वाटर प्योरिफायर

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जल मानव जीवनयापन की एक महत्त्वपूर्ण आवश्यकता है। दिन-प्रतिदिन बढ़ते जल प्रदूषण से आज घर-घर में वाटर प्योरिफायर लगते जा रहे हैं। आज बाजार में एक हजार रुपए से लेकर पचास हजार रुपए तक की कीमत वाले लगभग 71 नामों से (तालिका 1) वाटर प्योरिफायर्स उपलब्ध हैं। वाटर प्योरिफायर्स के विषय में एक आम व्यक्ति को वैज्ञानिक जानकारी बहुत कम है। एक आम व्यक्ति को तो यह जानकारी नहीं होती कि पीने योग्य पानी में क्या-क्या होना चाहिए तथा कितना होना चाहिए एवं क्या नहीं होना चाहिए? अतः इस विषय पर समाज के प्रत्येक नागरिक को जानकारी होनी आवश्यक है।

लेकिन यहाँ ये प्रश्न उठता है कि क्या हम जो जल वाटर प्योरिफायर्स से प्राप्त करते हैं वह हमारे लिये पूरी तरह से उपयोगी है? अधिकतर पेयजल आपूर्ति का कार्य प्रत्येक शहर में नगरपालिका/नगरनिगम द्वारा किया जाता है। परन्तु जल शुद्धिकरण के बारे में अल्पज्ञान एवं संसाधनों की कमी के कारण नगरपालिका/नगरनिगम अपना दायित्त्व पूर्ण रूप से नहीं निभा पाते हैं। यह स्थिति पूरे देश में बनी हुई है। यही कारण है कि आज अधिकतर लोग अपने घर में वाटर प्योरिफायर लगाकर शुद्ध जल प्राप्त कर रहे हैं।

जल के शुद्धिकरण में मुख्य रूप से फिल्ट्रेशन तथा असंक्रमण (अल्ट्रावायलेट/क्लोरीनेशन) प्रक्रिया प्रयोग की जाती हैं। फिल्ट्रेशन प्रकिया में सस्पेंडिड साॅलिड, बड़े माइक्रोआॅरर्गेनिज्म पेपर तथा कपड़े के बारीक-बारीक टुकड़े धूल के कण इत्यादि को जल से अलग किया जाता है। घरेलू स्तर पर इन फिल्टरों में विशेष पदार्थ की झिल्ली (Membran) या कार्टरिज (Cartidge) का प्रयोग किया जाता है तथा इसे एक बन्द तंत्र (Closed System) में स्थापित किया जाता है। ये फिल्टर विभिन्न साइजों में उपलब्ध हैं जैसे माइक्रोफिल्टर, तथा अल्ट्राफिल्टर (मैमब्रेन)। माइक्रोफिल्टर 0.04 से 1.0 माइक्रो मीटर साइज के कणों तथा माइक्रोब्स को जल से अलग करता है तथा कार्टरिज के रूप में उपलब्ध है इन कार्टरिज की आकृति ट्यूबलर, डिस्क प्लेट, स्पाइरल तथा खोखले फाइबर के रूप में होती है जो जल में घुलिस ठोस के अनुसार 5 से 8 वर्ष तक चल जाती है। अलग-अलग कम्पनी अपने वाटर प्योरिफायर में अलग-अलग प्रकार के फिल्टर तथा उनकी संख्या बढ़ाकर, चाहे उनकी आवश्यकता हो न हो, कीमत बढ़ा देती है। अल्ट्रा फिल्ट्रेशन में 0.005 से 0.10 माइक्रोमीटर साइज के उच्च परमाणु भार वाले यौगिकों, कोलोइड्स पायरोक्सिन, माइक्रोआॅर्गेनिज्म तथा सस्पेंडिड साॅलिड्स को दूर किया जाता है। अल्ट्राफिल्टर “मैमब्रेन” के रूप में होते हैं। इन फिल्टरों को भी ट्यूबलर डिस्क प्लेट, स्पाइरल तथा खोखले फाइबर के रूप में स्थापित किया जाता है। इन फिल्टरों का प्रयोग भी 5 से 8 वर्ष तक किया जा सकता है। परन्तु किसी भी फिल्टर से फाॅस्फोरस, नाइट्रेट तथा भारी धातुओं के आयनों को जल से दूर नहीं किया जा सकता है। सामुदायिक स्तर पर जल शुद्धिकरण हेतु स्लोसैंडफिल्टर तथा रैपिड सैंड फिल्टर का प्रयोग किया जाता है जो नगरपालिका/नगरनिगम स्तर पर किया जाता है।

