श्रीनगर बांध परियोजना की खुली नहर से खतरा
राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने श्रीनगर बांध परियोजना के पाॅवर चैनल में लीकेज के कारण हो रही समस्याओं पर उत्तम सिंह भंडारी और विमल भाई की याचिका पर सरकार से रिपोर्ट मांगी है। ऊर्जा विभाग, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तथा टिहरी के जिलाधिकारी से भी एक महीने में ई-मेल पर इस संदर्भ में रिपोर्ट मांगी है। प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड को इस काम के समन्वयन और अनुपालन की जिम्मेदारी भी दी गई है। साथ ही याचिका की प्रतिलिपि वादियों द्वारा एक हफ्ते में पहुंचाने का भी आदेश दिया है।
उत्तराखंड में अलकनंदा के किनारे बनी श्रीनगर जल विद्युत परियोजना का पाॅवर चैनल (खुली नहर) 4 किलोमीटर लंबा है, जो अलकनंदा का पानी पाॅवर हाउस तक बिजली बनाने के लिए ले जाता है। 2015 में इसमें बहुत बुरी तरह रिसाव होने से टिहरी गढ़वाल में इस परियोजना से प्रभावित मंगसू, सुरासु व नोर थापली गांवो की फसलें और मकानो पर नुकसान पहुंचा था। इसके बाद जांच हुई और 30 दिसंबर 2015 को देहरादून स्थित वाडिया इंस्टीट्यूट ने अपनी रिपोर्ट भेजी। जिसमें पाॅवर चैनल को पुनः मजबूती देने और ढांचागत डिजाइन की जांच की सिफारिश की गई थी, लेकिन समाधान के लिए अपेक्षित कार्य न होने के कारण पहले से भी बुरी स्थिति उत्पन्न हो गई। इस संदर्भ में जनहित को ध्यान में रखते हुए माटू जनसंगठन के संस्थापक विमल भाई और उत्तम सिंह भंडारी ने एनजीटी में याचिका डाली।
याचिकाकर्ता विमल भाई ने बताया कि इस संदर्भ में जिलाधिकारी टिहरी गढ़वाल और उत्तराखंड सरकार को भेजे गए पत्र का जवाब नहीं मिला था। तो अब याचिका पर सुनवाई करते हुए राष्ट्रीय हरित प्राधिकरण ने अगली सुनवाई से पहले उत्तराखंड सरकार से और ऊर्जा विभाग, प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड तथा टिहरी के जिलाधिकारी से भी एक महीने में ई-मेल पर इस संदर्भ में रिपोर्ट मांगी है।
गांव वालों को नहीं मिला मुआवजा
श्रीनगर बांध परियोजना के पावर चैनल से 2015 से लगातार मानसून के समय ही ग्रामीणों का नुकसान होता है। पाॅवर चैनल और नदी के बीच ढलान पर बसे इन गांवों को हमेशा खतरे का सामना करना पड़ता हैं। क्षेत्रवासियों ने जिला प्रशासन, सरकार व कंपनी को पत्राचार के माध्यम से और मिलकर भी मुद्दा उठाया है। स्थानीय विधायक के माध्यम से भी इस विषय को उठाया गया है। मीडिया ने भी ग्रामीणों की समस्या को प्रमुखता से उठाया है, लेकिन आज तक किसी तरह के सकारात्मक परिणाम नहीं निकले। बांध कंपनी ने तत्कालीन रूप में रिसाव रोकने की कोशिश की, किंतु आवश्यकता के अनुरूप कुछ भी कार्य नहीं किया गया। इस दौरान हुए नुकसान के लिए गांव वालों को मुआवजा तक नही दिया गया है।
रिपोर्ट पर सरकार ने नहीं लिया संज्ञान
वाडिया इंस्टीट्यूट देहरादून स्थित एक सम्मानित संस्था है। जिसको 2015 में तत्कालीन विधायक ने अध्ययन करने के लिए कहा था। मगर बाद में उसकी दी गई रिपोर्ट पर सरकार ने कोई संज्ञान नहीं लिया और न ही कंपनी से अनुपालन करवाया। तीन वर्षों तक कोई समाधान न होने के कारण न्याय के लिए एनजीटी का दरवाजा खटखटाना पड़ा।
वाडिया इंस्टीट्यूट की सिफारिशें
- पाॅवर चैनल के लगभग 200 मीटर विस्तृत क्षेत्र (प्रभावित रिसाव साइट) को वाडिया संस्थान देहरादून के संरचनात्मक भू-वैज्ञानिकों के साथ परामर्श के द्वारा पुनः सुदृढ़ बनाया जाना चाहिए।
- इसके अलावा पाॅवर चैनल के ढ़ाचे के डिजाइन की विस्तृत जांच रुड़की के सिंचाई डिजाइन संगठन आदि जैसी संस्था से कराये जाने की जरूरत है। इस अभ्यास के दौरान वाडिया संस्थान देहरादून के संरचनात्मक भू-वैज्ञानिकों के साथ परामर्श किया जाना चाहिए।
एनजीटी में याचिकाकर्ताओं का निवेदन
हम स्पष्ट करना चाहेंगे कि यह मुकदमा श्रीनगर बांध से जुड़े किसी भी तरह के जमीन या फसलों के मुआवजे या कंपनी के अन्य किसी भी दायित्व के संबंध में नहीं है। न ही इसका किसी अन्य मुकद्दमे से कोई ताल्लुक है। हमने मुकदमे में निम्नलिखित निवेदन किया हैः-
- परियोजना प्रयोक्ता को निर्देश दिया जाए कि वह पाॅवर चैनल की मरम्मत कराए और सभी रिसावों को व्यवस्थित अध्ययन के बाद नियंत्रित करें।
- परियोजना प्रयोक्ता को निर्देश दिया जाए कि वह वाडिया इंस्टिट्यूट की 30 दिसंबर, 2015 की रिपोर्ट में की गई सिफारिशों को अमल में लायें।
- प्राधिकारियों ने टिहरी गढ़वाल के मंगसू, सुरासु व नोर थापली गांववासियों की जीवन सुरक्षा के प्रति अपनी संवैधानिक जिम्मेदारी निभाने में कोताही बरती, जो कि इस रिसाव के कारण परेशान हैं, इसलिए रिसाव को रोकने में ढिलाई दिखाने के कारण परियोजना प्रयोक्ता से पर्यावरणीय मुआवजा लिया जाए।