पूर्वोत्तर भारत में अन्तर्देशीय जल परिवहन
भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्यों में आपदाएँ आती रहती हैं। भू-स्खलन और अन्य आपदाओं के साथ बाढ़ आदि के दौरान खासतौर पर मानसून में काफी दिक्कतें आती हैं, ऐसे में जल परिवहन ही एकमात्र रास्ता बचता है। देश के अन्य हिस्सों से माल परिवहन का एकमात्र साधन नदियाँ ही होती है। यहीं से अनिवार्य वस्तुओं की आपूर्ति की जाती है। इसके साथ ही ईन्धन की कम खपत, पर्यावरण अनुकूलता तथा प्रभावी लागत आदि कारणों से रेल और सड़क परिवहन के मुकाबले यह क्षेत्र काफी उपयोगी बन सकता है।अरुणाचल प्रदेश, असम, मणिपुर, मेघालय, मिजोरम, नागालैण्ड, सिक्किम और त्रिपुरा जैसे भारत के पूर्वोत्तर क्षेत्र के राज्यों को प्रकृति का प्रचुर वरदान प्राप्त है। प्राकृतिक सम्पदा से भरपूर इन राज्यों में सांस्कृतिक सम्पन्नता भी खूब है। पूर्वोत्तर के राज्यों का दायरा 2,55,083 वर्ग किलोमीटर के विशाल क्षेत्र में फैला हुआ है। इसी इलाके में दार्जिलिंग तथा शिलाँग जैसे विश्वविख्यात पर्यटन स्थल और काजीरंगा तथा मानस जैसे राष्ट्रीय अभयारण्य भी हैं। गुवाहाटी, जोरहाट, शिवसागर, बोमडिला, गंगटोक, हाफलंग, औरंग, जाटिंगा, तवांग तथा चेरापूंजी जैसे इलाके पर्यटकों की खास पसन्द भी हैं। यही नहीं जगह-जगह यहाँ पर्यटक स्थलों की भरमार तो है ही वन्य जन्तु तथा समृद्ध हस्तशिल्प भी यहाँ देश-दुनिया को अपनी ओर खींचती हैं।
साथ ही चीन, बर्मा, भूटान तथा बांग्लादेश की सीमाएँ भी पूर्वोत्तर के राज्यों से लगती हैं, लिहाजा इन इलाकों का सामरिक महत्व भी है। लेकिन विकास के तमाम सोपानों तथा नयी योजनाओं और संसाधनों के आवण्टन के बाद भी देश के कई क्षेत्रों की तुलना में अभी भी पूर्वोत्तर का इलाका पिछड़ा हुआ है। लेकिन धीरे-धीरे इन इलाकों में परिवहन साधनों का जाल मजबूती से फैल रहा है। खासतौर पर वर्ष 2004 के बाद पूर्वोत्तर के विकास को पंख लग गए हैं। यहाँ रेल सुविधाओं का विकास हो रहा है तथा राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-2 भी विकसित हो रहा है। कठिन पहाड़ी भूभाग होने के कारण खासतौर पर रेल और सड़क सुविधाओं के विस्तार में यहाँ काफी लागत आती है। इसके साथ ही बाढ़, भू-स्खलन और अन्य प्राकृतिक आपदाओं के साथ कई क्षेत्रों में उग्रवाद की समस्या के चलते भी विकास परियोजनाएँ बाधित होती हैं।
अभी पूर्वोत्तर के राज्य मुख्यतया सड़क परिवहन पर ही निर्भर हैं। इन इलाकों में करीब 82,000 किलोमीटर से अधिक सड़कों का जाल बिछा है। पर इनमें से 56,000 किलोमीटर सड़कें कच्ची हैं। इन पर बड़ा माल परिवहन नहीं चलाया जा सकता। इन सड़कों में भी 35,000 किलोमीटर से अधिक सड़कें असम में और करीब 15,000 किलोमीटर सड़कें अरुणाचल प्रदेश में पड़ती हैं। इसी तरह रेल नेटवर्क भी असम को छोड़कर अन्य राज्यों में विकसित नहीं हो सका है। ऐसी स्थिति में पूर्वोत्तर के राज्यों में जल परिवहन तन्त्र के विकास को और ठोस दिशा देने की दिशा में पहल करना अपेक्षित है।
