परिवेशी वायु गुणवत्ता के लिये प्रेक्षित कलर कोडेड सूचकांक
भूमि और जल के अलावा, स्वच्छ हवा जीवन के निर्वाह के लिये मुख्य संसाधन है। तेजी से होते शहरीकरण और औद्योगिकरण के कारण हवा में विभिन्न तत्वों/यौगिकों के शामिल होने से शुद्ध वायु निरंतर प्रदूषित हो रही है। `वायु (प्रदूषण एवं नियंत्रण) अधिनियम 1981, (1981 का 14)' के अनुसार वायु प्रदूषण को अधिनियमित किया गया तथा वायु प्रदूषण को `वायु में किसी भी प्रदूषक की उपस्थिति' के रूप में परिभाषित किया गया है। वातावरण में उपस्थित `वायु प्रदूषक' ठोस, तरल या गैसीय पदार्थ हो सकते हैं तथा इनकी सांद्रता मनुष्य, अन्य प्राणियों, पौधों या पर्यावरण के प्रति हानिकारक हो सकती है। मानव गतिविधियों के प्रभाव को नियंत्रित करने के लिये परिवेशी वायु गुणवत्ता के मानक को एक नीति दिशानिर्देश के रूप में विकसित किया गया है जिससे वातावरण में प्रदूषक उत्सर्जन को नियंत्रित किया जा सके। अत: राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानक (National Ambient Air Quality Standards : NAAQS) के उद्देश्य हैं- जन सामान्य के स्वास्थ्य, संपत्ति तथा वनस्पतियों की सुरक्षा के लिये वायु की गुणवत्ता के स्तर को उत्तम बनाए रखना, प्रदूषक स्तर को नियंत्रित करने के लिये विभिन्न प्राथमिकताओं को स्थापित करना, राष्ट्रीय स्तर पर हवा की गुणवत्ता का आकलन करने के लिये एक समान मापदंड बनाना तथा वायु प्रदूषण की निगरानी के कार्यक्रमों का सही प्रकार से संचालन करना।
वायु प्रदूषण से निपटने के लिये प्रदूषक की पहचान, उत्सर्जन स्रोत और उसके पर्यावरण पर पड़ते प्रभावों की जाँच आवश्यक है। इसलिये केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड ने प्रदूषक की पहचान के साथ राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों को भारत के राजपत्र में अप्रैल, 1994 को अधिसूचित किया। संशोधित राष्ट्रीय परिवेशी वायु गुणवत्ता मानकों में SO2, NO2, पार्टिकुलेट मैटर 10 माइक्रोन से छोटे (PM 10), ओजोन, सीसा, कार्बन मोनोऑक्साइड, अमोनिया, बैन्जीन, बैन्जोपायरीन (केवल विविक्त कण), आर्सेनिक और निकिल के समय आधारित औसत (वार्षिक और घंटे) को अधिसूचित किया। इन वायु प्रदूषकों को रिहायशी, औद्योगिक, ग्रामीण तथा पारिस्थिकी या संवेदनशील क्षेत्रों की परिवेशी वायु के हिसाब से निर्धारित किया गया है। वायु प्रदूषण के दैनिक स्तर की जानकारी जन साधारण, विशेषकर वायु प्रदूषण से पीड़ित नागरिकों में जागरूकता के लिये महत्त्वपूर्ण है। इसके अलावा वायु गुणवत्ता में सुधार लाने के लिये स्थानीय नागरिकों के सहयोग तथा वायु प्रदूषण के बारे में उचित जानकारी होना विशेष महत्व है। इसलिये सामान्य जन में परिवेश की हवा की गुणवत्ता संबन्धित समस्याओं और शमन के प्रयासों की प्रगति के बारे में सही जानकारियाँ उपलब्ध कराते रहना आवश्यक है।
