राह दिखाता रैतोली

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यहां ग्रामीण विकास की यह बुनियाद लगभग 20 वर्ष पूर्व तत्कालीन ग्राम प्रधान स्वर्गीय माधो सिंह फर्स्वाण ने रखी थी। तब न गांव में रोजगार के साधन थे और ना ही बुनियादी सुविधाएं। लोग रोजगार के लिए पलायन कर रहे थे या फिर आस-पास के क्षेत्रों में मजदूरी। ग्रामीणों की इस पीड़ा एवं गांवों से हो रहे पलायन को देखते हुए उन्होंने गांव में ही दुग्ध व्यवसाय को बढ़ावा देने पर जोर दिया।

एक गांव जहां हर घर शिक्षित है। ग्रामीणों ने अपनी मेहनत से पैदल पथ का निर्माण किया। दुग्ध समिति बनाकर स्वरोजगार की राह खोली। किसी सरकारी मदद का इंतजार करने के बजाय यहां के लोगों ने खुद को सक्षम बनाया। यह है चमोली जनपद में बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित रैतोली गांव। आपसी सहयोग एवं श्रमदान से यहां के ग्रामीणों ने रैतोली की तस्वीर को सवारा है। जहां पूरे देश में मनरेगा में भ्रष्टाचार के मामले सामने आ रहे हैं, यहां इसके तहत पारदर्शी तरीके से विकास कार्य हुए हैं देश में गांवों की बात जब होती है, खासतौर पर पहाड़ के गांवों की तो अशिक्षा, बेरोजगारी और मूलभूत संसाधनों के अभाव वाली सरकारी मदद का इंतजार करती एक तस्वीर उभरती है। अधिकतर गांव के हालात यही हैं। ऐसे में उत्तराखंड के चमोली जनपद का रैतोली गांव आत्मनिर्भरता की एक बेहतरीन मिसाल बनकर उभरा है। बिना किसी सरकारी सहायता के यहां के ग्रामीणों ने गांव की किस्मत बदल दी है।

सीमांत जनपद चमोली के बद्रीनाथ राष्ट्रीय राजमार्ग पर सड़क मार्ग से ढाई किमी. की दूरी पर स्थित रैतोली गांव चारों ओर पर्वतीय श्रृंखलाओं से घिरा है। गांव का आकर्षक पैदल पथ, शिक्षा के क्षेत्र में शत प्रतिशत, आजीविका चलाने के निजी संसाधन, मास्टर प्लान से बने गांव के नये मकान, ग्रामीण समुदाय को मजबूत रखने के लिए महिला एवं युवक मंगल दलों के अलावा वन पंचायत का गठन यह कुछ ऐसी चीजें हैं जिन्होंने इस सुदूरवर्ती गांव के विकास में एक नया अध्याय जोड़ दिया है। यहां ग्रामीण विकास की जो तस्वीर देखने को मिलती है वह सरकार ने नहीं बनाई न ही विश्व बैंक की सहायता से बना है, बल्कि यहां के लोगों की कड़ी मेहनत का नतीजा है। ग्रामीणों ने दुग्ध व्यवसाय एवं खेती के जरिए अपनी आर्थिक स्थिति को मजबूत किया है। रैतोली गांव बद्रीनाथ विधान सभा में आता है और इस क्षेत्र के विधायक केदार सिंह फोनिया हैं। लेकिन उनके प्रयास और पहल के बिना ही ग्रामीण ने खुद को आत्मनिर्भर बनाया।

रैतोली गांव

लगभग तीन सौ की आबादी वाले रैतोली में लोगों की आजीविका का मुख्य साधन कृषि ही है। पर इसके अलावा यहां के ग्रामीणों ने गांव में दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ के सहयोग से एक ग्रामीण दुग्ध समिति का भी गठन किया है। ग्रामीण हर रोज गांव में ही एकत्रित दूध को खुले बाजार में देने के बजाय दुग्ध उत्पादक सहकारी संघ सिमली में देते हैं और उन्हें गांव में ही दूध का उचित मूल्य मिल जाता है। समिति के सचिव दिनेश मिश्रा का कहना है कि वर्षों से वह समिति सचिव का कार्य भी देख रहे हैं। यह स्वरोजगार के प्रति ग्रामीणों का एक अनूठा प्रयास है। लोग आज दुग्ध व्यवसाय को और बढ़ाने में लगे हैं। राष्ट्रीय रोजगार गारंटी योजना में भ्रष्टाचार को लेकर हर तरफ शिकायतों का अंबार लगा है लेकिन रैतोली में महिलाओं ने इस कार्य के तहत चेकडैम, संपर्क मार्ग आदि का निर्माण कर गांव की तस्वीर बदल दी है।

