पाठकनामा: गंगा को लेकर एक खुला-खत माननीय मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश के नाम
सेवा में,
माननीय मुख्यमंत्री उत्तर प्रदेश सरकार लखनऊ
महोदय,
नमस्कार ! ईश्वर नें हम भारतवासियों को इतना बहुमूल्य उपहार गंगा नदी के रूप में दिया है, जो विश्व में किसी अन्य देश को प्राप्त नहीं है। परन्तु दुर्भाग्य है कि हम भारतवासी इस बहुमूल्य उपहार को सही रूप में पहचान नहीं पा रहे है। इसी कारण इसकी उचित रक्षा व सम्हाल न करके इसे बर्बाद करने में संकोच नहीं करके नष्ट कर रहे है।
हम भारतवासी इस गंगाजल के बारे में केवल इतना ही जानते है कि यह पवित्र होता है, इसमें कीड़े नहीं पड़ते। इसके अलावा इस कीड़े न पड़ने वाले अद्वितीय गुण का वास्तविक रूप क्या है एवं किस कारण कीड़े नहीं पड़ते एवं उसके इस अद्वितीय गुण का हमारे जीवन में क्या उपयोग हो सकता है। इसकी जानकारी नहीं है। यही इसका गुण इसे अमृत बनाता है एवं हमें इस गुण की सही जानकारी करके इस गुण का क्या उपयोग किया जाना चाहिए, इसकी जानकारी करके जन-जन तक पहुंचाने की आवश्यकता है। यदि इस अमृततुल्य गुण की सही पहचान करके इसका प्रचार पूरे भारतवासियों को करा सके तो हमें विश्वास है कि फिर हर भारतवासी इसे नष्ट होने से बचानें में लगेगा एवं हमारी सरकार द्वारा किये जा रहे "नमामि गंगे" कार्यक्रम को आसानी से सफल कर सकेंगे।
वैज्ञानिको द्वारा इस जल के बारे में कई दफा अनुवेषण / रिसर्च किये गये थे। तब ये जानकारी हुई, जिसे उनकी भाषा में कहा गया कि इस जल में एक विशेष प्रकार का बैक्टीरियोफेज उत्पन्न है। इस बैक्टीरियोफेज में यह गुण है कि यह किसी भी अन्य प्रकार के बैक्टिरिया, वायरस, फंगस आदि को जीवित नहीं रहने देता, वे नष्ट हो जाते है। हमें दुख है कि हमारे वैज्ञानिको नें केवल इतनी जानकारी करके इसकी इतिस्त्री कर दी। इस अद्वितीय गुण को हम कैसे उपयोग में ला सकते है। यह हमारे जीवन में हमारे रोगो को ठीक करने में, महामारियों को दूर करने में कैसे काम आ सकता है। इसकी कोई जानकारी आगे बढ़कर नहीं की।
हमारी ऐलोपैथी चिकित्सा प्रणाली यही बताती है कि ज्यादातर विभिन्न प्रकार के रोग केवल विभिन्न प्रकार के बैक्टीरिया, वायरस, फंगस आदि के प्रकोप से होते है एवं इससे मनुष्य के शरीर को बचाने के लिए ही एवं इन बैक्टीरिया, वायरस आदि को नष्ट करने के लिए विभिन्न प्रकार की दवाएँ बनायी जाती है। जिनपर करोड़ो एवं अरबों रुपये खर्च होते है। जब रिसर्च से पता है कि हमारे गंगाजल में यह गुण विद्यमान है कि अन्य सभी प्रकार के वायरस, बैक्टीरिया, फंगस आदि को इसमें नष्ट करने का गुण विद्यमान है, तब हमें हमारी रिसर्च प्रणाली को इसपर लगाकर इस गुण के प्रभाव को देखने में लगाना चाहिए कि इस गंगाजल के गुण का किस प्रकार प्रयोग हम हमारे देश में किस-किस रोग को इसके उपयोग से कैसे नियंत्रित कर सकते है। यदि हम इसमें सफल हो गये तो देश में हो रहे स्वास्थ्य विभाग का बहुत बड़ा बजट बच जायेगा एवं देशवासी रोगों के कष्ट से मुक्त भी जल्दी हो सकेंगे। इस विषय में हमारा निम्न सुझाव उत्तराखंड, उत्तर प्रदेश व केन्द्रीय सरकार से है।