तकनीकी प्रगति से परिवेशी वायु गुणवत्ता के बारे में वृहद आंकड़े इकट्ठे किये जा सकते हैं, जिनका प्रयोग विभिन्न क्षेत्रों में हवा की गुणवत्ता की जानकारी के लिये प्रयोग में लाया जा सकता है। हालाँकि विशाल आंकड़े से वायु गुणवत्ता की साफ तस्वीर (दूषित या स्वच्छ हवा) उचित जानकारी जनसामान्य को होनी कठिन है। हवा की गुणवत्ता का वर्णन उसमें उपस्थित सभी प्रदूषकों की सांद्रता तथा उसके स्वीकार्य स्तर (मानक) द्वारा ही प्राप्त हो सकती है। इस जानकारी को एकत्रित करने के लिये नमूना (Sampling) स्टेशनों और प्रदूषण मानकों की संख्या (और उनके नमूनों की आवृत्तियों) तथा इसके विवरण वैज्ञानिक और तकनीकी समुदाय को भी भ्रमित कर सकती है। आमतौर पर सामान्य जन हवा की गुणवत्ता से सम्बंधित जटिल आंकड़ों के निष्कर्षों द्वारा संतुष्ट नहीं होते। इसीलिये सामान्य नागरिक न तो हवा की गुणवत्ता और न ही नियामक एजेंसियों द्वारा प्रदूषण उपशमन प्रयासों की सराहना करते हैं। शहरी वायु प्रदूषण के दैनिक स्तर के बारे में जागरूकता उन लोगों लिये बहुत महत्त्वपूर्ण है जो प्रदूषण की वजह से विभिन्न बीमारियों से ग्रसित हो जाते हैं। अत: वायु प्रदूषण के मुद्दे प्रभावी ढंग से संचार माध्यमों से बताये जाने चाहिए जिसके फलस्वरूप राष्ट्रीय वायु प्रदूषण की समस्याओं के बारे में स्थानीय जन के समर्थन के साथ-साथ वायु गुणवत्ता में भी सुधार लाया जा सके।
वायु गुणवत्ता सूचकांक (Air Quality Index : AQI) द्वारा वायु प्रदूषकों के भारित मूल्यों को बदल कर एक सरल मापदंड के रूप में लाया जा सकता है। कई देशों में वायु गुणवत्ता सूचकांक को व्यापक रूप से वायु गुणवत्ता संचार और निर्णय लेने के लिये प्रयोग किया जाता है। भारत में राष्ट्रीय वायु गुणवत्ता मानकों और प्रदूषण की मात्रा के आधार पर वायु गुणवत्ता सूचकांक तैयार किया गया है। वायु गुणवत्ता सूचकांक का उद्देश्य प्रदूषक के प्रमुख अल्पकालिक प्रभाव (लगभग वास्तविक समय में) को दर्शाना है। आठ वायु प्रदूषकों के मानकों यथा कार्बन मोनोऑक्साइड (CO), नाइट्रोजन डाइऑक्साइड (NO2), सल्फर डाइऑक्साइड (SO2), पार्टिकुलेट मैटर (3), सीसा, और निकिल (Ni) के प्रसार को परिवेशी वायु में वास्तविक समय के अंतर्गत गुणवत्ता सूचकांक में सम्मिलित किया गया है। परिवेशी हवा में सीसा (pb) की सांद्रता को वास्तविक समय में न मापने के कारण गुणवत्ता सूचकांक में इसका योगदान अभी संभव नहीं हो सका है, हालाँकि, इस महत्त्वपूर्ण विषाक्त की गणना तथा स्थिति पर गम्भीरता से विचार किया गया है। प्रस्तावित परिवेशी वायु गुणवत्ता सूचकांक को सुरुचिपूर्ण रंग योजना के साथ छह श्रेणियों में दिखाया गया है। (चित्र-1) a
