‘स्वच्छ भारत अभियान’ : क्या ‘फोटोछाप नेता’ साकार करेंगे मोदी का सपना

‘स्वच्छ भारत अभियान’ : क्या ‘फोटोछाप नेता’ साकार करेंगे मोदी का सपना

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मा. मोहन लाल (पूर्व परिवहन मन्त्री, पंजाब)

स्वच्छ भारत मोदी का दूरदर्शी विजन है। दिवास्वप्न है। दिन में सपने देखने वाले यथार्थ पर नजर रख कर भागते हैं। उनका विजन कोरी कल्पना नहीं होता। नरेन्द्र भाई चाहते हैं कि समाज अपना अड़ोस-पड़ोस साफ रखे। साफ वातावरण यानी साफ मन। साफ मन यानी स्वच्छ समाज। यह अभियान प्रधानमन्त्री की संवेदनशीलता दर्शाता है। स्वच्छ भारत उनकी आत्मानुभूति है। तो क्या उनका यह सपना फोटोछाप नेता साकार करेंगे? दो मिनट भागती गाड़ी से आए, मीडिया को बुलाया, फोटो खिंचवाया, झाड़ू हिलाया और चल दिए। क्या मोदी के विजन से न्याय कर पाएंगे- ये तथाकथित नेता?

नरेन्द्र भाई चाहते हैं कि समाज अपना अड़ोस-पड़ोस साफ रखे। साफ वातावरण यानी साफ मन। साफ मन यानी स्वच्छ समाज। यह अभियान प्रधानमन्त्री की संवेदनशीलता दर्शाता है।

मोदी ने बनारस से लोकसभा का चुनाव लड़ा। बनारस जैसी पवित्र नगरी के घाटों की दुर्दशा को देखा। उन घाटों की सफाई करवाई और सोचा क्यों न सारा भारत स्वच्छ बने? पर सफाई अभियान क्या भेड़चाल पर चलकर सफल होगा? मोदी के विजन की गहराई पर नेता जाएँ। शहर सुन्दर दिखे, गाँव हरियाली और खुशहाली का प्रतीक बनें। सड़कें, गलियाँ-नालियाँ साफ-सुथरी लगें। लोगों में सिविक-सेंस आए। यह उनका विजन है। ठीक वैसा ही विजन जो जन-धन योजना में दिखाई देता है। वही विजन जो बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ की पुकार कर रहा है। सुरक्षा बीमा योजना, अटल पेंशन योजना, जीवन ज्योति बीमा योजना, इण्डिया अगेंस्ट करप्शन, मार्च टुवर्ड योगा, विश्व शान्ति मिशन और जम्मू-कश्मीर में पी.डी.पी और भाजपा का एक असंगत गठबंधन मोदी के विजन पर पहरा देने वाले प्रोजेक्ट्स हैं।

मोदी ‘स्वच्छ भारत अभियान’ के द्वारा सफाई को मानव जीवन का अंग बनाना चाहते हैं। कुछ-कुछ लोगों को यह अभियान समझ भी आने लगा है। अवचेतन मन खुले में कागज फेंकने से रुकने लगा है। पर फोटोछाप नेता इस ‘स्वच्छता अभियान’ की अपने छिछोरेपन से कब्र खोदने लगे हैं। ऊपर-ऊपर से, सिर्फ दिखावट के लिए झाड़ूछाप नेता आगे आने लगे हैं। उन्हें गन्दगी के ढेर तो दिखाई दिए नहीं, अपनी फोटो जरूर हँसते हुए दिखाई दी है। ये नेता स्वच्छ भारत अभियान नहीं बल्कि अपनी मूर्खता का दीवाला निकालने में लगे हैं। मोदी का अपमान कर रहे हैं। महात्मा गाँधी की धरोहर को कलंकित करने में लगे हुए हैं। बेहतर है वे इस सफाई अभियान से पीछे हट जाएँ।

ऊपर-ऊपर से, सिर्फ दिखावट के लिए झाड़ूछाप नेता आगे आने लगे हैं। उन्हें गन्दगी के ढेर तो दिखाई दिए नहीं, अपनी फोटो जरूर हँसते हुए दिखाई दी है। ये नेता स्वच्छ भारत अभियान नहीं बल्कि अपनी मूर्खता का दीवाला निकालने में लगे हैं।

बचपन में चाय बेचते-बेचते मोदी ने देखा लोग खाना खाकर डोने प्लेटफार्म पर फेंक रहे हैं। मल की टोकरी सिर पर उठाए मेहतरानी का दर्द सम्भव है मोदी को चुभ गया हो। अमृत-समान नदियों के बहते पानी को मोदी ने दूषित होते देखा हो? नदियों को कचरे से भरते देखा हो। गाँव के कुओं, तालाबों, बावड़ियों और चश्मों को दुर्गन्ध मारते देखा हो। शायद मोदी ने यह भी देखा हो कि अपने घर और दुकान का कूड़ा-कर्कट हम पड़ोस के घरों की ओर धकेल देते हैं। गंगा को पापियों के पाप धोते-धोते मैली होते हुए देखा हो और मोदी का मन कराह उठा हो कि स्वच्छ भारत की ओर चलो। सफाई को भारतवासी अपना धर्म बनाएँ।

