सफाई को साझे की दरकार

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कौन कहता है कि आसमां में सुराख हो नहीं सकता।

एक पत्थर तो तबियत से उछालो यारो।।

पांवधोई डॉट ऑर्ग पर लिखी दुष्यंत की यह पंक्ति इस बात की पुख्ता सुबूत है कि चाहे किसी मैली नदी को साफ करना हो या सूखी नदी को ‘नीले सोने’ से भर देना हो..सिर्फ धन से यह संभव नहीं है। धुन जरूरी है। नदी को प्रोजेक्ट बाद में।

कम खर्च में बड़ी सफलताओं से सीखने की जरूरत

हर नदी बेसिन की अपनी एक जैवविविधता होती है, जो उस नदी के पानी की गुणवत्ता तय कर करती है। नदी को उसकी जैव विविधता लौटाने के लिए दिल्ली में यमुना के पानी की जैव ऑक्सीजन मांग 23 से घटाकर नीचे लाना होगा। हिसाब लगाएंगे तो देश में सामाजिक प्रयास से पुनर्जीवित हुई शायद ही किसी नदी पर खर्च का आंकड़ा 10-15 करोड़ से ऊपर गया हो। 160 किमी लंबी की पंजाब की कालीबेंई की प्रदूषण मुक्ति इसका एक अनुपम उदाहरण है। कालीबेंई के किनारे स्थित शहरों पर सरकार द्वारा लगाए मल शोधन संयंत्रों पर खर्च को अलग कर दें, तो कालीबेंई से कचरा निकासी का खर्च भी बहुत ज्यादा नहीं जाता। दूसरी तरफ, सरकार ने दिल्ली के शोधित सीवेज को एक नाले में डालकर यमुना के बजाय खेती आदि के उपयोग के लिए छोड़ने की एक शर्त को पूरा करने का बजट ही ढाई हजार करोड़ रुपया बता दिया है। 1993-2008 के डेढ़ दशक में 13 अरब रुपया पहले ही यमुना के नाम पर होम किया जा चुका है। यमुना में कोई गंदगी न जाने देने की बात तो छोड़िए, दिल्ली की 22 किमी की दूरी में डाले कचरे को पूरी तरह निकाल बाहर करने का काम ही कभी नहीं किया गया। इसलिए सफाई पर खर्च अभी और बढ़ेगा।

यमुना समझौता नहीं रास्ता

पहले हिंडन को धोया जाए

बताया जा रहा है कि समझौते में यमुना में पानी बढ़ाने के लिए कई रास्तों पर बात हुई है। पहला, हथिनीकुंड से कुछ पानी छोड़ने के लिए हरियाणा और पश्चिमी उत्तर प्रदेश के किसानों को मनाएंगे। नहरी सिंचाई पर निर्भरता कम करने की सरकार की कोई मंशा नहीं है। यमुना की दोनों नहरों पर ब्रज से ज्यादा बड़ा वोट बैंक रहता है। अत: यह होगा नहीं। दूसरा, बुलंदशहर की ऊपरी गंगनहर को लाकर मथुरा में यमुना से जोड़ने की संभावना तलाशेंगे। पता नहीं, यह कितना व्यावहारिक है? तीसरा प्रस्ताव वाया हिंडन गंगा का पानी यमुना में डालने का है। गौर करने की बात है कि हिंडन स्वयं उत्तर प्रदेश की सबसे प्रदूषित नदी है। वह यमुना को दिल्ली के नालों से कम प्रदूषित नहीं करती। हिंडन का प्रदूषण ज्यादा जहरीला है। हिंडन और इसकी सहायक काली, कृष्णी, धमोला, पावंधोई आदि नदियां तमाम औद्योगिक क्षेत्रों के जहर समेटते हुए यमुना में आकर मिलती हैं। सहारनपुर, मुजफ्फरनगर, मेरठ, गाजियाबाद, गौतमबुद्ध नगर.. समेत शहरों का मल तो है ही। हिंडन में गंगा का पानी मिलाना साफ पानी को मैले में मिलाकर मैला करने जैसा है। यमुना के अपने शहरों के सिर पर बहुत पानी बरसता है। वे अपना-अपना पानी संजोकर यमुना को क्यों नहीं देते? एक बात साफ है कि यदि ब्रज को उसके यहां यमुना साफ चाहिए तो उसे कई और जंग लड़नी और जीतनी होगी। हिंडन व इसकी सहायक धाराओं की प्रदूषण मुक्ति की जंग। दिल्ली से ब्रज क्षेत्र तक यमुना किनारे के शहरों के मल और शेष कचरे की जंग। ग्रीन ट्रिब्युनल ने नोएडा-ग्रेटर नोएडा के बिल्डरों द्वारा किए जा रहे भूजल के अंधाधुंध दोहन पर रोक लगाई है। इसे लागू कराने की जंग।