आजादी के पूर्व पूर्वोत्तर की धमनी जल परिवहन तन्त्र ही हुआ करता था। इसके माध्यम से न केवल बड़ी संख्या में यात्री गन्तव्य तक पहुँचते थे, बल्कि काफी मात्रा में माल ढुलाई भी होती थी। इसी तरह सेनाओं के संचालन के लिए भी अन्तर्देशीय जल परिवहन पर ही मुख्य निर्भरता थी। वर्ष 1842 से ब्रह्मपुत्र नदी पर भाप से चलने वाले स्टीमरों की शुरुआत के बाद यहाँ आवागमन की गति और तेज हो गई थी। इसी दौरान प्रौद्योगिकी के क्षेत्र में हुई तमाम तरक्की ने अन्तर्देशीय जल परिवहन तन्त्र को प्रभावित करना शुरू किया और सड़क एवं रेलों का वर्चस्व होता गया। हालाँकि यूरोप, अमेरिका, चीन तथा पड़ोसी बांग्लादेश में अभी भी काफी मात्रा में ढुलाई अन्तर्देशीय जल परिवहन तन्त्र से हो रही है। भारत के पूर्वोत्तर इलाकों में इसकी प्रचुर सम्भावनाएँ बनी हुई हैं।
बीते कुछ सालों से जल परिवहन क्षेत्र की दिशा में केन्द्र और पूर्वोत्तर की राज्य सरकारों ने ध्यान देना शुरू किया है। पूर्वोत्तर भारत में कई छोटी-बड़ी नदियाँ हैं। इनमें कई ऐसी हैं जिनका नौवहन में महत्त्वपूर्ण योगदान हो सकता है।बीते कुछ सालों से जल परिवहन क्षेत्र की दिशा में केन्द्र और पूर्वोत्तर की राज्य सरकारों ने ध्यान देना शुरू किया है। पूर्वोत्तर भारत में कई छोटी-बड़ी नदियाँ हैं। इनमें कई ऐसी हैं जिनका नौवहन में महत्त्वपूर्ण योगदान हो सकता है। ये नदियाँ आदिकाल से पूर्वोत्तर की जीवनरेखा रही हैं। खासतौर पर ब्रह्मपुत्र तो अंग्रेजी राज में रेलों के विकास के बाद भी महत्त्वपूर्ण परिवहन का साधन रही थी। इसी के माध्यम से प्रमुख माल की ढुलाई कोलकाता तक होती थी और बाहर से यहाँ माल पहुँचता था। अगर राज्य सरकारों की ओर से थोड़ा गम्भीर प्रयास किया जाए तो करीब 4,000 किलोमीटर मार्गों पर फेरी सेवाएँ चलाई जा सकती हैं और इसके मार्फत सड़कों और रेलों पर दबाव कम किया जा सकता है। इसके साथ ही इनमें से करीब 1,800 किलोमीटर जलमार्ग पर स्टीमर और बड़ी देसी नावें चलाई जा सकती हैं और काफी बड़ी मात्रा में माल परिवहन सम्भव हो सकता है। अभी इन व्यापक सम्भावनाओं का दोहन बहुत सीमित मात्रा में किया जा सका है।
इस क्षेत्र में राष्ट्रीय जलमार्ग संख्या-2 धीरे-धीरे विकास की नयी गाथा लिख रहा है। असम में ब्रह्मपुत्र नदी, सादिया और धुबरी के मध्य करीब 891 किलोमीटर के लम्बे दायरे में इस राष्ट्रीय जलमार्ग का विस्तार है। इसे 26 दिसम्बर, 1988 को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित किया गया था। इसका प्रबन्धन भारतीय अन्तर्देशीय जलमार्ग प्राधिकरण के अधीन है जिसने बीते सालों में यहाँ आधारभूत सुविधाओं के विकास के लिए काफी कार्य किया है। इसी तरह बराक नदी को राष्ट्रीय जलमार्ग घोषित करने सम्बन्धी बिल भी संसद में पेश किया जा चुका है। इसके साथ ही विकास का एक नया दौर शुरू होने की सम्भावना व्यक्त की जा रही है।
पूर्वोत्तर में नौवहन योग्य नदियाँ | |
नदियों का नाम | नौवहन योग्य नदियों की लम्बाई (कि.मी. में) |
ब्रह्मपुत्र | 891 |
बरीढींग | 161 |
कटकहल | 161 |
सुबनसिरी | 143 |
बराक | 140 |
दिहांग | 129 |
कोलोंग | 121 |
गंगाधर | 113 |
कोलोडीने | 112 |
पांछर | 105 |
कपाली | 103 |
अन्य नदियाँ | 2,012 |
कुल लम्बाई | 4,191 |