सोन नदी का अस्तित्व अब खतरे में है
सोन नदी का अस्तित्व अब खतरे में है

सोन नहर जल संकट पर शुरू हुई सुनवाई

Published on

पटना। उत्तरप्रदेश और मध्यप्रदेश की सीमा पर अवस्थित सिंगरौली के पास प्रस्तावित 35,000 मेगावाट ताप बिजली घरों के निर्माण में यदि सोन नदी के पानी का अत्यधिक इस्तेमाल न रोका गया तो बिहार के किसानों की मुश्किलें बढ़ जाएंगी। राज्य सरकार को अगर सोन नदी से अपने हिस्से का पानी बचाना है तो यूपी एवं एमपी सरकार से केन्द्र सरकार के सामने बातचीत करनी चाहिए। इसके लिए हाईकोर्ट के हस्तक्षेप की जरूरत है।

इस आशय का आग्रह पटना हाईकोर्ट की खंडपीठ के समक्ष भाजपा के वरिष्ठ नेता सरयू राय ने एक लोकहित याचिका की सुनवाई के दौरान किया। 18 साल से लंबित इस मामले पर भाजपा नेता राय ने स्वयं अपना पक्ष रखते हुए कहा कि समय रहते सतर्कता नहीं बरती गई तो सोन नहर के पास 225 लाख हेक्टेयर भूमि सिंचित होने से रह जायेगी। न्यायाधीश सुधीर कुमार कटरियार एवं न्यायाधीश विकास जैन की खंडपीठ ने मामले पर मंगलवार को लंबी सुनवाई करने के बाद अगली तिथि सितंबर में निर्धारित की। राय ने सोन नहर जल संकट को गंभीरता से लेने का आग्रह किया।

उन्होंने कहा कि 1980 में सोन नदी आयोग का गठन हुआ था। इसे 1987 में भंग कर दिया गया। राय ने कहा कि बाणसागर कंट्रोल बोर्ड की बैठक लंबे समय से नहीं हुई है। उनका कहना था कि बिहार के सोन कमांड क्षेत्र के किसानों और राज्य के व्यापक हित में बिहार सरकार को केन्द्र सरकार पर दबाव डाल कर बाण सागर जलाशय एवं रिहन्द जलाशय में संयुक्त परिचालन की व्यवस्था करनी चाहिए।
 

India Water Portal - Hindi
hindi.indiawaterportal.org