सांभर झील, फोटो - लेखक
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सांभर झील प्रबंधन एजेंसी के गठन को मिली मंजूरी

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'सांभर झील' (Sambhar Jheel) राष्ट्रीय महत्व का महत्वपूर्ण रामसर क्षेत्र है। सांभर झील क्षेत्र में बार-बार होने वाले गैरकानूनी अतिक्रमणों,  अवैध बिजली कनेक्शन, अवैध कब्जे,  अवैध बोरवैलों और प्रदूषण के कारण आज झील अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ रही है।  ऐसे में जरूरी हो गया था कि सांभर झील के कुशल और समन्वित प्रबंधन के लिए एक प्रबंधन एजेंसी का गठन हो। सांभर झील के कुशल प्रबंधन के लिए राज्य सरकार की ओर से सांभर झील प्रबंधन एजेंसी के गठन को मंजूरी दी गई है। चिल्का, ईस्ट कोलकाता वेटलैंड्स  और लोकटक के बाद यह देश में चौथी झील प्रबंधन एजेंसी होगी।

उल्लेखनीय है कि जयपुर, अजमेर और नागौर जिलों के 230 वर्ग किमी में फैली  उथली, अण्डाकार, सांभर झील अंतरराष्ट्रीय ख्याति प्राप्त रामसर साइट है। यह झील भारत की दूसरी और राज्य की सबसे बड़ी खारे पानी की झील तथा एशिया का सबसे बड़ा अंतर स्थलीय नमक उत्पादन केंद्र है। पर्यटन की दृष्टि से भी इसका विशेष महत्व है। झील के संरक्षण और विकास के लिए वर्तमान में सभी विभागों के कार्यों के संबंध में प्रबोधन और नियंत्रण हेतु कोई प्रशासनिक ढांचा नहीं है। सांभर झील के प्रबंधन को सुदृढ़ और परिणाम केंद्रित करने के लिए पर्यावरण विभाग के प्रस्ताव पर सांभर झील प्रबंधन हेतु गठित स्टैडिंग कमेटी के अनुमोदन उपरांत मुख्यमंत्री द्वारा 8 अक्टूबर 2021 को सांभर झील की सुरक्षा, संरक्षण और सर्वांगीण विकास के लिए सांभर लेक मैनेजमेंट एजेंसी के गठन की अनुमति प्रदान की गई है।

वन एवं पर्यावरण मंत्री और मुख्य सचिव की अध्यक्षता में सांभर लेक मैनेजमेंट एजेंसी का गठन होगा। एजेंसी में खनन, भू-जल एवं अभियांत्रिकी विभाग, वन एवं पर्यावरण, राजस्व, ऊर्जा विभाग, स्वायत्त शासन विभाग, मत्स्य एवं पशुपालन विभाग, उद्योग विभाग, वित्त विभाग, पंचायती राज विभाग, जल संसाधन विभाग, कृषि विभाग, पर्यटन विभाग, चिकित्सा एवं स्वास्थ्य विभाग और नगरीय विकास विभाग के इंचार्ज सचिव होंगे।

प्रधान मुख्य वन संरक्षक, मुख्य वन्यजीव प्रतिपालक, आरएजेयूवीएएस के निदेशक, सॉल्ट कमिश्नर निदेशक, जयपुर विद्युत वितरण निगम लिमिटेड, जयपुर अजमेर नागौर के जिला कलेक्टर सदस्य सचिव होंगे। इसी तरह राजस्थान राज्य प्रदूषण नियंत्रण मंडल, राज्य जैव विविधता बोर्ड और सांभर साल्ट लिमिटेड के मुख्य प्रबंधक सदस्य होंगे।

मैनेजमेंट एजेंसी सांभर झील क्षेत्र की सुरक्षा, संरक्षण और विकास के लिए कार्य करेगी। एजेंसी के अधीन क्षेत्र के भू-प्रबंध, अतिक्रमण हटाने, अवैध बिजली कनेक्शन हटाने, वन एवं वन्य जीव सुरक्षा एवं संरक्षण, मत्स्य एवं पशुपालन के नियंत्रण, पर्यटन के नियंत्रण, अपशिष्ट से बचाव, पानी गुणवत्ता की निगरानी एवं औद्योगिक विकास के नियंत्रण इत्यादि के लिए अलग से इकाइयां बनाई जाएंगी।

