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विकास की दौड़ में प्रकृति का शोषण

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राँची। मुख्यमन्त्री श्री रघुवर दास ने कहा कि प्रकृति ही जीवन है, वन इस धरती के फेफड़े हैं जो हमें जीवन के लिये शुद्ध हवा देते हैं। प्रकृति प्रेमीजन-जातीय समाज ने आदिकाल से वनों की रक्षा की है। हमारी परम्परा में भी प्रकृति को ईश्वर का स्वरूप मानते हुए बारम्बार वन्दना की गई है। आने वाले कल के लिये और सम्पूर्ण मानव जाति एवं पारिस्थितिकी की रक्षा के लिये पर्यावरण की रक्षा सबों का नैतिक दायित्व है। विकास की यात्रा में प्रकृति का ह्रास हुआ है।

औद्योगिक विकास के साथ-साथ प्राकृतिक सन्तुलन एवं पर्यावरण संरक्षण पर बल देते हुए उन्होंने कहा कि धारणीय विकास के लिये पर्यावरण के अनुकूल विकास की संकल्पना को अपनाया जाना ही पूरी दुनिया के हित में है। वे विश्व पर्यावरण दिवस के अवसर पर स्थानीय बी.एन.आर. चाणक्या होटल में झारखण्ड राज्य प्रदूषण नियन्त्रण परिषद के तत्वावधान में आयोजित सेमिनार को सम्बोधित कर रहे थे। उन्होंने इस अवसर पर स्मारिका का विमोचन भी किया।

उन्होंने कहा कि 14 वर्षों में पहली बार वन एवं पर्यावरण विभाग के द्वारा आम जनता के बीच पर्यावरण संरक्षण हेतु एक माह तक चलने वाले वृक्षारोपण के कार्यक्रम की शुरूआत के साथ-साथ पर्यावरण सुरक्षा के महत्त्वपूर्ण आयामों पर अकादमिक विमर्श का आयोजन किया गया है। उन्होंने पर्यावरण संरक्षण को जनान्दोलन बनाए जाने की आवश्यकता पर बल देते हुए सभी राज्य वासियों से अपील की कि वे एक साल में कम-से-कम दस वृक्ष अवश्य लगाएँ। राज्य के सभी विद्यालयों के परिसर स्कूली बच्चों के प्रयास से हरे-भरे रहें। इसके लिये वन एवं पर्यावरण विभाग एवं मानव संसाधन विकास विभाग सम्मिलित रूप से प्रयासरत रहेंगे।

मुख्यमन्त्री श्री दास ने जन-वन विकास योजना की शुरुआत की घोषणा करते हुए कहा कि निजी ज़मीन में कृषक (रैयत) इमारती लकड़ी यथाः शीशम, सागवान, गम्हार और महोगनी तथा फलदार पौधे यथाः आम, बेल, कटहल लगाएँगे तो सरकार इस पर आने वाले व्यय का 50 प्रतिशत राशि का वहन करेगी। उन्होंने कहा कि हरेक तबके के राज्य के बड़े-मझोंले किसान अपनी रैयती जमीन पर बाग-बगीचा लगाएँगे अथवा छोटे किसान अपने खेतों की मेड़ों पर इन पौधों को लगाकर इस योजना का लाभ उठा सकते हैं। इस योजना के अन्तर्गत सबसे अच्छे कार्य करने वाले विद्यालय एवं अस्पताल को आगामी स्थापना दिवस कार्यक्रमों के दौरान एक लाख रु. की राशि पुरस्कार स्वरूप प्रदान की जाएगी। साथ ही इस योजना में सबसे अच्छा कार्य करने वाले दो स्वैच्छिक संगठनों को दो-दो लाख रु. की राशि से पुरस्कृत किया जाएगा।

उन्होंने कहा कि भोगवादी संस्कृति ने हमें प्रकृति से दूर किया है। विकास की दौड़ में प्रकृति का दोहन नहीं बल्कि शोषण हो रहा है। हम अपनी आम जिन्दगी में भी पर्यावरण और स्वच्छता के प्रति गम्भीर नहीं हैं। सर्वाधिक प्रदूषण मोटर वाहनों, जेनरेटरों से हो रहा है। हमें प्राकृतिक संसाधनों के संयमित उपभोग के साथ-साथ नियमित जीवन में भी पर्यावरण चेतना को बलवती बनाना होगा।

इस मौके पर संसदीय कार्य मन्त्री श्री सरयू राय ने कहा कि देश के विधायी मस्तिष्क को पर्यावरण संरक्षण हेतु जागरूक होना चाहिए। उन्होंने कहा कि देश के मेधावी मस्तिष्क जो आई.आई.टी., आई.आई.एम. एवं अन्य उच्च शैक्षणिक संस्थानों से डिग्री प्राप्त कर विकास से जुड़े संस्थानों को चला रहे हैं, उन्हें प्रकृति एवं पर्यावरण के प्रति संवेदनशील होते हुए अपना काम करना चाहिए।

प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण जन-संख्या वृद्धि को बताते हुए उन्होंने कहा कि पर्यावरण चेतना को देश की प्लानिंग का हिस्सा होना चाहिए। हर विभाग में अलग इन्वायरमेंट सेल के गठन की आवश्यकता को रेखांकित करते हुए उन्होंने कहा कि संस्थान यदि पर्यावरण नियमों का पालन करेंगे तो इसका प्रभाव आम लोगों पर भी पड़ेगा।

इस अवसर पर स्वागत भाषण झारखण्ड राज्य प्रदूषण नियन्त्रण परिषद के अध्यक्ष श्री ए.के.मिश्र ने किया। प्रधान सचिव वन एवं पर्यावरण विभाग श्री अरूण कुमार सिंह ने आज से शुरू हुए एक माह के वृक्षारोपण अभियान के विभिन्न पहलुओं को रेखांकित किया। धन्यवाद ज्ञापन प्रदूषण नियन्त्रण परिषद के प्रभारी सचिव श्री आलोक कश्यप ने किया। मुख्यमन्त्री के सचिव श्री सुनील कुमार वर्णवाल एवं प्रधान मुख्य वनसंरक्षक श्री बी.सी. निगम सहित बड़ी संख्या में गणमान्य व्यक्ति उपस्थित थे।
 

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