्फ आमेठ की नहीं है, बल्कि कई गाँवों की है, जहांँ इच्छाशक्ति के अभाव में पानी का इन्तजाम नहीं हो पाया।

यहाँ पानी के लिये पारम्परिक तरीकों को अपनाया गया और हैण्डपम्प, कुएँ एवं बोर कर दिए गए। उनमें पानी नहीं आने पर ग्रामीणों को उनके हाल पर छोड़ दिया गया। पानी की समस्या का समाधान आसपास के पानी के स्रोत से पाइपलाइन के माध्यम से किया जा सकता है। इसके अलावा स्थानीय स्तर पर स्टॉप डेम एवं छोटे तालाबों को बेहतर तरीके से बनाने होंगे।’’
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