Planting
Planting

सरकारी समारोहों में अतिथियों को भेंट किए जाएँगे पौधे

Published on
3 min read

वनों के प्रदेश की अ​हमियत कायम रखने की जिम्मेदारी अवामी है। इसे एक अभियान के रूप में लेने की है। कुछ समय पूर्व ​ऋषिकेश गया था, वहाँ स्वामी चिदानंद ने कहा था- 'अब मंदिरों में पेड़े की जगह पेड़ बँटने चाहिए।' अभियान कैसे सफलीभूत हो इस ओर कदम आगे बढ़ना चाहिए। इसी में ऐसे अभियानों की सार्थकता है। वनों से आच्छादित प्रदेश के रूप में झारखंड की पहचान रही है। यहाँ के लोगों की कई पारम्परिक रीति रिवाज वन और वन्य प्राणियों से जुड़ी है। पर्यावरण की सुरक्षा के लिए वन जरूरी है। विकास के नाम जंगल लगातार कट रहे हैं। इसका प्रतिकूल असर हमारे पर्यावरण पर पड़ रहा है। इस लिहाज से पर्यावरण की सुरक्षा जरूरी है। इस दिशा में एक पहल की गई है। झारखंड सरकार ने यह निर्देश जारी है कि सरकारी समारोहों में अब बूके की जगह पौधे भेंट किए जाए। यह कदम हरित वसुंधरा के लक्ष्य को साकार करने की दिशा में एक छोटा सा कदम है।

झारखंड मुख्यमन्त्री के सचिव सुनील कुमार वर्णवाल ने जारी सरकारी निर्देश में सभी अपर मुख्य सचिव, सभी विभागों के प्रधान सचिव, प्रमंडलीय आयुक्त और उपायुक्त को इस आशय का निर्देश जारी किए हैं। उन्होंने जारी निर्देश में कहा कि विभिन्न सरकारी कार्यक्रमों में अतिथियों को पुष्पगुच्छ भेंट करने की परम्परा है। पर्यावरण दिवस पर मुख्यमन्त्री की अनवरत वृक्षारोपण की अवधारणा को जोड़ते हुए यह आह्वान किया गया है। मुख्यमन्त्री के अनवरत वृक्षारोपन अभियान को मूर्त रूप देने के लिए सम्यक विचारोपरांत यह फैसला लिया गया है कि हर स्तर के सरकारी कार्यक्रमों में भेंट स्वरूप पौधे भेंट किए जाएँ।

एक अनुमान के मुताबिक हर साल पाँच सौ से अधिक सरकारी कार्यक्रम होते हैं। इन कार्यक्रमों के लगभग 10 हजार अतिथियों का स्वागत गुलदस्ते से किया जाता है। यदि लोग जागरूक होते हैं तो हर साल 10 हजार अतिरिक्त पौधे लगेंगे। इसके अलावा वन विभाग की ओर से भी पौधारोपण किया जाता है। वन विभाग भी इस साल 20 लाख पेड़ लगाएगा। सरकारी अधिकारियों की मानें तो पूरे राज्य में वन विभाग की 24 नसर्रियाँ हैं। इनमें 50-50 तैयार किए गए हैं। इन तैयार पौधों को लगाया जाएगा। इसके अतिरिक्त राज्य को हरा भरा बनाने के लिए 41 हजार स्कूलों में भी पौधारोपण कार्यक्रम चलाए जा रहे हैं। इसमें 30 लाख बच्चे और एक लाख सरकारी शिक्षक हैं। इन कार्यक्रमों का मक्सद है कि झारखंड राज्य के शहरी तथा ग्रामीण क्षेत्र में पर्यावरण प्रदूषण, जलवायू परिवर्तन के प्रति अवामी जागरूकता पैदा हो। झारखंड राज्य में अधिसूचित वनों का क्षेत्रफल 23.605 वर्ग किलोमीटर है। इस प्रकार राज्य के कुल भौगोलिक क्षेत्रफल 29.61 प्रतिशत भूभाग पर वनों का विस्तार है। राज्य में निजी भूमि पर वृक्षारोपण को बढ़ावा देकर किसानों के आय के साधन बढ़ाने तथा राज्य के अधिसूचित वनों पर दबाव कम करने एवं राष्ट्रीय वन नीति के आलोक में एक तिहाई भू-भाग पर वनाच्छादन के लक्ष्य की प्राप्ति हेतु किसानों को निजी भूमि पर वृक्षारोपण को प्रोत्साहित करने के मक्सद से मुख्यमन्त्री जन वन विकास योजना लागू की गई है।

सरकार के कोई भी कार्यक्रम हो। जबतक जनजागरूकता नहीं होगी वह सफलीभूत नहीं हो सकती है। जब तक लोग नहीं चाहेंगे न हम वन बचा सकेंगे न वन्य प्राणी। सवाल यह उठता है कि अधिक से अधिक लोगों को वनों से कैसे जोड़ा जाए। सरकारी स्तर पर तो अनेक कार्यक्रम होते हैं और जागरूकता अभियान भी चलाया जाता है। लेकिन इसकी एक सीमा है। इस सीमा से आगे का कदम है सामाजिक भागीदारी और जागरूकता का कदम। जनभागीदारी से ही परम्परा पालन के नाम पर होनेवाले वनों की क्षति को रोक सकते हैं। वनों के प्रदेश की अ​हमियत कायम रखने की जिम्मेदारी अवामी है। इसे एक अभियान के रूप में लेने की है। कुछ समय पूर्व ​ऋषिकेश गया था, वहाँ स्वामी चिदानंद ने कहा था- 'अब मंदिरों में पेड़े की जगह पेड़ बँटने चाहिए।' अभियान कैसे सफलीभूत हो इस ओर कदम आगे बढ़ना चाहिए। इसी में ऐसे अभियानों की सार्थकता है।

संबंधित कहानियां

No stories found.
India Water Portal - Hindi
hindi.indiawaterportal.org