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पर्यावरण के मोर्चों पर गांधी जन

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भागलपुर स्थित गांधी शांति प्रतिष्ठान केन्द्र ने छात्र-छात्राओं को महात्मा गांधी के नजरिये से पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण मुक्ति का पाठ पढ़ाया। दस दिनों की कार्यशाला में दर्जनों गांधीजनों और विशेषज्ञों ने पर्यावरण की समस्याओं के विभिन्न पहलूओं की गहरी जानकारी दी और यह यकीन दिलाया कि मौजूदा प्रदूषण से मुक्ति के उपाय गांधी जी के दर्शन और विचारों में निहित है।

दस दिनों की कार्यशाला के समापन समारोह को संबोधित करते हुए बी.एन.मंडल विश्वविद्यालय के प्रति कुलपति डाॅ. फारूक अली ने कहा कि दुनिया भर में बढ़ते प्रदूषण और ग्लोबल वार्मिंग को मानव सहित संसार की सभी प्रजातियों के लिये भयावह बताते हुए कहा कि हम अभी भी चेत नहीं रहे हैं और विनाश को करीब लाने वाले तथाकथित विकास के भ्रम में डूबे हुए हैं। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण के लिये जनाआंदोलन की आवश्यकता बतायी। उन्होंने गांधी के सिद्धांतों को ही मौजूदा पर्यावरण समस्याओं से मुक्ति का उपाय बताया।

समापन समारोह की अध्यक्षता करते हुए गांधी शांति प्रतिष्ठान केन्द्र भागलपुर के अध्यक्ष रामशरण ने कहा कि इस केन्द्र से इस तरह की कार्यशाला का आयोजन पहली बार किया गया। इसमें भाग लेने वाले छात्र, युवा और शोधार्थी निश्चित रूप से लाभान्वित हुए होंगे। उन्होंने कार्यशाला के आयोजक टीम को सलाह दी कि आने वाले समय में किसान, दलित और महिला सहित विभिन्न जनसरोकार के मुद्दे पर अधिक से अधिक युवाओं की भागीदारी सुनिश्चित करें। उन्होंने युवाओं से कहा कि इस कार्यशाला के माध्यम से उनके शिक्षण का काम किया गया है। अब अपने कार्यकलापों के जरिए रचना और संघर्ष का काम करें। प्रयास भले ही छोटा हो, लेकिन ठोस हो।

दिल्ली से आए वरिष्ठ पत्रकार प्रसून लतांत ने पर्यावरण को गांधीवादी नजरिए से देखने की जरूरत पर जोर देते हुए कहा कि हम पर्यावरण की समस्या को वैश्विक स्तर पर भले ही देखें, लेकिन अपने देश में सदियों से चली आ रही परंपराओं और रीति रिवाजों की उपेक्षा न करें, क्योंकि इसमें भी हमारे पूर्वजों का संदेश है। उन्होंने कहा कि हमारे पूर्वज पहले पशुवत थे, लेकिन उन्होंने सदियों तक खोज और श्रम करके जिस दुनिया को अगली पीढ़ी के लिये खूबसूरत और समृद्ध बनाया, उसे हमने केवल सौ सालों में नरक बना दिया है। पर्यावरण संरक्षण में जनभागीदारी को बढ़ाने की जरूरत बताते हुए कहा कि यह काम अकेली संस्थाओं और सरकार के पल्ले अकेले छोड़ना खतरनाक होगा।

मंदार नेचर क्लब के संस्थापक अरविंद मिश्रा ने कहा कि यह धरती पुरखों की जायदाद से इसे बेहतर स्थिति में सौंपना हमारा दायित्व है। जन-जन में पर्यावरण जागृति का काम आज जोखिम का काम हो गया है। इसके लिये अकेले चलना मुमकिन नहीं जन को जगाना एकजुट करना जरूरी है। 185 पर्यावरण कार्यकर्ताओं की हत्या सिर्फ 2015 में की गयी। सरकार की नीतियों और उसकी कार्यप्रणाली में काफी फर्क है। सरकार की नीतियों का उल्लेख करते हुए कहा कि नदी जोड़ योजना किसी भी कीमत पर पर्यावरण के हित में नहीं है। हर नदी का अपना स्वभाव और मिजाज होता है। एक ओर सरकार गंगा की सफाई का नारा देती है तो दूसरी ओर जल परिवहन को सुनिश्चित करने के लिए ड्रेजिंग का काम कर रही है। इस हाल में आस-पास के खेतों में क्या सिंचाई सुलभ हो पाएगी।

ऐसे में जैव विविधता कायम रह पाएगी। नदियों में अवैध खनन और अतिक्रमण ने तो पूरे देश की नदियों के स्वरूप को ही ध्वस्त कर डाला है। बिहार में चौदह संरक्षण क्षेत्र हैं। जहाँ समुदाय सक्रिय है वहाँ सुंदर काम हो रहा है। सरकार के विवेक शून्य फैसले का हवाला देते हुए कहा कि एक समय बेगूसराय स्थित कांवर झील के कुछ हिस्सों को सुखाने की योजना यह कहकर बनायी थी कि उस जमीन पर खेती होगी। लोगों के विरोध के कारण यह थम पाया। आंध्र प्रदेश में भी सरकार एक झील के क्षेत्रफल को कम करने में लगी है। उसे यह पता नहीं कि इसका प्रतिकूल असर कहाँ-कहाँ पड़ेगा।

इस मौके पर परिधि के उदय और राहुल ने पर्यावरण पर जागरूकता के गीत गाए। कार्यशाला के समापन समारोह को प्रो. विजय कुमार राय, डाॅ. मुस्तकीम आलम, प्रकाशचंद्र गुप्ता, डाॅ अनिरुद्ध कुमार, वासुदेव भाई, रामगोपाल पोद्दार, उमा घोष सहित कई लोगों ने संबोधित किया। इस मौके पर निबंध प्रतियोगिता और क्वीज के आयोजन किए गए। निबंध प्रतियोगिता के प्रथम, द्वितीय और तृतीय स्थान प्राप्त प्रतिभागियों क्रमशः एनामुद्दीन, संध्या पांडेय और खुशबू परवीन को वरिष्ठ पत्रकार प्रसून लतांत, एनुल होदा और सुनील अग्रवाल ने अपनी ओर पुरस्कार दिए। कार्यशाला के संयोजक डाॅ. दीपक कुमार दिनकर ने कार्यशाला की कामयाबी पर संतोष व्यक्त किया।

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