drying ganga
लेख
रेत के ढेर में तब्दील हो रही है गंगा
पौराणिक आख्यानों पर यकीन करें तो सदानीरा गंगा का सूखना कलयुग के आने का संकेत है। यह कलयुग है कि नहीं, हम यह नहीं कहते। पर गंगा की जिन धाराओं में नावें चलती थीं वहाँ अब रेत है और उस पर लोग कार और मोटरसाइकिलें दौड़ा रहे हैं। इस सच की गवाह हैं इलाहाबाद, कानपुर, अलीगढ़ से लेकर बनारस तक की तस्वीरें। यह चिंता तब और घनी हो जाती है जब गंगोत्री से गंगा सागर तक की यात्रा में कई सहायक नदियों का जल भी गंगा में मिल जाता है। बढ़ता तापमान, जमा होती सिल्ट, घाटों का अतिक्रमण जैसे कई मुद्दे भी सदानीरा को जल विहीन कर रहे हैं।
धर्मग्रन्थों मे गंगा जल को अमृत कहा गया है, लेकिन इसके इतर यह हमारी संस्कृति और सभ्यता की भी परिचायक है। पाँच राज्यों (उत्तराखण्ड, उत्तर प्रदेश, बिहार, झारखण्ड और पश्चिम बंगाल) के करोड़ों लोगों के जीवन को यह आधार देती है, मगर समय की शिला पर गंगा की पहचान संकट में है। ‘अतीत के अमृत’ में अब न निर्मलता है और न ही प्रवाह। गंगा में साल-दर-साल बढ़ती गाद (सिल्ट) सरकारी योजनाओं पर भी चढ़ती जा रही है। टीम हिन्दुस्तान की विशेष रिपोर्ट-
हरिद्वार से आगे कमजोर धारा
अमरोहा के तिगरीघाट में घटी
गढ़मुक्तेश्वर में दिखते हैं टापू
कानपुर में ऐसा रूप नहीं देखा
बनारस में घाटों को छोड़ गईं
साहिबगंज में भी छटपटाहट
-अमन आलम
-विनोद तारे, आईआईटी कानपुर।
-योगेश्वरराम, डीएम वाराणसी।
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