रिवर्स आॅसमोसिस (Reverse Osmosis, RO) प्रक्रिया का प्रयोग आज सबसे अधिक लोकप्रिय होता जा रहा है। रिवर्स आॅसमोसिस वह प्रक्रिया है जिसमें जल को एक प्रेशर द्वारा एक अर्धपारगम्य झिल्ली (Semi Permeable Membarne) से पार कराया जाता है। इस प्रक्रिया में जल में उपस्थित अधिक सान्द्रता वाले विलेय तो झिल्ली के एक तरफ रह जाते हैं तथा शुद्ध जल झिल्ली को पार कर जाता है। एक RO Membrabe का प्रयोग 2 से 5 वर्ष तक किया जा सकता है। इस प्रक्रिया की विशेषता यह है कि यह जल में उपस्थित लगभग सभी अकार्बनिक आयनों, गंदलापन तथा बैक्टीरिया एवं पैथोजन को भी जल से अलग कर देती हैं परन्तु यह तकनीक बहुत अधिक खर्चीली है साथ-ही-साथ इस प्रक्रिया में जल शुद्धिकरण में बहुत अधिक जल का दुरुपयोग होता है।

जल में उपस्थित अवांछनीय बैक्ट्रीरिया विभिन्न प्रकार के रोगों को जन्म देता है। जल के असंक्रमित करने हेतु कुछ रासायनों जैसे क्लोरीन डाइआॅक्साइड, क्लोरामीन, ओजोन आदि का प्रयोग किया जाता है। परन्तु क्लोरीन तथा इसके अन्य यौगिकों के प्रयोग से अन्य पदार्थ ट्राइहैलोमिथेन तथा हैलोएसिटिक एसिड उत्पन्न हो जाते हैं। जो स्वास्थ्य के लिये बहुत अधिक नुकसानदायक होते हैं। ओजोन का प्रयोग बहुत कम किया जाता है। अल्ट्रावाॅयलेट लाइट का प्रयोग असंक्रमण के लिये सबसे अधिक लोकप्रिय है। इस प्रक्रिया में जल में उपस्थित बैक्टीरिया को अक्रिय कर दिया जाता है। आज बाजार में उपलब्ध वाटर प्योरिफायरों में उपरोक्त बताई गई तकनीकों के प्रयोग के अनुसार कम्पनियाँ बड़ी-बड़ी कीमतें वसूल कर रही हैं।

परन्तु आवश्यकता इस बात की है कि हमें क्या इस सब प्रक्रिया वाले वाटर प्योरिफायर की आवश्यकता है। यह जानने के लिये सबसे पहले हमें यह मालूम होना चाहिए कि हमारे जल में क्या-क्या अशुद्धियाँ विद्यमान हैं उसी के अनुसार हमें वाटर प्योरिफायर चुनना चाहिए। भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा पेयजल हेतु निर्धारित मानकोें के अनुसार अगर आपके जल में कुल घुलित ठोस (TDS) 500 mg/1 से कम है तो किसी फिल्टर की आवश्यकता नहीं है अगर इस जल में कोई विशेष अशुद्धि नहीं है। अब यदि आप RO वाटर प्योरिफायर लगा देते हैं तो यह प्योरिफायर इसमें घुलित ठोस को 20 mg/1 पर ले आता है। तो जल में वांछनीय मिनरल कम हो जाएँगे क्योंकि भारतीय मानक ब्यूरो के परामर्श के अनुसार पेयजल में कैल्शियम की मात्रा कम से कम 75 mg/1 तथा मैग्निशियम की कम-से-कम मात्रा 30 mg/1 तो होनी ही चाहिए। जो मानव शरीर में दाँत तथा हड्डी के निर्माण में सहायक होते हैं। कुछ विद्वानों का कहना है कि अधिकांश तथा लाभकारी खनिज (Minerals) भोजन से प्राप्त हो जाते हैं। परन्तु 20 mg/1 घुलित ठोस वाला जल भी शरीर के लिये नुकसानदायक है जो शरीर में प्रवेश कर शरीर में होने वाली विभिन्न रासायनिक क्रियाओं को प्रभावित करेगा। कुछ कम्पनियों ने अपने वाटर प्योरिफायर में कुल घुलित ठोस (TDS) एडजस्टर भी लगाए हैं जिसमें एक नली द्वारा अशुद्ध पानी को शोधित जल में पुनः मिला दिया जाता है। जिससे अगर अशुद्ध जल में बैक्टीरिया अशुद्धि थी वह पुनः शोधित जल को अशुद्ध जल बना देगी। इसलिये किसी वाटर प्योरिफायर को प्रयोग में लाने से पहले हमें अपने जल की जल गुणता परीक्षण कराकर यह जानने की आवश्यकता है कि हमारे जल में किसी रासायनिक अवयव की अधिकता है या अशुद्धि है, उसी के अनुसार हमें जलगुणता वैज्ञानिक के साथ वार्तालाप के बाद तय करना होगा कि किस प्रकार का वाटर प्योरिफायर लगाने की आवश्यकता है।