गांव हरा भरा रहे इसके लिए यहां वन पंचायत का गठन किया गया है। सभी महिलाओं को इस संगठन से जोड़ा गया है। गांव के ऊपरी भाग में भविष्य में भू-स्खलन जैसी स्थिति पैदा न हो इसके लिए वन पंचायत की महिलाओं ने हजारों की तादाद में पौधे लगाए हैं। वन पंचायत सरपंच मुन्नी देवी कहती हैं कि वनों को सुरक्षित रखकर ही गांव को हरा-भरा बनाया जा सकता है। भू-स्खलन जैसी आपदाओं को रोका जा सकता है। इसी का परिणाम है कि आज हमारा गांव हर तरफ से सुरक्षित भी है। शादी या अन्य समारोहों के अवसरों पर जहां लोग बर्तन आदि बाजारों से किराये पर लाते हैं, इस गांव में इसकी कोई आवश्यकता नहीं पड़ती। गांव वालों ने आपसी तालमेल से आज से करीब दस वर्ष पूर्व पैसे एकत्रित कर 100 थाली, गिलास, चार बाल्टियां, बैठने की दरियों के साथ ही भोजन बनाने के बर्तन आदि खरीदे थे।

अब गांव के जिस परिवार में भी शादी या कोई धार्मिक कार्य होता है, ये बर्तन आदि सहजता से मिल जाते हैं। इन सामान को ग्रामीणों ने महिला मंगल दलों को सुपुर्द कर रखा है। मंगल दल की अध्यक्ष विशेश्वरी देवी कहती हैं कि गांव में शादी त्योहारों के अवसरों पर लोगों को बाजार से किराये के बर्तन नहीं लेने पड़ते। यहां के लोग धार्मिक रीति-रिवाजों को भी खासा महत्व देते हैं। आपसी एवं विधायक निधि के सहयोग से करीब 5 वर्ष पूर्व पौराणिक शिव गुफा का सौंदर्यीकरण किया गया है। जहां हर रोज लोग पूजा अर्चना किया करते हैं। आपसी सहयोग एवं भाईचारे के बलबूते यहां अखण्ड रामायण जैसे धार्मिक कार्यक्रमों का आयोजन भी हर वर्ष होता है। इन आयोजनों के दौरान ग्रामीण एक साथ सामूहिक भोजन भी किया करते हैं। यहां के लोग कभी-कभार ही अपने नजदीकी बाजारों में आया-जाया करते हैं क्योंकि गांव में एक, दो नहीं बल्कि तीन-तीन दुकानें भी संचालित हो रही हैं। ग्रामीणों को यहीं पर सभी सामान सहजता से उपलब्ध हो जाते है।

रैतोली गांव की कुछ महिलाएं काम करती हुईं

इस गांव के हर घर में शौचालय है। पानी का निजी कनेक्शन, टेलीफोन और अपना पक्का मकान है। धान एवं गेहूं पिसाई के लिए बिजली से चलने वाली चक्की है। गांव के कुछ लोग कृषि कार्य करते हैं बाकी या तो सरकारी सेवाओं में हैं या फिर अपना निजी व्यवसाय कर आजीविका चला रहे हैं। रैतोली के ग्रामीण विकास की लड़ाई संगठित होकर खुद ही लड़ते हैं। वर्तमान ग्राम प्रधान आशा देवी का कहना है कि वह ग्रामीण विकास के लिए सरकार की ओर से आई योजना को पारदर्शिता के साथ पहले सबके सामने रखती हैं। ग्रामीणों की राय के बाद ही निर्माण कार्य शुरू करवाए जाते हैं। जिन कार्यों के लिए सरकार से पैसा नहीं मिलता हम वह समय निकालकर श्रमदान के माध्यम से करते हैं। बहरहाल, यह गांव भले ही सरकार के आदर्श गांवों की सूची में जगह न बना पाया हो पर यहां के लोगों ने जता दिया है कि ग्रामीण विकास सरकार के रहमोकरम पर ही संभव नहीं है बल्कि इसके लिए जन जागरूकता के साथ ही पूर्ण साक्षरता एवं ग्रामीणों का आपस में संगठित होना भी जरूरी है।

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