निर्मलता को चाहिए एक समग्र सोच

दरअसल, नदी की निर्मल कथा टुकड़े-टुकड़े में लिखी तो जा सकती है। सोची नहीं जा सकती। कोई नदी एक अलग टुकड़ा नहीं होती। नदी एक पूरी समग्र और जीवंत प्रणाली होती है। इसे पुनर्जीवित करने वालों की सोच में समग्रता और दिल में जीवंतता जरूरी है। दिल्ली वासियों के दिल में वह अभी नहीं आई है। निर्मलता अविरलता से जुड़ी है। अविरलता के लिए बांधों-बैराजों पर नीतिगत निर्णय जरूरी है। यमुना सिर्फ चंपासागर ग्लेशियर से नहीं बनती; हिंडन, चंबल और केन जैसी बड़ी और जाने कितनी छोटी नदियां प्रत्यक्ष-अप्रत्यक्ष यमुना को पानीदार बनाती हैं।

यमुना बेसिन के लाखों तालाब, झील और अपनी जड़ों में पानी संजोने वाली वनस्पति यमुना को पानी से भर सकते हैं। उन्हें जिंदा रखने की योजना कहां है? हर नदी बेसिन की अपनी एक अनूठी जैवविविधता होती है, जो उस नदी के पानी की गुणवत्ता तय कर करती है। नदी को उसकी जैव विविधता लौटाने के लिए दिल्ली में यमुना के पानी की जैव ऑक्सीजन मांग 23 से घटाकर नीचे लानी होगी ताकि नदी को साफ करने वाली मछलियाँ और जीवाणुओं की एक बड़ी फौज इसमें जिंदा रह सके। यमुना को इसकी रेत और पत्थर लौटाने होंगे ताकि यमुना सांस ले सके। आज़ाद बह सके।

सामुदायिक व निजी सेप्टिक टैंकों पर पूरी तरह कामयाब मलशोधन प्रणालियां भारत में ही मौजूद हैं। कभी इन्हें जाकर देखेंगे तो पता चलेगा कि दिल्ली की हर नई बसावट, सोसाइटी फ्लैट्स तथा कॉमर्शियल कॉम्पलैक्सेस आदि को सीवेज पाइप लाइन से जोड़ने की जरूरत ही कहां हैं लेकिन जलबोर्ड को है क्योंकि ये पाइप लाइनें उन्हें सीवेज देखरेख के नाम पर ग्राहक से ढेर सारा पैसा वसलूने का मौका देती है। पाइप लाइनों से जुड़े सीवेज के सौ फीसद शोधन पर अभी तक सरकार गंभीर नहीं हुई है। देश की सात आईआईटी द्वारा मिलकर बनाया जा रहा गंगा मास्टर प्लान-2020 उम्मीद भी जगाता है तो कचरे में पीपीपी के बहाने अंधाधुंध खर्च का डर भी दिखाता है। सरकार जब करेगी, तब करेगी..आइए। हम खुद एक निर्मल कथा लिखें। पक्का करें कि सीवेज की पाइप लाइनों में शौच का पानी ही जाए। नहाने-धोने और बर्तन मांजने का रासायन नहीं। कॉलोनी नई हो तो सेप्टिक टैंक अपनाएं। सीवेज पाइप और पॉली कचरे को कहें-नो।

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