आजकल बाजार में वाटर प्योरिफायर विभिन्न नामों में उपलब्ध हैं: वाटर फिल्टर, एक्वागार्ड (Aquaguard) तथा आर. ओ. (Reverse Osmosis), एक्वाप्योर (Aquapure), एक्वाफ्रेश (Aquafresh)।

वाटर फिल्टर सिस्टम में 2 या 3 फिल्टर होते हैं। इस फिल्टर सिस्टम से 1 माइक्रोन तक के मिट्टी धूल तथा अशुद्धि इत्यादि के कण के साथ बैक्टीरिया को भी अशुद्ध जल से दूर कर देता है। इस कार्य के लिये इन फिल्टरों में ज्यादातर सिल्वर इमप्रिगनेटिड एक्टीवेटिड चारकोल का इस्तेमाल किया जाता है।

आर ओ फिल्टर धूल, मिट्टी, बैक्टीरिया, वायरस तथा अन्य अशुद्धियों के साथ जल से नुकसान दायक रेडियोएक्टिव कणों कार्बनिक पदार्थ, पेस्टीसाइड, तथा भारी धातुएँ भी जल से दूर कर देती हैं। इस सिस्टम में नैनो फिल्टर प्रयोग किया जाता है अर्थात यह जल में उपस्थित 10-9 मीटर तक के साइज वाले पदार्थों को जल से दूर कर देता है चाहे कुछ पदार्थ लाभकारी क्यों न हो? आर ओ फिल्टर आजकल के समय में सबसे अधिक प्रचलित एवं विकसित फिल्टर के रूप में माना जा रहा है। इस फिल्टर की कीमत भी साधारण वाटर फिल्टर की अपेक्षा बहुत अधिक है।

भारतीय मानक ब्यूरो द्वारा पेयजल हेतु निर्धारित जलगुणता प्राचलों की वांछनीय तथा माननीय सीमाएँ तालिका संख्या 2 में दी गई है:-

तालिका 1

वाटर फिल्टर

वाटर फिल्टर + यू. वी. वाटर प्योरिफायर्स

आर. ओ. सिस्टम प्योरिफायर्स

तालिका- 2

क्र.सं. विशिष्टताएँ

वांछनीय सीमा

अनुज्ञेय सीमा

आवश्यक विशिष्टताएँ

 

 

1. रंग (हेजन यूनिट)

5

25

2. गंध

अनापत्तिजनक

-

3. स्वाद

सहमति योग्य

-

4. गन्दलापन

5

10

5. पीएच

6.5-8.5

-

6. कुल कठोरता (मिलीग्राम ली.)

300

600

7. लोहा (मिलीग्राम/ली.)

0.3

1.0

8. क्लोराइड (मिलीग्राम/ली.)

250

1000

9. अवशेषमुक्त क्लोरीन (मिलीग्राम/ली.

0.2

-

वांछनीय विशिष्टताएँ (मिग्रा/

ली.)

10. घुलित ठोस पदार्थ

500

2000

11. कैल्शियम

75

200

12. मैग्निशियम

30

75

13. कॉपर

0.05

1.5

14. मैग्नीज

0.1

0.3

15. सल्फेट

200

400

16. नाइट्रेट

45

-

17. फ्लोराइड

1.0

1.5

18. फिलोनिक मिश्रण

0.001

0.002

19. मर्करी

0.001

-

20. कैडमियम

0.01

-

21. सेलिनियम

0.01

-

22. आर्सेनिक

0.01

-

23. सायनाइट

0.05

-

24. लेड

0.05

-

25. ऋणात्मक प्रक्षालक

0.2

1.0

26. क्रोमियम

0.05

-

27. पी.ए.एच.

-

-

28. खनिज तेल

0.01

0.03

29. पेस्टीसाइड

अनुपस्थित

0.001

30. क्षारीयता

200

600

31. एल्युमिनियम

0.03

0.2

32. बोरोन

1

5

लेखक: मुकेश शर्मा, वैज्ञानिक सी, राष्ट्रीय जलविज्ञान संस्थान में कार्यरत हैं।
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