प्राकृतिक संसाधन प्रबन्धन
प्राकृतिक संसाधन
मुख्य रूप से पाँच प्राकृतिक संसाधन है, 1-जमीन, 2-जल, 3-जंगल, 4-जानवर, 5-जन।
1- जमीन-
2- जल -
3- जंगल -
4 -जानवर
5-जन -
प्राकृतिक संसाधन प्रबंधन की आवश्यकता एवं इसका समाधान -
यहाँ विचारणीय विषय है कि प्राकृतिक संसाधनों जैसे मृदा, जल एवं वनस्पतियों के सम्यक संरक्षण एवं प्रबंधन के अभाव में लगभग प्रतिवर्ष प्रदेश को सूखा, बाढ़ तथा अकाल जैसी प्राकृतिक आपदाओं का सामना करना पड़ता है। कुऑ, नदी, नालों, तालाबों एवं झीलों इत्यादि जैसे प्राकृतिक जल श्रोतों में सिल्ट जमा हो जाने के कारण ये आपदायें आती है। जिसके कारण एक ओर मानव एवं पशुओं के लिये पेय जल एंव सिंचाई के लिये आवश्यक पानी की कमी हो जाती है वहीं दूसरी ओर सरकार को अनुदान के रूप में प्रतिवर्ष करोड़ों रूपये व्यय करने पड़ते है। यदि हमें कृषि में टिकाऊ खेती एवं सम्यक उत्पादन, उत्पादकता, जल स्तर में वृद्धि, गुणवत्ता युक्त पानी की उपलब्धता सुनिश्चित करनी है और सूखा, बाढ़ एवं अकाल जैसी आपदाओं से निजात पाना है तो इसका एक मात्र उपाय मृदा एवं जल का संग्रहण, संरक्षण, संवर्धन एवं प्रबंधन पर सबसे अधिक ध्यान देना होगा।
प्राकृतिक संसाधन प्रबन्धन का लक्ष्य
उ0प्र0 में भूमि संसाधन की वर्तमान स्थित -
कुल समस्याग्रस्त क्षेत्रफल - 120 लाख हेक्टेयर (अकृष्य, बीहड़, ऊसर, जलमग्न)
कुल उपचारित क्षेत्रफल - 74 लाख हेक्टेयर लगभग
(मार्च 2009 तक)
उपचार हेतु अवशेष क्षेत्रफल - 46 लाख हेक्टेयर
भूमि एवं जल संरक्षण तथा प्रबंधन
1- वानस्पतिक एवं शस्य विधियां
2- अभियाँत्रिक विधियाँ
1- वानस्पतिक एवं शस्य विधियाँ
क- समस्त कृषि कार्य ढाल के विपरीत दिशा में करें जिससे अधिक से अधिक वर्षा जल खेत में ही अवशोषित हो जाये तथा नमी में वृद्धि हो
।ख- फसल बोने के 20-25 दिन बाद पंक्तियों के बीच में कूड़ बना दें जिससे अधिक से अधिक पानी रूके।
ग- भूमि की गहरी जुताई करें जिससे नीचे की कड़ी परत टूट जाये तथा जल अवशोषण एवं भण्डारण बढ़ जाये।
घ- जीवांश खादें जैसे गोबर की खाद, कम्पोस्ट खाद आदि का प्रयोग करें।
ड़- दलहनी फसलों की शुद्ध अथवा मिश्रित खेती करें।
च- मेड़ों पर बुआई करके नालियों में जल संचयन करें।
छ- वर्षा आधारित खेती के लिये संस्तुत प्रजातियों, फसल पद्धति एवं वैज्ञानिक तरीकों को अपनायें।
ज- सह-फसली एवं मिश्रित खेती अपनायी जाये।
झ- कम अवधि वाली फसलें बोनी चाहिये जिससे दो फसल ली जा सके।
त- मृदा में नमी की कमी को देखते हुये पौधों की संख्या कम कर दें।