अच्छा (Good) (0-50) | संतोषजनक (Satisfactory) (51-100) | नियंत्रित (Moderately polluted) (101-200) | अनुपयुक्त (Poor) (201-300) | अति-अनुपयुक्त (Very Poor) (301-400) | गम्भीर (Severe) (> 401) |
भारतीय वायु गुणवत्ता सूचकांक : प्रस्तावित प्रणाली
तालिका 1 : भारतीय राष्ट्रीय गुणवत्ता मानक (इकाई : μg m-3) | ||||||||||
प्रदूषक | SO2 | NO | PM2.5 | PM10 | O3 | CO(mg m-3) | Pb | NH3 | ||
औसत समय (घंटे) | 24 | 24 | 24 | 24 | 1 | 8 | 1 | 8 | 24 | 24 |
मानक | 80 | 80 | 60 | 100 | 180 | 100 | 4 | 2 | 1 | 400 |
तालिका 2 : परिवेशी वायु गुणवत्ता सूचकांक में शामिल विभिन्न प्रदूषकों ब्रेकिंग प्वाइंटस और वर्गीकरण। | ||||||||
वायु गुणवत्ता सूचकांक (श्रेणी) | PM10 (24 घंटे) | PM2.5 (24 घंटे) | NO2 (24 घंटे) | O3 (8 घंटे) | CO2 (8 घंटे) | SO2 (24 घंटे) | NH3 (24 घंटे) | Pb (24 घंटे) |
अच्छा (0-50) | 0-50 | 0-30 | 0-40 | 0-50 | 0-1.0 | 0-40 | 0-200 | 0-0.5 |
संतोषजनक (51-100) | 51-100 | 31-60 | 41-80 | 51-100 | 1.1-2.0 | 41-80 | 201-400 | 0.5-1.0 |
नियंत्रित (101-200) | 101-250 | 61-90 | 81-180 | 101-168 | 2.1-10 | 81-380 | 401-800 | 1.1-2.0 |
अनुपयुक्त (201-300) | 251-350 | 91-120 | 181-280 | 169-208 | 10-17 | 381-800 | 801-1200 | 2.1-3.0 |
अति-अनुपयुक्त (301-400) | 351-430 | 121-250 | 281-400 | 209-748 | 17-34 | 801-1600 | 1200-1800 | 3.1-3.5 |
गम्भीर (401-500) | 430+ | 250+ | 400+ | 748+ | 34+ | 1600+ | 1800+ | 3.5+ |
तालिका 3 : परिवेशी वायु गुणवत्ता की श्रेणियों के आधार पर वायु प्रदूषक के स्वास्थ्य संबंधी प्रभाव | |
वायु गुणवत्ता सूचकांक | संबंधित स्वास्थ्य प्रभाव |
अच्छा | लघु स्तर का विपरीत प्रभाव |
संतोषजनक | संवेदनशील व्यक्तियों में सांस लेने में मामूली कठिनाई |
नियंत्रित | अस्थमा, हृदय संबंधी रोगों से ग्रसित व्यक्तियों, बच्चों एवं बुजुर्गों द्वारा सांस लेने में कठिनाई |
अनुपयुक्त | लम्बी अवधि तक सम्पर्क में रहने से सांस लेने में असुविधा तथा हृदय संबंधी रोगों से ग्रसित व्यक्तियों में अधिक प्रभाव पड़ना |
अति-अनुपयुक्त | लम्बी अवधि तक संपर्क में रहने से व्यक्तियों में श्वसन रोग में वृद्धि होना साथ ही संवेदनशील व्यक्तियों तथा हृदय रोग से पीड़ित लोगों में अधिक प्रभाव पड़ना |
गम्भीर | श्वसन रोग में वृद्धि की संभावना सामान्य व्यक्तियों में तथा हृदय और सांस रोग से पीड़ित लोगों पर गम्भीर प्रभाव। कम शारीरिक गतिविधि होने पर भी गम्भीर प्रभाव पड़ना |