पेयजल में तब्दील करेंगे पालम नाले का पानी

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द्वारका में व्याप्त जल संकट को दूर करने के लिए दिल्ली विकास प्राधिकरण मुंबई आईआईटी से सहयोग लेगा। मिट्टी बायो तकनीकी (सॉयल बायोटेक्नोलॉजी) के जरिए पालम नाले के पानी का शोधन करके इसे पेयजल में तब्दील किया जाएगा। डीडीए का दावा है कि अगले छह महीने में द्वारका में व्याप्त जल संकट दूर कर दिया जाएगा। डीडीए इस योजना को आईआईटी मुंबई और इंटेक के सहयोग से पूरा करेगा। फिलहाल पॉयलट प्रोजेक्ट के तौर पर दिसंबर से द्वारकावासियों को पानी की आपूर्ति की जाएगी। योजना पर लगभग 3.75 करोड़ रुपए खर्च होने का अनुमान है।

द्वारका में व्याप्त जल संकट को दूर करने के लिए दिल्ली विकास प्राधिकरण मुंबई आईआईटी से सहयोग लेगा। मिट्टी बायो तकनीकी (सॉयल बायोटेक्नोलॉजी) के जरिए पालम नाले के पानी का शोधन करके इसे पेयजल में तब्दील किया जाएगा। डीडीए का दावा है कि अगले छह महीने में द्वारका में व्याप्त जल संकट दूर कर दिया जाएगा। इस बाबत पालम नाले में बहने वाले 100 एमएलडी पानी में से 50 एमएलडी पानी का उपयोग किया जाएगा। डीडीए के उपाध्यक्ष बलविन्दर कुमार का कहना है कि द्वारका में पानी की कमी को दूर करने के लिए सॉयल बायोटेक्नोलॉजी का उपयोग किया जाएगा। इस बाबत पालम ड्रेन के पानी को शोधित किया जाएगा। बता दें कि यह तकनीक पहले से मुंबई नगर पालिका और महाराष्ट्र के अन्य इलाकों में अपनाई जा रही है। यदि यह योजना सफल हो गई तो द्वारकावासियों का जल संकट काफी हद तक दूर हो जाएगा। साथ ही यमुना के प्रदूषण में भी काफी हद तक कमी आएगी।

बता दें कि द्वारका उपनगर को बसाए 25 साल बीत गए, लेकिन आज भी यहां पर महज 60 फीसदी लोगों को ही मुश्किल से पेयजल मिल पाता है। यहां पर लगभग 373 ग्रुप हाउसिंग सोसायटियां हैं और 400 से ज्यादा आरडब्ल्यूए हैं। गर्मियों में रोजाना लोगों को 1500 से 2000 रुपए एक टैंकर के लिए भुगतान करना पड़ता है। हालांकि पर्यावरणविद और द्वारका वाटर फोरम बॉडीज के सदस्य दीवान सिंह का कहना है कि इस सरकार यदि प्राकृतिक जलाशयों को पुनर्जीवित करने पर ध्यान देती तो उसे इतनी धनराशि खर्च करने की जरूरत नहीं पड़ती और द्वारकावासियों को कुदरती पानी भी मिल जाता।

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