सभी राजनैतिक दलों को पानी की कार्यनीति बनाने की जरूरत - राजेन्द्र सिंह

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2014 के लोक सभा चुनाव में सभी राजनैतिक दलों को पानी की कार्यनीति बनाने की जरूरत

देश में पानी की उपलब्धता, जल की वर्तमान स्थिति और पानी का गंभीर संकट, भविष्य के लिए चुनौती बनती जा रही है। देश में सैकड़ों नदियां, तालाबों, जल संरचनाओं, सतही और भूमिगत जल स्रोत पर हो रहे प्रदुषण, अवैध खनन और आधुनिक विकास करने की होड़ ने जल को नुकसान पहुँचाकर संकट को और बढ़ा दिया है। मौसम में हो रहे परिवर्तन ने प्राकृतिक आपदाओं, सूखा और अकाल की संख्या में निरंतर वृद्धि की है। 18 फरवरी 2014, नई दिल्ली, अब 21वीं शताब्दी के दूसरे दशक में भी नदी पूर्नजीवन के लिए पेयजल सुरक्षा अधिनियम नही बनाया तो देष, पानी के लिए तरसेगा और फिर मतदाता पुछेगा कि जो पानी की व्यवस्था भी नहीं कर सकता उसे हम अपना मत क्यों दें? पिछले 5 वर्षों में उच्च न्यायालय, उच्चतम न्यायालय तथा राष्ट्रीय हरीत प्राधिकरण ने बहुत अच्छे निर्णय दिए हैं परन्तु उनमें से किसी की भी पालना नहीं हुई। इसलिए आने वाले लोकसभा और राज्यसभा में उन निर्णयों की पालना कराने हेतु तथा भारत के हर नागरिक का जल अधिकार सुरक्षित करने के लिए जल सुरक्षा अधिनियम 2014 बनाने की जरूरत है। उक्त वक्तव्य गाँधी पीस फाउंडेशन में आयोजित एक प्रेस वार्ता कार्यक्रम जल पुरूष श्री राजेन्द्र सिंह द्वारा कही गई।

उन्होंने यह भी कहा कि देश में पानी की उपलब्धता, जल की वर्तमान स्थिति और पानी का गंभीर संकट, भविष्य के लिए चुनौती बनती जा रही है। देश में सैकड़ों नदियां, तालाबों, जल संरचनाओं, सतही और भूमिगत जल स्रोत पर हो रहे प्रदुषण, अवैध खनन और आधुनिक विकास करने की होड़ ने जल को नुकसान पहुँचाकर संकट को और बढ़ा दिया है। मौसम में हो रहे परिवर्तन ने प्राकृतिक आपदाओं, सूखा और अकाल की संख्या में निरंतर वृद्धि की है। घटते भूजल स्तर के और नीचे चले जाने से अधिकांश जल स्रोत सूख जाते हैं और लोगों को बाध्यकारी दूषित पेयजल का उपयोग करना पड़ता है। उन्होंने प्रत्रकारों द्वारा पुछे गए पानी के अंतरराज्यीय/अंतरराष्ट्रीय संबंध और लोगों के सुनिश्चित पेयजल पर कई महत्वपूर्ण सवालों के जवाब दिए गए।

इस अवसर पर जल-जन-जोड़ो अभियान के राष्ट्रीय संयोजक श्री संजय सिंह ने कहा कि इस प्रारूप जल सुरक्षा अधिनियम 2014 को देश के समस्त लोकसभा क्षेत्रों में जनता के बीच ले जाकर उस पर जागरूकता बढ़ाने का काम किया जाएगा। उन्होंने देश के विभिन्न राज्यों में इस मुद्दों पर काम करने वाले जन संगठनों के साथ मिलकर गाँव-गाँव तक एक जागरूकता यात्रा निकाले जाने की घोषणा करते हुए कहा कि लोगों के जीवन और आजीविका से जुड़े इस महत्वपूर्ण बिल को राष्ट्रीय मुद्दे के तौर पर उठाया जाएगा। लोकसभा के सभी उम्मिदवारों तथा सभी राजनैतिक दलों से चर्चा कर उनकी प्रतिबद्धता ली जाएगी। इसके लिए 14 मार्च 2014 को एक राष्ट्रीय संवाद कार्यक्रम का आयोजन दिल्ली में करने की बात कही।

इस वार्ता में अधिवक्ता श्री अनुप कुमार श्रीवास्तव ने घटते भूजल स्तर पर चिंता व्यक्त करते हुए कहा कि वर्तमान में भूजल को नियंत्रित करने के कोई भी कानून लागू नहीं है जिससे इसका दोहन बड़े पैमाने पर हो रहा है, जो आने वाले समय में जल संकट को और गंभीर बना देगा। इसलिए लोगों के हित में जल सुरक्षा अधिनियम को शीघ्र बनाए जाने की वकालत की।

