सब्जी की खेती से मालामाल हो रहे विनाश के गर्त से निकले लोग
भूगर्भ से जरूरत से अधिक पानी निकलने की सम्भावना अत्यल्प होती है। अभी इन 18 गाँवों के 123 किसान 64 एकड़ ज़मीन में सब्जी की खेती कर रहे हैं। 18 गाँवों के बीच यह कोई बड़ा आँकड़ा नहीं है। पर समेकित जल प्रबन्धन कार्यक्रम सब्जी की खेती तक सीमित नहीं है। उसने इलाके के लिये उपयुक्त फसलों और उपयुक्त विधियों के चयन किया। धान व गेहूँ की खेती के लिये श्रीविधि, एसवीआई और एसडब्ल्यूआई विधि में प्रशिक्षण की व्यवस्था की।
कोसी तटबन्ध बनने के बाद इन गाँवों में पहले बाढ़ और जलजमाव का प्रकोप बढ़ा। फिर खेतों में रेतीली मिट्टी और बालू की मोटी परत जमती गई। लोगों के सामने जीविकोपार्जन का संकट भयावह रूप से उपस्थित हो गया। आजीविका के लिये पलायन और फकाकशी मजबूरी थी। उस मिटटी-बालू में पहले कास-पटेर पनपे। उन्हें काटकर लोगों ने आबाद किया। जिन खेतों में बालू और बालूई मिट्टी जमा हो गए थे, उनमें फसल की सिंचाई करने के लिये अधिक पानी की जरूरत पड़ती है। परन्तु सिंचाई के लिये पानी की किल्लत थी।