पर्यावरण संरक्षण में बाल काव्य की भूमिका
पर्यावरण शब्द का निर्माण परि और आवरण शब्दों को मिलाकर हुआ है। पर्यावरण का तात्पर्य है आस-पास का परिवेश और वातावरण। पर्यावरण में प्रकृति के विभिन्न अंगोपांग सम्मिलित है। इसमें वायु धरा, आकाश समुद्र,पर्वत, वन-उपवन, खेत-बाग-वाटिका, वृक्ष-लता-पुष्प-पल्लव, जीवन-जन्तु आदि का समावेश है। चिरकाल तक प्राकृतिक सम्पदा की सुरक्षा और जीवन जन्तुओं के संरक्षण के कारण पर्यावरण विशुद्ध एवं सतुलित रहा है। किन्तु ज्यो-ज्यो वैज्ञानिक प्रगति होती गई, व्यवसायिक और औद्योगिक विकास होने लगा, अनेक प्रकार की प्रविधियों और विज्ञान के उपकरणों का आवष्किार होने लगा,नगरीकरण की व्यापकता बढ़ने लगी, अपने उपयोग के लिये वृक्षों को नष्ट किया गया और तीव्रगति से वृक्षारेापण नही किया गया] कल-कारखानों का दूषित द्रव नदियों और अन्य जलाशयों में प्रवाहित किया गया त्यों-त्यों पर्यावरण प्रदूषित होता गया। फलस्वरूप वायु प्रदूषण और ऊर्जा प्रदूषण का संकट बढता जा रहा है। ऐसी स्थिति में पर्यावरण संरक्षण के प्रति सजग, जागरूक और सचेष्ट रहने की आवश्यकता है। पर्यावरण संरक्षण में बाल-काव्य को भी महती भूमिका है। हिन्दी बाल-काव्य के रचनाकारों ने इस दिशा में अपने दायित्वों और कर्तव्य का निर्वहन निष्ठापूर्वक किया है। आज भी पर्यावरण संरक्षण के प्रति चेतना जाग्रत करने के लिये हिन्दी बाल काव्य प्रणोता अपनी बाल कविताओं के माध्यम से सतत प्रयत्नशील हैं।
बाल काव्य के विकास की प्रारम्भिक अवस्था में कवियों ने प्रकृति के विभिन्न अवयवों और विभिन्न रूपों का वर्णन कर अपने प्रकृति प्रेम का परिचय दिया है। धरती, आकाश, वायु, समुद्र, पर्वत, सूरज चाँद सितारे, वृक्ष लता, ऋणु जीव जन्तु आदि का महत्व बाल काव्य में प्रमुखता के साथ रेखांकित किया गया है। अनेक रचनाकारों ने प्रकृति का चारू चिण कर शुद्ध पर्यावरण के प्रति अपनी निष्ठा का परिचय दिया है। राष्ट्रकवि पं0 सोहनलाल दि्वेदी की बाल काव्य साधना प्रणम्य है। उन्होने अनेक प्रकृति परक बाल कविताओं की रचना की है जिनमें कोई न कोई संदेश निहित है। तारों के चमकाने की कामना उनकी प्रस्तुत काव्य पंक्तियों में अवलोकनीय है -
प्यारे-प्यारे तारे चमको,
नीचे चमको, ऊपर चमको
नभ पर चमको, भू पर चमको,
नदी और नहरों में चमको।
तुम लहरों-लहरों में चमको,
दूर करो दुनिया के तम को
प्यारे-प्यारे तारे चमको।।
चमको चमक लिये तुम ऐसे।
हीरे जैसे मोती जैसे।
चमको ऐसे नील गगन में।
जैसे फूल खिले हों वन में।
अपनी चमक लुटाओं हमको।
प्यारे-प्यारे तारे चमको।।
द्वारिका प्रसाद माहेश्वरी ने उस नियन्ता के प्रति कृतज्ञता ज्ञापित की है जिसने प्राकृतिक और पर्यावरणीय उपादानों का वरदान दिया है -जिसने सूरज चाँद बनाया।
जिसने धरती गगन बनाया।
जिसने तारों को चमकाया।
जिसने फूलों को महकाया।
जिसने सर-सर हवा चलाई।
जिसने जल की नदी बहाई।
उस प्रभु को हम शीश नवाते।
उस प्रभु को हम शीश झुकाते।।