अंत में श्री राजेन्द्र सिंह जी ने देश के समस्त नागरिकों की जल सुरक्षा सुनिश्चित करने के लिए प्रारूप ‘जल सुरक्षा अधिनियम’ 2014 को आम जनता के लिए जारी किया। तथा धन्यवाद व संचालन श्री अनुप कुमार श्रीवास्तव द्वारा किया गया।

इस प्रारूप ‘जल सुरक्षा अधिनियम’ 2014 में निम्नलिखित प्रमुख बिन्दू शामिल हैः

1. अधिनियम के लागू होने के एक सौ बीस दिनों के अंदर सभी जल संरचनाओं का विधिवत सीमांकन एवं चिन्हीकरण तथा सूचीबद्ध कर उनके रिकार्ड, सूचनाओं व नक्शे को प्रकाशित करना तथा एक निश्चित समय में कम्प्यूटरीकृत कर आम लोगों के समक्ष रखने का प्रावधान जिससे पारदर्शिता लाई जा सके।

2. जल संरचनाओं के ऊपर आयोग द्वारा दिए गए सुरक्षित और संरक्षित उपायों को घोषित किया जाएगा, तथा एक पेज की प्रेस विज्ञप्ति और 2 मिनट के ऑडियो/वीडियो विज्ञापन का निःशुल्क प्रकाशित और प्रसारित करना को अनिवार्य बनाया गया है।

3. एक सौ बीस दिनों के भीतर जिला प्रशासन को समस्त जल संरचनाओं के किसी भी भाग पर होने वाले अतिक्रमण और उल्लंघन या प्रदूषण से मुक्त करने के लिए एक कार्य योजना बनाने और उसका क्रियान्वयन करने, जिससे नदियों, तलाबों, एंव अन्य पारंपरिक जल स्रोतों के संरक्षण और पुर्नजीवित करने के लिए कठोर प्रावधान किए गए हैं।

4. किसी भी व्यक्ति, प्राधिकरण, निगम, एजेंसी या किसी अन्य संगठन को आवंटित जल ब्लॉक से अधिक पानी लेने पर प्रतिबंधित करता है, तथा किसी बस्ती की क्षमता से अधिक पानी अन्य जगहों पर ले जाने से रोकता है। जिससे स्थानीय लोगों का जल सुरक्षा सुनिश्चित कर पानी पर प्रथम अधिकार कायम करता है।

5. किसी भी जल संरचना या उसके किसी अंश को किसी निजी, प्राधिकरण, निगम, एजेंसी या किसी अन्य संगठन को खनन, डंपिंग, निर्माण या संबद्ध गतिविधियों के लिए पट्टे देने पर पूर्ण पाबंदी।

6. किसी भी जल संरचना या जल तट या उसके किसी अंश में स्थाई और अस्थाई तौर पर निर्माण करने, उद्योग लगाने, रिहाईसी और औद्योगिक कचरे को डालने से रोककर जल के प्रदुषित होने से बचाता है।

7. किसी भी जल संरचना पर स्वाभाविक रूप से उगे किसी भी वनस्पति को किसी भी उद्देश्य के लिए, वहां से हटाने पर रोक लगाता है, जिससे जल सुरक्षा के साथ-साथ पर्यावरण की सुरक्षा भी सुनिश्चित होती है।

8. स्थानीय स्तर पर लोगों के जल सुरक्षा के साथ साथ सुरक्षित मत्स्य पालन करने की इजाजत देकर उनके आर्थिक सशक्तिकरण करने का प्रयास करता है।

9. स्थानीय पंचायती राज संस्थाओं को जल सुरक्षा के लिए महत्वपूर्ण शक्तियां देकर उन्हें अधिकार सम्पन्न बनाता है तथा उनके प्रस्तावों को लागू करने के लिए बाध्यकारी बनाता है। 10. प्रत्येक वर्ष दिसम्बर से पहले सभी जल संरचनाओं और सीमाओं का सामाजिक अंकेक्षण का प्रावधान कर स्थानीय समुदायों की सहभागिता और पंचायतों को सशक्त करता है। उसी प्रकार प्रति वर्ष 31 मार्च के पहले सभी जल संरचनाओं की स्थिति पर नियंत्रक महालेखा परीक्षक प्रतिवेदन देने का प्रावधान किया गया है।

11. जल सुरक्षा से जुड़े अधिनियमों को कड़ाई से पालन करने के लिए बाध्यता तथा अनुपालना नहीं करने पर कठोर दण्ड का प्रावधान किया गया है। अधिकतम जुर्माना व 10 साल का दंड या दोनों तथा जल संरचनाओं की बहाली करने के लिए पूर्ण रकम की वसूली करने का भी प्रावधान किया गया है।

12. स्थानीय अधिकारियों को अपने दायित्व पूरा न करने पर आईपीसी की धारा 166-169 के तहत अपराध के रूप में दर्ज करने का प्रावधान किया गया है।

भवदीय

अनुप कुमार श्रीवास्तव

(स्थानीय सम्पर्क मो.9868639942)

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