1. एक पूर्ण सुसज्जित सब प्रकार के साधन से सम्पन्न प्रयोगशाला की स्थापना की आवश्यकता है, जो गंगाजल के इस बैक्टीरियोफेज गुण की जानकारी करके बता सके कि किस जल में यह गुण कितने मात्रा में विद्यमान है। क्योंकि गौमूख से चलकर हरिद्वार तक आने तक में गंगा नदी में अनेको नदियां एवं जल धाराओं का मिलन होता है। हमें देखना है कि इनमें से किन-किन धाराओं में यह गुण विद्यमान है एवं कितनी मात्रा में विद्यमान है। सब धाराओं की अलग-अलग जांच करनी होगी एवं मुख्य धारा में विलय के बाद उसका क्या प्रभाव है। इसके अलावा सर्दी, गर्मी, बरसात तीनों मौसमों में गंगाजल का क्या-क्या गुण है, क्या कभी यह कम या अधिक भी होता है तथा जहां जहा बांध बनाये गये है, उनमें जल आने के बाद उनके गुणों में क्या फर्क आता है। बांध के पहले पानी में क्या गुण है एवं बांध से निकलने वाले जल में कितना प्रतिशत गुण है आदि।
2. इस जल में विद्यमान बैक्टीरियोफेज के गुण का प्रभाव किस किस रोग पर एवं महामारियों पर विभिन्न प्रकार का बैक्टिरिया वायरस आदि पर क्या क्या प्रभाव हो सकता है। अर्थात उन बीमारियों को नियंत्रित करने में एवं रोगी को रोगमुक्त करने में यह जल कितना प्रभावी है। इसके लिए विभिन्न बीमारियों के लिए अलग-अलग मेडिकल विश्वविद्यालय में शोध हेतु जिम्मेदारी देनी होगी कि वे इस पर कार्य करें।
3. यह जानकारी हुई है कि इस गंगाजल को दूसरे जल में मिलाने के बाद पूरा जल बैक्टीरियोफेज से प्रभावित हो जाता है। अतः घरों में इस्तेमाल होने वाले जल में प्रति हजार लीटर जल में प्रतिदिन कितना गंगा जल मिलाने पर पूरी टंकी का जल कितने समय बाद गंगाजल के गुणों के बराबर प्रभावशाली होता है। टंकी का यह जल प्रतिदिन इस्तेमाल करने पर हमारे स्वास्थ्य पर क्या प्रभाव डालता है।
4. इस जल में यह बैक्टिरियल फेज जो उत्पन्न होता है। उसका उद्गम कहां से है? वह किसी चट्टान के सम्पर्क के कारण है या उन जंगलों में उत्पन्न वनस्पतियों के कारण है? या कोई अन्य कारण या पहाड़ों में जगह-जगह विद्यमान गरम श्रोतो के कारण है या अन्य कारण से है। इसका गहराई से पता करना है जिससे उसे नष्ट होने से बचाने की एवं सुरक्षा की व्यवस्था की जा सके। इन शोध पत्रों के निश्कर्ष प्राप्त होने के बाद यदि यह जल प्रभावशाली सिद्ध होता है तो यह हमारे देश के लिए वरदान सिद्ध होगा। इस जल की जानकारी पूरे विश्व को कराने के बाद इस जल की पूरे विश्व में इतनी मांग होगी कि यह हमारे देश की आय का एवं जनता को रोजगार देने का एक बड़ा माध्यम सिद्ध होगा। जिसकी कल्पना भी नहीं कर सकते।
इस कार्य में हमारी संस्था अविरल गंगा का पूरा सहयोग हम लोग देने को तैयार है। सब जगह से गंगाजल उपलब्ध कराने में हमारी संस्था पूरा सहयोग देगी।