हिन्दी के लब्ध प्रतिष्ठ गीतकार गोपाल सिंह नेपाली ने सरिता के निर्मल जल की सराहना पर्यावरणीय दृष्टिकोण से की है -
यह लघु सरिता का बहता जल।
हिमगिरि के हिम से निकल-निकल।
यह विमल दूध सा हिम का जल।
रखता है तन में इतना बल।।
यह लघु सरिता का बहता जल।
हिन्दी बाल काव्य के क्षेत्र में लोकप्रियता एवं सुप्रतिष्ठा अर्जित करने वाले अन्य अनेक दिवंगत बाल काव्य के प्रणेताओं ने प्रकृति के सौन्दर्य और महत्व का गुणगान किया है जिनमें प्रमुख रूप से निरंकार देव सेवक, चन्द्रपाल सिंह यादव, मयंक विष्णुकान्त पाण्डेय, रामवचन सिंह, आनन्द प्रेम नारायण गौड़, डॉ. रामस्वरूप दुबे, राधेश्याम सक्सेना, रसिकेश, पं0 शिवशंकर मिश्र नारायण लाल परमार, डॉ. शोभनाथ लाल, रघुनाथ प्रसाद विकल, शम्भू प्रसाद श्रीवास्तव, डॉ. प्रतीक मिश्र,डॉ. गणेश दत्त सारस्वत, डॉ. प्रसाद निष्काम, श्रीमती शकुन्तला सिरोठिया, सुमित्रा कुमारी सिन्हा आदि के नाम उल्लेखनीय है। इन्होंने प्रकृति विषयक अगणित बाल कवितायें लिखी है।
अनेकानेक वर्तमान बाल काव्य प्रणोता पर्यावरण संरक्षण और प्रदूषण नियंत्रण के प्रति सलग है और अपनी बाल कविताओं के माध्यम से इस क्षेत्र में अपनी महती भूमिका निभा रहे है। डॉ. जगदीश चन्द्र शर्मा ने प्रचुर बाल काव्य सृजित किया है उनकी दृष्टि पर्यावरण संरक्षण पर भी है उनका कथन है -
करें प्रतिज्ञा रहे सन्तुलित पर्यावरण हमारा
पानी मिट्टी और वायु से मिटे अशुद्धि समूची।
हरियाली के विस्तारण को मिले प्रतिष्ठा ऊॅची।
कटें न वन वृक्षारोपण हो वन्य जन्तु हुलसाये।
सुन्दर पर्यावरण बनाने की लम्बी है सूची।
पर्यावरण सुधार और संरक्षण से गर्वित हो,
पर्यावरण सुरक्षा का व्यापक व्याकरण हमारा।
करें प्रतिज्ञा रहे सन्तुलित पर्यावरण हमारा।
बाल साहित्य समीक्षा के संपादक डॉ. राष्ट्र बन्धु हिन्दी के श्रेष्ठ बाल काव्य सर्जक है। उन्होने पर्यावरण प्रदूषण के प्रति चिन्ता प्रकट करते हुये पर्यावरण सुरक्षा के लिये एक अभियान का आवाहन किया है -
जन-जन का कल्याण,
जन-जन का उत्थान।
एक नया अभियान।
पर्यावरण शुद्ध रखेगें,
वृक्ष लगायेगें।
दुखद प्रदूषण दूर करेगें।
कष्ट भगायेगें।
हमारा है संकल्प महान।
हमारा एक नया अभियान।।
बाल कविता के क्षेत्र में सीताराम गुप्त का अवदान रेखांकित करने योग्य है पर्यावरण सुधार के लिये उनका मत है -
अगर साइकिल अपना लें सब
हल को प्रश्न हजार
बचे विदेशी मुद्रा होगा
पर्यावरण सुधार
साथ सायकिल के हो सबको
हरियाली से प्यार
वृक्ष लगाये मिले वनों से
शुद्ध वायु उपहार।।
स्वंय मैंने (विनोद चन्द्र पाण्डेय,विनोद ने) बाल कविता पत्रिका के पर्यावरण प्रदूषण नियंत्रण और वृक्षारोपण विशेषांक प्रकाशित कर पर्यावरण संरक्षण के लिये बाल काव्य की भूमिका को उद्घाटित, प्रचारित और प्रसारित किया है। अपनी बाल कविताओं के द्वारा भी पर्यावरण सन्तुलन का सन्देश दिया है कुछ काव्य पंक्तियाँ अवलोकनीय है -
पर्यावरण संतुलित रखना,
है कर्तव्य हमारा।
हो न प्रदूषित पवन, वारि, ध्वनि
बहे सुखों की धारा।।
