लेख
पर्यावरण पर द्वंद्व
उत्तराखण्ड सरीखे पर्वतीय राज्य के लिए दिक्कत यह है कि जिन संसाधनों से वह आय बढ़ाने की सोच रहा है, उन पर पर्यावरण मन्त्रालय से लेकर पर्यावरण सरोकारों से जुड़े स्वयंसेवी संगठनों का कड़ा पहरा है। खासतौर पर पावर सेक्टर पर जिसमें राज्य सरकार सबसे ज्यादा सम्भावनाएँ तलाश रही है। लेकिन 16 जून 2013 की आपदा के बाद पनबिजली परियोजनाओं से जुड़ी सम्भावनाएँ भी क्षीण हो चुकी है।
“उत्तराखण्ड में पर्याप्त वन है। गंगा और उसकी सहायक नदियों की स्थिति अच्छी है। लेकिन न जाने क्यों सारे विशेषज्ञ उत्तराखण्ड में ही क्यों आ रहे हैं? समझ नहीं आता कि उन्हें निचले इलाकों में गंगा की चिन्ता क्यों नहीं सता रही है?”