थ- मानसून समय से हो तो उस स्थिति में मक्का, मूँगफली, धान, ज्वार एवं अरहर आदि फसलें बोये।
द- जब मानसून देरसे आये तो उस स्थिति में बाजरा, अरहर, उर्द, मूँग, तिल आदि फसलें बोयें।
ध- जब मानसून जल्दी चला जाये या सूखे की स्थिति हो तो ऐसी स्थिति में ज्वार, बाजरा, मक्का जैसी फसलों को नमी बचाने हेतु चारे के लिये काट लें और वर्षा होने के तुरन्त बाद राई, कुसुम, चना, जौ आदि बोये जिससे एक फसल प्राप्त हो सके।
न- बहुत कटे-फटे ढालू क्षेत्र जो फसलोत्पादन के लिये उपयुक्त नही है वहाँ वन, कृषि वानिकी, फलदार वृक्ष एवं घास आदि का रोपण करें।
ट- तालाब, बंधा एवं गड्ढों में जलसंचित करके अतिरिक्त आय के लिये मछली पालन एवं सिंघाड़ा आदि की खेती करें।
ठ- जो क्षेत्र खेती के योग्य, चारे की कमी एवं भू-क्षरण से अधिक प्रभावित होते है उसमें वन चारागाह विकसित करें जिसमें वानिकी वृक्षों के साथ घास जैसे अंजन, जनेवा, सुडान, हाथीघासव, गिनी आदि उगायें। इसके साथ ही साथ भूमि उर्वरता बढ़ाने हेतु स्टाईलो, सिटेरो, ग्वर आदि घासें लगायें।
2- अभियांत्रिक विधियाँ -
‘‘खेत का पानी खेत में, खेत की मिट्टी खेत में,
गाँव का पानी गाव में, गाँव की गिट्टी गाँव में‘‘
‘‘धरा के तीन अधिपति- भूमि, जल, वनस्पति‘‘
उत्पादन एवं उत्पादकता बढ़ाने के सूत्र
1- फसल आच्छादन बढ़ाकर
2- फसल सघनता बढ़ाकर
3- प्रति इकाई उत्पादकता (कु0 प्रति हे0) बढ़ाने के उपाय -1. खेत की तैयारी गर्मियों में गहरी जुताई करें।
2. भूमि शोधन।
3. उच्च उत्पादकता/ हाईब्रीड प्रजाति के बीज का प्रयोग।
4. बीज शोधन, बीज जनित रोगों से बचाव के लिये फंजीसाइड, इन्सेक्टिसाइड एवं राईजोबियम कल्चर से बीज शोधन।
5. मृदा परीक्षण।
6. समय से बुवाई।
7. मृदा परीक्षण के आधार पर संतुलित उर्वरकों का प्रयोग।
8. क्रांतिक अवस्थाओं पर एवं निश्चित मात्राओं में सिंचाई।
9. आईपीएम/ आईपीएमएन का प्रयोग।
10. समय से कटाई एवं मड़ाई।
11. वैज्ञानिक/ उचित भंडारण।
12. कृषि विपणन।
प्रदेश में भूमि एवं जल संरक्षण कार्यक्रम
1- केन्द्र पुरोनिधानिक परियोजनायें -
ब. बाढ़ोन्मुखी गोमती/ सोन जलागम विकास कार्यक्रम।
स. सेंगर/ रिंद नदी वर्षा जल संचयन।
द. कृष्णी नदी के जलागम में जल संभरण की योजना।
2- राज्य पुरोनिधानित परियोजनायें अ. थारू उप जनजाति विकास कार्यक्रम।
ब. किसान हित योजना।
स. वर्षा जल संचयन एवं प्रभावी जल प्रबंधन।
द. कुशल जल प्रबंधन।
य. भूमि सेना योजना।
3- नाबार्ड सहायतित परियोजनायें -
ब. जलागम विकास निधि (डब्ल्यूडीएफ)
4- बाहृय सहायतित परियोजनायें -अ. उत्तर प्रदेश भूमि सुधार कार्यक्रम।