बाबूलाल शर्मा ‘प्रेम’ की दीर्घकालीन बाल काव्य साधना सराहनीय है। उन्होने अपनी बाल कविताओं के माध्यम से शुद्ध पर्यावरण के प्रति चेतना जगाने का कार्य किया है उनका कथन है -
धरती, धूप, पवन, पानी
ये सारा मगन हमारा है
हम इसको गन्दा न करे
ये पर्यावरण हमारा है।
सुन्दरलाल ‘अरूणेश’ की गणना हिन्दी बाल काव्य के प्रमुख रचनाकारों में की जाती है उन्होने पर्यावरण संरक्षण के लिये अधिकाधित वृक्षारोपण को कल्याणकारी बताया है -
पेड़ और पौधे धरती का
सारा जहर पचा लेते हैं।
वे समाज के हित चिन्तक बन
सबकी जान बचा लेते है।
जियें अधिक दिन इससे पेड़ों
का परिवार बढाना होगा।
सुख की साँस अगर लेनी है
पर्यावरण बचाना होगा।।
श्रेष्ठ बाल काव्य प्रणेता डॉ. रोहिताश्व अस्थाना ने प्रकृति के स्वच्छ पर्यावरण का गीत कुछ इस प्रकार बताया है -
आमों की बगिया में चलकर,
खेलें खेल अनोखे सुन्दर
खेल रही सूरज की किरणो,
वृक्षों पर देखो इठलाती
पर्यावरण स्वच्छ ले करके,
प्रकृति परी हॅसती मुस्काती।।
सुप्रसिद्ध बाल साहित्य सर्जक श्री रवीन्द्र कुमार ‘राजेश’ ने भी श्रेष्ठ बाल कवितायें लिखकर पर्यावरण संरक्षण का समर्थन करते हुये जन जन में जागरूकता उत्पन्न की है। उनकी ये काव्य पंक्तियाँ दृष्टव्य है
-अमर स्वस्थ सब रचना चाहें,
रोके नित बढ़ रहा प्रदूषण।
शुद्ध वायु प्राकृतिक सम्पदा,
होते जीवन के आभूषण।।
कविवर कल्पनाथ सिंह ने बच्चों को सम्बोधित उससे नया सबेरा लाने की अपेक्षा की है जिससे पर्यावरण सुरक्षित और संरक्षित रह सके A
बच्चो ! तुमको इस धरती को,
फिर से स्वर्ग बनाना होगा।
सूरज बनकर तुम्हें धरा पर,
नया सबेरा लाना होगा।।
सुकवि रमेशचन्द्र पन्त की बाल कविताओं में पर्यावरण प्रदूषण पर चिन्ता व्यक्त की गई है।एक उदाहरण प्रस्तुत है -
रोज उगलती
धुआ चिमनियाँ,
बेहद मुश्किल।
वातावरण;
हुआ प्रदूषित।
बेहद मुश्किल।।
हिन्दी बाल काव्य को डॉ.तारादत्त निर्विरोध का योगदान महत्वपूर्ण है। उनकी बाल कवितायें पर्यावरण चेतना जाग्रत करने में सफल हुई है। उनका यह सन्देश प्रेरणा-प्रदायक है
-फैल रहा चहूँ ओर प्रदूषण,
आओ उसे मिटायें।
संकल्पों के पौधे रोपें,
अनगिन वृक्ष लगाये ।।
हिन्दी कवयित्रियों में स्नेह लता का नाम उल्लेखनीय है। बाल काव्य के क्षेत्र में उनका अवदान विस्मृत करने योग्य नहीं है। पर्यावरण के सम्बन्ध में उनका उद्गार है -
प्राकृतिक पर्यावरण ललाम।
रखें सन्तुलित शुद्ध अभिराम।।
राजा चौरसिया ने पर्यावरण -विषयक अनेक बाल कवितायें लिखी है उनका संकल्प सराहनीय है -
पर्यावरण बचायेगें हम।
हरे भरे दिन लायेगें हम।।
डॉ. शेषपाल सिंह ‘शेष’ ने पर्यावरण सुधार की आवश्यकता पर बल देते हुये लिखा है -
पर्यावरण प्रदूषण से, धरती
की हालत खस्ता है।
पर्यावरण सुधार आज की
पहली आवश्यकता है।।
योगेन्द्र सिंह भाटी ‘योगी’ ने पर्यावरण सुधार के लिये सचेष्ट रहने की ओर ध्यान आकृष्ट किया है -
स्वप्न यही साकार करें,
पर्यावरण सुधार करें।
पेड़ लगा इस धरती पर,
इनका नव श्रृंगार करें।।
प्रभाष मिश्र ‘प्रियभाष’ ने पर्यावरण को पावन रखने के लिये प्रयास को वांछनीय बताया है -हम सब करें प्रयास कि जिससे,