सफाई रखना, भोजन करने से भी अधिक महत्वपूर्ण है पर दिखावा करने से भारत स्वच्छ नहीं होगा। फोटो खिंचवाने से मोदी का सपना साकार नहीं होगा। सफाई की योजनाएँ बनानी होंगी, योजनाओं के लिए धन जुटाना होगा। मानव मन को तैयार करना होगा। इंफ्रास्ट्रक्चर खड़ा करना होगा। पंचवर्षीय योजनाओं में ‘स्वच्छ भारत’ के लिए अलग प्रावधान करना होगा। वार्षिक बजट पेश करते समय दूषित वातावरण को ध्यान में रखना होगा।

2011 की जनगणना के अनुसार भारत में कुल 6,40,867 गाँव हैं। कुल 7935 कस्बें और 4041 के लगभग शहर हैं। गाँवों की दो-तिहाई जनता के लिए शौचालय नहीं। शहरों, कस्बों और गाँवों को मिला कर देखें तो लगभग 47 प्रतिशत जनता खुले में शौच करती है। बड़े-बड़े शहरों की रेलवे लाइनों को प्रातः-सायं शौच करते लोगों से मालामाल होते देखा जा सकता है। पुरुष करें तो करें, महिलाएँ खुले में शौच कर रही हैं। यह शर्म और दुर्भाग्य की बात है। इन सबके लिए शौचालय बनाने हों तो 3,000 करोड़ रुपयों की व्यवस्था करनी पड़ेगी। फिर इन शौचालयों के रख-रखाव और नित प्रति साफ-सफाई के लिए 100 करोड़ अलग से चाहिए।

2011 की जनगणना के अनुसार भारत में कुल 6,40,867 गाँव हैं। कुल 7935 कस्बें और 4041 के लगभग शहर हैं। गाँवों की दो-तिहाई जनता के लिए शौचालय नहीं। शहरों, कस्बों और गाँवों को मिला कर देखें तो लगभग 47 प्रतिशत जनता खुले में शौच करती है।

चलो सरकार पैसा जुटा भी ले, साफ-सफाई रखने की आदत कहाँ से आएगी? हम तो खुले में शौच के आदी हो चुके हैं। शहरों की नालियों, नालों पर शौच वालों की लम्बी लाइनें लगी होती हैं। शहरों में नगरपालिकाओं के सफाई कर्मचारी 21वीं सदी में नंगे हाथ, नंगे पाँव इन नाली-नालों में सफाई करते देखे जा सकते हैं। सीवरेज के जाम को खोलते वक्त गैस से कई सफाई कर्मचारी मौत का ग्रास भी बने हैं।

इसके लिए करना क्या चाहिए? देहात में पंचायतों के वार्डों के पंचों को उत्तरदायी बनाया जाए। वे अपने-अपने वार्डों में सफाई के प्रति अवेयरनेस पैदा करें। सरपंच, लम्बड़दार, पंच और पटवारी सफाई के प्रति लोगों में जागरुकता पैदा करें। महीने-महीने अच्छी साफ-सफाई वाले घर को ईनाम देकर सम्मानित करें। खुले में शौच करने वालों पर जुर्माना लगाएँ। प्रत्येक 10 घरों के पीछे एक डस्टबिन रखा जाए। गाँव के बाहर सारे गारबेज को दबाने का प्रबंध किया जाए। सामूहिक शौचालय सरकार बना कर दे और उन शौचालयों की सफाई के लिए कर्मचारी नियुक्त हों।

शहरों की नालियों, नालों पर शौच वालों की लम्बी लाइनें लगी होती हैं। शहरों में नगरपालिकाओं के सफाई कर्मचारी 21वीं सदी में नंगे हाथ, नंगे पाँव इन नाली-नालों में सफाई करते देखे जा सकते हैं। सीवरेज के जाम को खोलते वक्त गैस से कई सफाई कर्मचारी मौत का ग्रास भी बने हैं।

स्कूलों-कालेजों में सफाई अभियान सदाशयता से चलाए जाएँ। निर्मल ग्राम योजना को प्रभावी बनाया जाए। गाँव की सार्वजनिक जगहों को खेल के मैदान के रूप में उपयोग किया जाए। विवाह-शादियों और खुशी-गम के मौकों पर पौधे लगाए जाएँ। लड़की-लड़का पैदा हो तो पौधे लगाए जाएँ। किसी की मृत्यु हो तो उसकी याद में पौधा लगाया जाए। गाँवों में सब तरफ हरियाली ही हरियाली दिखाई दे।

शहरों की सबसे बड़ी समस्या उसके कूड़े-कर्कट को समेटने की है। टनों-टन कचरा नित्यप्रति शहर से बाहर फेंका जाता है। सरकार शहरों के इस कूड़े को समेटने के लिए प्रत्येक 50 किलोमीटर के फासले पर ‘सालिड वेस्ट प्लांट’ लगवाए। प्लास्टिक का प्रयोग राज्य सरकारें बन्द करवाएँ। कूड़ा-कचरा निश्चित स्थानों पर डाला जाए और वहाँ से डम्पिंग स्टेशनों तक पहुँचाया जाए।

स्कूलों-कालेजों में सफाई विषय को पाठ्यक्रम का हिस्सा बनाया जाए। सफाई के प्रति सामाजिक जागरुकता होना आवश्यक है। ऐसा न हो कि मोदी तो ‘स्वच्छ भारत अभियान’ चलाएँ और सारा समाज सोया रहे। सरकार और समाज मिल कर इस अभियान के चलाएँ।

साभार : नवोदय टाइम्स 13 मई 2015

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