surface irrigation
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सतही सिंचाई प्रणाली

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भारत में अधिकतर कृषि योग्य क्षेत्रों में सतही सिंचाई होती है। इसमें प्रमुख है नहरों से नालियों द्वारा खेत में पानी का वितरण किया जाना तथा एक किनारे से खेत में पानी फैलाया जाना है। इस प्रणाली में खेत के उपयुक्त रूप से तैयार न होने पर पानी का बहुत नुकसान होता है। यदि खेत को सममतल कर दिया जाए तो इस प्रणाली में भी पानी की बचत की जा सकती है। आजकल लेजर तकनीक से किसान अपना खेत समतल कर सकते हैं। इससे जलोपयोग दक्षता में वृद्धि होती है। फलस्वरूप फसलों की पैदावार बढ़ जाती है (तालिका 1)। जलोपयोग दक्षता के साथ-साथ उर्वरकोपयोग दक्षता भी बढ़ती है।

तालिका

1

:

उपज

एवं

जलोपयोग

दक्षता

पर

भूमि

समतलीकरण

का

प्रभाव

सममतलन माप(

सें.मी.)

जलोपयोग दक्षता

(

क्विं./है.-सें.मी.)

उपज

(

क्विं./है.)

 

गेहूँ

बाजरा

गेहूँ

बाजरा

1.2 166 120 46.6 37.3
2.0 138 106 42.2 34.2
2.5 128 99 39.3 32.9
3.0 116 92 36.5 31.4
3.7 110 84 34.9 27.9

सतही सिंचाई प्रणाली के अन्तर्गत खेतों में सीमान्त पट्टी (बोर्डर), चैक या क्यारी और कूँड़ बनाकर सिंचाई की जाती है। यदि बोर्डर, चैक व क्यारी को उपयुक्त रूप से बनाया जाए तो पानी की बचत की जा सकती है। विभिन्न प्रयोगों द्वारा देखा गया है कि इस प्रणाली से भी फसलों का अच्छा उत्पादन किया जा सकता है। सतही सिंचाई में कूँड़ प्रणाली का उपयोग करके पानी की बचत अवश्य की जानी चाहिए।

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