पर्यावरण रहे पावन।
स्वस्थ रहें सब रूप प्रकृति का,
रहे सर्वदा मनभावन।।
प्रसिद्ध बाल काव्य प्रणोता राजनारायण चौधरी का मत है कि पेड़ से पर्यावरण है उनका कथन है -
पेड़ है जीवन हमारा,
पेड़ से जग सुखी सारा।
पेड़ करता मुद्रित मन है,
पेड़ से पर्यावरण है।।
उर्पयुक्त रचनाकारों के अतिरिक्त अन्य अनेक कवियों और कवित्रियों ने श्रेष्ठ बाल-कवितायें लिखकर पर्यावरण-जागरूकता का संदेश दिया है जिनमें डा0 चक्रधर ‘नलिन’, डॉ. प्रेमचन्द्र गोस्वामी, डॉ. रामनिवास ‘मानव’, डॉ. मधुसूदन सहा, त्रिभुवन सिंह चैहान, जगदीश मोमर, शम्भूलाल शर्मा,’बसन्त’ डॉ. रमाकान्त श्रीवास्तव, शिव अवतार रस्तोगी ‘सरस’, सूर्य कुमार पाण्डेय, भगवती प्रसाद गौतम, डॉ. निदेश चमोला शैलेव, डॉ. राजकिशोर सक्सेना, उदय किरोला, डॉ. अजय जनमेजय, डॉ. नागेश पाण्डेय, संजय, राकेश ‘चक्र’, डॉ. भैरूलाल गर्ग, शम्भूलाल शर्मा ‘बसन्त’, धमण्डीलाल अग्रवाल, बालकृष्ण गर्ग, डॉ. गिरिराज शरण अग्रवाल, भगवती प्रसाद गौतम, श्री प्रसाद भगवती प्रसाद द्विवेदी, डॉ. शकुन्तला कालरा, डा0 महाश्वेता चतुर्वेदी आदि के नाम विशेष रूप से उल्लेखनीय है।
वर्तमान में बाल वाटिका, बाल-भारती, नन्दन बच्चों का देश, बालहंस, स्नेह, समझ-झरोखा ‘उजाला’,बाल-वाणी आदि बाल पत्रिकायें प्रकाशित हो रही है जिसमें प्रचुरता के साथ पर्यावरण संरक्षण विषयक बाल कवितायें प्रकाशित की जा रही है। इनके माध्यम से भी पर्यावरण संरक्षण में बाल काव्य अपनी भूमिका निभा रहा है। आकाशवाणी और दूरदर्शन के बालोपयोगी कार्यक्रमों में पर्यावरणीय बाल कविताओं का प्रस्तुतिकरण और प्रसारण किया जाता है जिससे पर्यावरण चेतना जगाने में सहयोग मिलता है।
बाल-वाटिका के जून 2008 के अंक में सम्पादकीय के अंतर्गत कुशल और सफल सॅम्पादक डॉ भैरूंलाल गर्ग का यह उद्बोधन रेखांकित करने योग्य है- ‘आओ हम जन-जन में पर्यावरण संरक्षण चेतना जगायें और प्रदूषण के प्रचंड तांडव से अपने आपको बचायें।.....’पर्यावरण संरक्षण’ सबकी चिन्ता का विषय बने तो समस्या का समाधान संभव है।
पर्यावरण पर केन्द्रित मेरी दो कविता पुस्तकें ‘पर्यावरण के गीत’‘ और ‘हम पर्यावरण बचायेगें’ प्रकाशित हो चुकी है। पर्यावरण संरक्षण की चेतना जगाने में इनके योगदान को भी विस्तृत नहीं किया जा सकता’ मेरा आवाहन है -
वातावरण स्वच्छ निर्मल हो’
शुचि हो जल’ थल, अम्बर।
दिशा दिशा को करे सुवासित,
पवन प्रवाहित होकर ।।
5 जून को प्रतिवर्ष अन्तर्राष्ट्रीय पर्यावरण दिवस मनाया जाता है। पर्यावरण दिवस मनाना तभी सफल और सार्थक होगा जब जन-जन में पर्यावरण संरक्षण के प्रति जागरूकता उत्पन्न हो। प्रस्तुत काव्य पंक्तियाँ ध्यान देने योग्य है -
पर्यावरण दिवस आयाहै,
हो न कहीं भी वायु प्रदूषित ।
वृक्षों से हो भूमि विभूषित,
वातावरण विशुद्ध स्वच्छ हो,
यहीं भाग सबको भाया है,
पर्यावरण दिवस आया है।।
अतः पर्यावरण संरक्षण में ‘बाल काव्य‘ की भूमिका निर्विवाद और महत्वपूर्ण है।
संकलन/प्रस्तुति
पंकज कुमार”बागवान’’