पर्यावरण का वरण कर रहा एक गाँव

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अलवर से महज 30 किमी दूर पहाड़ियों के बीच बसा रोगड़ा गाँव। यहाँ 45 घरों में करीब 400 लोग रहते हैं। पूरी तरह ग्रामीण परिवेश में बसे इस गाँव में 8वीं कक्षा तक सरकारी स्कूल तो हैं, बिजली के लिये उन लोगों को चार-चार दिन तक इंतजार करना पड़ता है। विपत्तियों के बाद भी गाँव के लोग आज भी कृषि व मवेशियों से दूर होने को तैयार नहीं हैं।अलवर। आज विश्व पर्यावरण दिवस है, पूरी दुनिया में मानव अधिकारों की बात हो रही है। अपने देश पर भी इन अधिकारों के उल्लंघन की तोहमतें लगती हैं, लेकिन यह देश और यहाँ के गाँव कुछ अलग हैं। ऐसा ही अनूठा पर्यावरण प्रेमी गाँव रोगड़ा है।

अलवर से महज 30 किमी दूर पहाड़ियों के बीच बसा रोगड़ा गाँव। यहाँ 45 घरों में करीब 400 लोग रहते हैं। पूरी तरह ग्रामीण परिवेश में बसे इस गाँव में 8वीं कक्षा तक सरकारी स्कूल तो हैं, बिजली के लिये उन लोगों को चार-चार दिन तक इंतजार करना पड़ता है। विपत्तियों के बाद भी गाँव के लोग आज भी कृषि व मवेशियों से दूर होने को तैयार नहीं हैं। यही कारण है कि गर्मी के मौसम में मवेशियों के लिये गाँव के निचले क्षेत्रों में चारा-पानी की उपलब्धता कम हो जाती है, फिर भी यहाँ के लोग मवेशियों को अपने से दूर नहीं करते और उन्हें लेकर गाँव के पुरुष चार माह तक पहाड़ों में चले जाते हैं।

चार माह पहाड़ों पर आशियाना

पेड़-पौधे ही जीवन हैं

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