हाल में ही एक शोध का नेतृत्व करने वाले पर्यावरण विज्ञान विभाग के एसोसिएट प्रोफेसर लक्ष्मी कांत शर्मा ने (द हिंदू को) बताया कि सांभर झील का 30% क्षेत्र खनन और अन्य गतिविधियों से समाप्त  गया है, जिसमें अवैध नमक पान अतिक्रमण (विशेषकर नवां साइड के, जो कि निजी नमक निर्माताओं द्वारा नियंत्रित किया जाता है। यह कई अवैध बोरवेलों के लिए कुख्यात है जो नमकीन पानी निकालते हैं। पाइपलाइनें झील के तल को गांवों से जोड़ते हुए, कई किलोमीटर तक , अनधिकृत बिजली के केबलों के साथ, नमकीन पानी का परिवहन करती हैं) भी शामिल है।इसके साथ ही झील की मिट्टी और पानी की गुणवत्ता में भी गिरावट आई है। इसने स्थानीय लोगों की आजीविका को भी खतरे में डाल दिया है जो हमेशा झील और उसकी पारिस्थितिकी के साथ सामंजस्य में रहते आये हैं। अभी सांभर साल्ट्स लिमिटेड (सार्वजनिक क्षेत्र की कंपनी, हिंदुस्तान साल्ट्स लिमिटेड की एक सहायक कंपनी) ही नमक उत्पादन को नियंत्रित करती है।

साथ ही सांभर झील मुख्यतः जिन नदियों- मेंधा, रूपनगढ़, खरैन, खंडेल- के पानी से भरती रही है, वे केवल बरसात के मौसम में ही बहती हैं। क्योंकि किसानों ने 7560 वर्ग किलोमीटर के इसके जल-ग्रहण क्षेत्र में सतही तट बंध (एनिकट) बना दिये, नदियों के किनारे नलकूप खोद दिये, पंप सेट (डीजल) लगा अपने खेतों तक पानी पहुंचाने के लिये पाइप लाइन डाल दी हैं। इन सब के कारण नदियों का पूरा पानी झील तक पहुँचता ही नहीं है। जिससे कि झील की प्रकृति में बदलाव आ रहा है।

पिछले कुछ सालों से नेशनल ग्रीन ट्रिब्यूनल भी सरकार को झील के संरक्ष्ण, संवर्धन के लिये सलाह और डायरेक्शन देता रहा है। जिनके चलते कुछ कार्य सरकार ने किये भी है जैसा कि सांभर उप मंडल अधिकारी, के अनुसार  2020 में ही 288 बोरवेल,32 सबमर्सिबल पंप और 14 हेक्टेयर का अतिक्रमण हटाया गया। इससे पहले भी 2017 में ट्रिब्यूनल ने आदेश दिये थे कि झील के भीतर पड़ने वाले  साल्ट पान (कियारिओं) आवंटन को कैंसिल किया जाये। अभी भी एनजीटी ने 27 अगस्त 2021 के आदेश में उल्लेख किया कि अपशिष्ट और सीवेज के प्रबंधन, अतिक्रमण को हटाने और नमक शोधन इकाइयों से उत्पन्न सोडियम सल्फेट अपशिष्ट / कीचड़ के निपटान की समस्या अभी भी पूरी तरह से निपटाई जानी बाकी है।

अब देखना यह है कि इस  सांभर झील प्रबंधन एजेंसी के गठन के उपरान्त भी कुछ सफलता पूर्वक हो पायेगा या नहीं। क्योंकि की राजस्थान में “स्टेट वेटलैंड अथॉरिटी” और “स्टैंडिंग कमेटी ओन  मेनेजमेंट ऑफ़ सांभर लेक” पहले से ही काम कर रही हैं। साथ ही झील राजस्व भूमि पर होने के कारण, अवैध खनन, अतिक्रमण रोकने जैसी  काफी कार्यवाहियां तो स्थानीय प्रशासन की विभिन्न विभागों द्वारा की ही जा सकती हैं (एजेंसी का गठन हो जाने के बाद भी कार्यवाहियों के लिये यही विभाग काम में लिये जायेंगे)। जो पहले से ही लापरवाह रही हैं। इसकी वजह से  लेकिन सफलता पूर्वक कुछ नहीं हो पाया है। और झील लगातार बर्बाद होती गयी है। यहां तक कि 2019 में लगभग 25,000 प्रवासी पक्षी झील क्षेत्र में मरे पाए गये थे।       

(स्रोत –डे लाइफ, द हिन्दू, टाइम्स ऑफ़ इंडिया) 

लेखक के संपर्क का पता है - जलधारा अभियान, 221,पत्रकार कॉलोनी, जयपुर- राजस्थान, 302020, संपर्क- उपेन्द्र शंकर-7597088300. मेल-jaldharaabhiyan.jaipur@gmail.com 

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